Translation of simple sentences of Sanskrit language into Hindi
अनुवाद हेतु भाषा, शब्द तथा व्याकरण के ज्ञान की आवश्यकता
किसी भी भाषा का ज्ञान होना, उस व्यक्ति के ज्ञान संग्रह की अपरिमित परिधि में आता है। “जिन खोजा तिन पाइया गहरे पानी पैठ, हों बौरी ढूंढन चली रही किनारे बेट।” जो जानता है सो तम्बू तानता है। किसी भी भाषा का सम्पूर्ण ज्ञान उस भाषा के अथाह ज्ञान से परिचित होने का परिणाम है।
भाषा एक प्रयास युक्त संस्कार है जो व्यक्ति के व्यक्तित्व को निर्धारण करता है। किसी भी भाषा का ज्ञान उस भाषा के निरन्तर अध्ययन करने से प्राप्त होता है।
अतः यह ऐसा अभीष्ट कार्य है जोकि निरन्तर चलता रहता है। निरन्तरता का अध्ययनशील व्यक्ति को अभीष्ट पद की ओर ले जाती है।
भाषा के ज्ञान के क्षेत्र में शब्दकोष, व्याकरण एवं प्रयोग विधि का तारतम्य प्रमुख होता है। संसार में जितने भी लेखक एवं कवि हुए हैं। उनमें यह गुण विशेष रहा है। अतः हिन्दी तथा संस्कृत के वाक्य अनुवाद के लिए व्याकरण तथा शब्द-ज्ञान अपेक्षित है।
How to learn Sanskrit translation? Language is an effort-making ritual that determines the person’s personality. Knowledge of any language comes from continuous study of that language. Therefore, it is a work that is going on continuously. The study person of continuity leads to the desired position. In the field of knowledge of language, there is a key to dictionary, grammar and experiment method. All the writers and poets have been there in the world They have special properties in them.
कर्त्ता एवं क्रिया का प्रयोग
क्रिया सदैव अपने कर्त्ता के अनुसार ही प्रयुक्त होती है। कर्त्ता जिस पुरुष, वचन तथा काल का होता है, क्रिया भी उसी पुरुष, वचन तथा काल की ही प्रयुक्त होती है। यह स्पष्ट ही किया जा चुका है कि मध्यम पुरुष में युष्मद् शब्द (त्वम्) के रूप तथा उत्तम पुरुष में अस्मद् शब्द (अहम्) के रूप ही प्रयुक्त होते हैं। शेष जितने भी संज्ञा या सर्वनाम के रूप हैं, वे सब प्रथम पुरुष में ही प्रयोग किये जाते हैं।
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | वहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथम पुरुष | सः (वह) |
तौ (वे दोनों) |
ते (वे सब) |
मध्यम पुरुष | त्वं (तुम) |
युवां (तुम दोनों) |
यूयं (तुम सब) |
उत्तम पुरुष | अहं (मैं) |
आवां (हम दोनों) |
वयं (हम सब) |
उदाहरण
- वह पढ़ता है। – सः पठति।
उपर्युक्त वाक्य में कर्त्ता “वह” तथा क्रिया “पठ्” है। कर्त्ता एकवचन-प्रथम पुरुष का है। अतः क्रिया का प्रयोग कर्त्ता के अनुसार अर्थात क्रिया एकवचन-प्रथम पुरुष की आएगी। ‘पठ् धातु‘ का रूप एकवचन-प्रथम पुरुष में ‘पठति’ होता है। अतः उपर्युक्त वाक्य का अनुवाद हुआ “सः पठति।“।
हिन्दी से संस्कृत में अनुवाद
Hindi to Sanskrit Translation
हिन्दी से संस्कृत में अनुवाद करते समय निम्नलिखित बातें ध्यान में रखनी चाहिये-
