व्यतिरेक अलंकार
परिभाषा: जहाँ कारण बताते हुए उपमेय की श्रेष्ठता उपमान से बताई जाए वहाँ व्यतिरेक अलंकार होता है। व्यतिरेक का शाब्दिक अर्थ होता है आधिक्य। व्यतिरेक में कारण का होना जरुरी है। अत: जहाँ उपमान की अपेक्षा अधिक गुण होने के कारण उपमेय का उत्कर्ष हो वहाँ पर व्यतिरेक अलंकार होता है।
यह अलंकार, Hindi Grammar के Alankar के भेदों में से एक हैं।
व्यतिरेक अलंकार के उदाहरण
चाँद कलंकी वह निकलंकू।।
स्पष्टीकरण– नायिका के मुख की समता चन्द्रमा से नहीं दी जा सकती, क्योंकि चन्द्रमा में तो कलंक हैं, जबकि वह मुख तो निष्कलंक हैं। कारण सहित उपमेय की श्रेष्ठता बताने से यहाँ व्यतिरेक अलंकार है।
व्यतिरेकालंकार:, संस्कृत
“उपमानाद् यदन्यस्य व्यतिरेकः स एवं सः।
अन्यस्योपमेयस्य व्यतिरेकः आधिक्यम् ।”
अर्थात उपमान से अन्य यानी उपमेय का जो (विशेषण अतिरेकः व्यतिरेकः) आधिक्य का वर्णन ही व्यतिरेकालंकार है।
उदाहरणस्वरूप
विरम प्रसीद सुन्दरि! यौवनमनिवर्ति यातं तु ।
स्पष्टीकरण– यहाँ ‘क्षीणः क्षीणोऽपि शशी’ इत्यादि में उपमान (चन्द्रमा) का उपमेय (यौवन) से आधिक्य वर्णित है। यहाँ यौवनगत अस्थैर्य का आधिक्य ही कवि को विवक्षित है।
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