- कारक या विभक्ति के अनुसार संज्ञा, सर्वनाम एवं विशेषण शब्दों के रूप लिखे जायें।
- संज्ञा या सर्वनाम शब्दों के पुरुष, लिंग एवं वचन के अनुसार ही क्रिया का प्रयोग किया जाये।
- क्रिया का प्रयोग धातु रूपों के अनुसार सम्बन्धित लिंग, वचन एवं पुरुष के अनुसार किया जाये।
- विशिष्ट अव्यय एवं धातुओं के अनुसार ही विभक्ति एवं कारक का प्रयोग हो उपयुक्त प्रत्यय लगाकर ही शब्दों की रचना हो।
यहाँ कुछ आदर्श वाक्यों का हिन्दी से संस्कृत में अनुवाद दिया गया है, जिससे शिक्षार्थियों को अनुवाद करने में सहायता मिलेगी।
1. वर्तमान काल (Present Tense)
#. | Hindi sentence | Sanskrit sentence |
---|---|---|
1. | बालक हँसता है। | बालकः हँसति । |
2. | दो बालक हँसते हैं। | बालकौ हँसतः। |
3. | सब बालक हँसते हैं। | बालका: हँसन्ति। |
4. | तुम कहाँ जाते हो ? | त्वं कुत्र गच्छसि ? |
5. | तुम दोनों कहाँ जाते हो? | युवां कुत्र गच्छथः? |
6. | तुम सब कहाँ रहते हो? | यूयं कुत्र निवसथ:? |
7. | मैं पुस्तक पढ़ता हूँ। | अहं पुस्तकं पठामि। |
8. | हम दोनों भोजन करते हैं। | आवाम् भोजनं कुर्यावः। |
9. | हम सब पुस्तकें पढ़ते हैं। | वयं पुस्तकानि पठामः। |
10. | पत्ते और फल गिरते हैं। | त्राणि फलानि च पतन्ति । |
ऊपर के वाक्यों को ध्यानपूर्वक देखो। कर्ता के वचन एवं पुरुष के अनुसार ही क्रिया के पुरुष एवं वचन हैं।
2. भूतकाल (Past Tense)
#. | Hindi sentence | Sanskrit sentence |
---|---|---|
1. | शीला ने पुस्तक पढ़ी। | शीला पुस्तकम् अपठत् । |
2. | उन दोनों ने कहा। | तौ अवदताम्। |
3. | मैं दौड़ा। | अहम् अधावम् । |
4. | तुम दोनों खेले। | युवाम् अक्रीडतम् । |
5. | साधु ने क्या पूछा? | साधु किम् अपृच्छत् ? |
उपरोक्त वाक्यों में क्रिया भूतकाल (लङ् लकार) में प्रयुक्त हुई है तथा कर्ता के वचन एवं पुरुष के अनुसार क्रिया प्रयोग हुई है।
3. सामान्य भविष्यत् काल या लृट् लकार वाक्य (Simple Future Tense or Sentence)
#. | Hindi sentence | Sanskrit sentence |
---|---|---|
1. | तुम कब जाओगे? | त्वं कदा गमिष्यसि ? |
2. | हम खेलेंगे। | वयं क्रीडिष्यामः। |
3. | पत्ते गिरेंगे। | पत्राणि पतिष्यन्ति। |
4. | बन्दर दौड़ेगे। | वानराः धावणिष्यन्ति। |
5. | घोड़े नहीं दौड़ेगे। | अश्वाः न धावणिष्यन्ति। |
6. | छात्र शाम को नहीं खेलेंगे। | छात्राः सायंकाले न खेलिष्यन्ति। |
7. | पके हुए फल गिरेंगे। | क्वानि फलानि पतिष्यन्ति। |
8. | मेहमान कल आयेंगे। | अतिथयः श्वः आगमिष्यन्ति। |
9. | तुम सब वहाँ खेलोगे। | यूयं तत्र खेलियष्यथ। |
10. | क्या आप यहाँ नहीं आयेंगे? | किं भवान् अत्र न आगमिष्यसि ? |
उपरोक्त वाक्यों में धातु के रूप लृट् लकार के अनुसार कर्ता के वचन एव पुरुष के अनुसार प्रयुक्त हुए हैं।
4. आज्ञार्थक वाक्य (Imperative Sentence)
#. | Hindi sentence | Sanskrit sentence |
---|---|---|
1. | वह वहाँ से चला जाये। | सः तत्रतः गच्छतु।। |
2. | वे दोनों पुस्तक पढ़े। | तौ पुस्तकम् पठताम्। |
3. | वे सब खेलें। | ते क्रीडन्तु । |
4. | तुम आसन पर बैठो। | त्वं आसने तिष्ठ। |
5. | तुम दोनों यहाँ आओ। | युवाम् अंत्र आगच्छताम्। |
6. | हम सब रक्षा करें। | वयं रक्षाम् ।। |
उपरोक्त वाक्यों में क्रिया कर्ता के वचन और पुरुष के अनुसार (लोट् लकार) में हैं।
अनुवाद हेतु कुछ अन्य हिन्दी वाक्य और दिये जा रहे हैं (Some other Hindi sentences for translation are being given):
#. | Hindi sentence | Sanskrit sentence |
---|---|---|
1. | वह बेल से फूल चुनता है। | सः लतायाः पुष्पाणि चिनोति। |
2. | गुरु शिष्य को धर्म की बात बताता है। | गुरु शिष्यं धर्म शास्ति।। |
3. | ग्वाला गाय से दूध दुहता है। | गोप: गां पय: दोग्धि। |
4. | दरिद्र राजा से कपड़ा माँगता है। | दरिद्रः राजाम् वस्त्रं याचते । |
5. | वह चावलों से भात पकाता है। | सः तण्दुलान् ओदनं पचति । |
6. | राजा चोर को सौ रुपये जुर्माना करता है। | राजा चोरः शतं रुपाणि दंडयति । |
7. | चोर राजा के हजार रुपये चुराता है। | चोर: राजन् सहस्रं रुपाणि चोरयति । |
8. | वह गाँव को बकरी ले जाता है। | सः ग्राममजां नयति । |
9. | चोर कंजूस का धन ले गया। | चोरः कृपणं धनम हरत्।। |
10. | लोग धरती से रत्न निकालते हैं। | जना: वसुधां रत्नानि किषयन्ति। |
हिन्दी से संस्कृत में अनुवाद
(Hindi to Sanskrit Translation)
1. हिन्दी (For Translation)
माता और मातृभूमि ये दोनों संसार में श्रेष्ठ हैं। बालक के प्रति माता का स्वाभाविक प्रेम होता है। बालक के लिए वह सभी वस्तुओं को छोड़ सकती है। उसकी सदैव यह इच्छा रहती है कि मेरा बालक सुखी हो, गुणवान और विद्वान् हो। बालक के लिए वह अपने कष्टों के विषय में नहीं सोचती। वह सदा उसके सुखों के बारे में सोचती है। अत: पत्र का भी माता पर असाधारण प्रेम होना स्वाभाविक है।
संस्कृत (Translated)
माता, मातृभूमिश्च द्वे ऐवैते संसारे श्रेष्ठे। बालके प्रति मातु: स्वाभाविकम् । भवति। बालकस्य कृते सा सर्वमपि वस्तुजातं त्यक्तुं शक्नोति । तस्या सदैव एषा इच्छा भवति, यन्मम् बालकः सदा सुखी गुणवान् विद्वान् च भवतु । बालकस्य कृते सा निजं कष्टं नैवं चिन्तयति सा सदा तस्य सुखचिन्तामेव करोति। अतः पुत्रस्यापि मातृरूपरि स्वभाविकमेव वर्तते ।
2. हिन्दी (For Translation)
माता तथा जन्मभूमि स्वर्ग से भी श्रेष्ठ होती हैं। सब बालक अपना अपना कार्य करते हैं । अच्छा राजा प्रजा की सेवा करता है। मैंने ऐसा काम कभी भी नहीं किया। बसंत ऋतु का वर्णन किसने किया? इस कार्य को शीघ्र करो। बोलो मत, अपना अपना कार्य करें। आलस्य छोड़कर नित्य कर्मों को करो। मैं तेरा वचन पालन करूंगा।
संस्कृत (Translated)
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी। बालका: स्व-स्वकार्य कुर्वन्ति। उत्तम: नृपः प्रजानाम् सेवां करोति । अहं एषः कार्य: कदापि मा अकुर्वम्। बसन्त ऋतु: वर्णन: क: अकरोत् ? इदम् कार्यम् शीघ्रम् कुरु। मा वदं स्व-स्वकार्य कुरु। आलस्यं परित्यज्य नित्यकर्मम् । कुरु, अहम् तव वचन पालनं करिष्यामि।
संस्कृत से हिन्दी में अनुवाद
(Sanskrit to Hindi Translation)
1. संस्कृत (For Translation)
त्वं रात्रिन्दिनं किं करोषि। वयं कुत्सितानि कार्याणि कदापि न कुर्मः। गौतम सर्वासु विद्यासु विलक्षणोऽभवत्। सः विद्वानपि अतिदरिद्रता भार्यया प्रेरित भिक्षायै ग्रामान्तरम् अगच्छत् । त्र्योधन: विनष्टं रथिवाश्वरोहं वीक्ष्य सशोक दीर्घम् अशोचत् ।
हिन्दी में अनुवाद (Translated)
तुम रात-दिन क्या करते हो? हम सब बुरे कर्मों को कभी नहीं करते। गौतम सभी । विद्याओं में प्रवीण थे। यह विद्वान् भी बहुत दरिद्र स्त्री से प्रेरित होकर भिक्षा के लिए गाँव गया। दुर्योधन ने विनष्टता की ओर रथ रोककर बहुत देर तक शोकमग्न होकर सोचा।
देखें – Important Verbs of Sanskrit Grammar For Sanskrit Translation
अपठित गद्यांश एवं पद्यांश का हिन्दी में अनुवाद(Translation from Unread Prose and Poetry to Hindi):
1. संस्कृत गद्य
यात्रा न केवल मनोरंजनात् प्रत्युत शिक्षणाय अपि भवति । यत्कञ्चित् । पुस्तकैः नावगम्यते तत् यात्राभिः स्पष्टं भवति । कश्चित् यात्रा कार्यवशेत् भवन्ति कश्चित् ।
च मनोरंजनार्थम् । विद्यालया: ऐतिहासिक स्थानाना महत्वपूर्णनगराणा च: दर्शनाय छात्रान् ।
उत्साहयन्ति।
हिन्दी अर्थ
यात्रा न केवल मनोरंजन के लिए अपितु शिक्षा के लिए भी होती है। जो
कुछ पुस्तकों से भी नहीं जाना जाता, वह यात्राओं से स्पष्ट हो जाता है। कोई यात्रा कार्यवश
होती है तथा कोई मनोरंजन के लिए। विद्यालय छात्रों को ऐतिहासिक स्थानों एवं महत्वपूर्ण
नगरों के दर्शन के लिए उत्साहित करते हैं।
2. संस्कृत गद्य
यदा आकाशात् प्रथम जल बिन्दवः पृथिव्या पतन्ति तदा उत्सव इव
जायन्ते । सर्व जगत् आनन्देन् परिपूर्ण भवति। शस्याणि रोहन्तिः नव अंकुरा जायन्ते । पक्षिणः
सुखेन कूजान्त। पशवश्च मूदिताः इतस्ततो धावन्ति। कृषकाः बलावदा हल नियोज्य क्षेत्र
गच्छन्ति कर्षन्ति च भूमिम्। कालेनम् सर्वत्रः हरीतिमा प्रसारित । नद्यश्तड़ागाश्च जलपूर्णा:
जायन्ते। एवं वर्षा सर्वत्र मंगलं कुर्वन्ति।
हिन्दी अर्थ
जब आकाश से पृथ्वी पर वर्षा की प्रथम बूंदें गिरती हैं तब उत्सव जैसा
होता है। बीज उगते हैं। नवीन अंकुर पैदा होते हैं। पक्षी सुखपूर्वक वाते हैं। पशु प्रसन्न
होकर इधर-उधर दौड़ते हैं। किसान बैलों के साथ हल लेटर खेतों पर जाते हैं तथा भूमि
जोतते हैं। कुछ समय में सभी जगह हरियाली फैल जाती है। नदी तथा तालाब जल से भर
जाते हैं तथा वर्षा सभी जगह आनन्द करती है।
3. संस्कृत पद्य
प्राक् पादयोः पतित खादति पृष्ठमास,
कर्णे कलं किमपि रौति शनैर्विचित्रम्।
छिद निरुप्य सहसा प्रविशत्यशक,
सर्व खलस्य चरित मशवः करोति।।
हिन्दी अर्थ
पहले पैरों में गिरता है, फिर पीठ के माँस को खाता है, कान में कुछ
आवाज करता है फिर धीरे से विचित्र शोर करता है। छेद देखकर सहसा नि:शंक होकर घुस ।
जाता है। मच्छर दुष्टजन के समान व्यवहार करता है।
सीखे – ENGLISH TO SANSKRIT TRANSLATION
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