Sandhi in Hindi
संधि : हमारी हिंदी भाषा में संधि के द्वारा शब्दों को लिखने की परम्परा कम है। लेकिन संस्कृत में संधि के बिना कोई काम नहीं चलता। संस्कृत व्याकरण की परम्परा बहुत पुरानी है। भाषा को अच्छी तरह जानने के लिए व्याकरण में संधि को भी पढ़ना जरूरी है। हिन्दी शब्दों के निर्माण में भी संधि योगदान देती हैं।
संधि की परिभाषा
उदाहरण के लिए-
देव + इंद्र = देवेंद्र,
भानु + उदय = भानूदय।
संधि की अन्य परिभाषाएं-
- पास-पास स्थित पदों के समीप विद्यमान वर्णों के मेल से होने वाले विकार को संधि कहते हैं।
- जब दो शब्द मिलते हैं तो पहले शब्द की अंतिम ध्वनि और दूसरे शब्द की पहली ध्वनि आपस में मिलकर जो परिवर्तन लाती हैं उसे संधि कहते हैं।
- जब दो शब्द आपस में मिलकर कोई तीसरा शब्द बनाते हैं तब जो परिवर्तन होता है, उसे संधि कहते हैं।
संधि विच्छेद: संधि किये गये शब्दों को अलग-अलग करके पहले की तरह करना ही संधि विच्छेद कहलाता है।
संधि के उदाहरण
सत् + आनंद =सदानंद,
यथा + अवसर = यथावसर,
मही + इंद्र = महींद्र,
सत् + जन = सज्जन,
देव + इंद्र = देवेंद्र।
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संधि के भेद
हिंदी व्याकरण में संधि के भेद तीन प्रकार के हैं- (i) स्वर संधि, (ii) व्यंजन संधि, और (iii) विसर्ग संधि।
1. स्वर संधि | मुनि+इन्द्र = मुनीन्द्र (इ+इ=ई) |
2. व्यंजन संधि | सत्+जन = सज्जन (त्+ज=ज्ज) |
3. विसर्ग संधि | नि:+अक्षर = निरक्षर (अ+:+अ=र) |
स्वर संधि
स्वर संधि के उदाहरण
- वसुर+अरि = सुरारि (अ+अ = आ)
- विद्या+आलय = विद्यालय (आ+आ = आ)
- मुनि+इन्द्र = मुनीन्द्र (इ+इ = ई)
- श्री+ईश = श्रीश ( ई+ई+ = ई)
- गुरु+उपदेश = गुरुपदेश (उ+उ = ऊ)
स्वर संधि के प्रकार
हिन्दी में स्वर संधि के पाँच प्रकार के भेद होते हैं- (i) दीर्घ संधि, (ii) गुण संधि, (iii) वृद्धि संधि, (iv) यण संधि, और (v) अयादि संधि।
दीर्घ संधि | अधि + अंश = अधिकांश (अ+अ = आ) |
गुण संधि | उप + इंद्र = उपेंद्र (अ+इ = ए) |
वृद्धि संधि | एक + एक = एकैक (अ+ए = ऐ) |
यण संधि | अति + अन्त = अत्यन्त (इ+अ = य) |
अयादि संधि | शे + अन = शयन (ए+अ = अय) |
1. दीर्घ संधि
यदि दो सजातीय स्वर आस-पास आये, तो दोनों के मेल से सजातीय दीर्घ स्वर हो जाता है, जिसे दीर्घ संधि कहते हैं। इसे ह्रस्व संधि भी कहते हैं।
- सूत्र– अक: सवर्ण दीर्घ:
अर्थात् अक् प्रत्याहार के बाद उसके समान वर्ण आये तो दोनो मिलकर दीर्घ बन जाते हैं। जब ( अ, आ ) के साथ (अ, आ ) हो तो ‘आ‘ बनता है , जब ( इ , ई ) के साथ ( इ , ई ) हो तो ‘ई‘ बनता है , जब ( उ , ऊ ) के साथ ( उ , ऊ ) हो तो ‘ऊ‘ बनता है।
दीर्घ संधि के उदाहरण
- धर्म + अर्थ = धर्मार्थ
- पुस्तक + आलय = पुस्तकालय
- विद्या + अर्थी = विद्यार्थी
- रवि + इंद्र = रविन्द्र
- गिरी +ईश = गिरीश
- मुनि + ईश =मुनीश
- मुनि +इंद्र = मुनींद्र
- भानु + उदय = भानूदय
- वधू + ऊर्जा = वधूर्जा
- विधु + उदय = विधूदय
- भू + उर्जित = भुर्जित
अ + अ = आ
- अधि + अंश = अधिकांश
- अन्न + अभाव = अन्नाभाव
- अन्य + अन्य = अन्यान्य
- अर्ध + अंगिनी = अर्धागिनी
- उत्तम + अंग = उत्तमांग
- देव + अर्चन = देवार्चन
- देह + अंत = देहांत
- दैत्य + अरि = दैत्यारि
- धन + अर्थी = धनार्थी
- धर्म + अर्थ = धर्मार्थ
- पर + अधीन = पराधीन
- परम + अणु = परमाणु
- परम + अर्थ = परमार्थ
- मत + अनुसार = मतानुसार
- वीर + अंगना = वीरांगना
- वेद + अंत = वेदांत
- शरण + अर्थी = शरणार्थी
- शस्त्र + अस्त्र = शस्त्रास्त्र
- शास्त्र + अर्थ = शास्त्रार्थ
- सत्य + अर्थी = सत्यार्थी
- सूर्य + अस्त = सूर्यास्त
- स्व + अर्थ = स्वार्थ
- स्वर + अर्थी = स्वार्थी
अ + आ = आ
- कुश + आसन = कुशासन
- देव + आलय = देवालय
- धर्म + आत्मा = धर्मात्मा
- नील + आकाश = नीलाकाश
- न्याय + आलय = न्यायालय
- पुस्तक + आलय = पुस्तकालय
- प्राण + आयाम = प्राणायाम
- भोजन + आलय = भोजनालय
- मरण + आसन्न = मरणासन्न
- रत्न + आकर = रत्नाकर
- विस्मय + आदि = विस्मयादि
- शिव + आलय = शिवालय
- शुभ + आरंभ = शुभारंभ
- स + आंनद = सानंद
- स + आकार = साकार
- सत्य + आग्रह = सत्याग्रह
- हिम + आलय = हिमालय
आ + अ = आ
- कदा + अपि = कदापि
- दीक्षा + अंत = दीक्षांत
- परीक्षा + अर्थी = परीक्षार्थी
- माया + अधीन = मायाधीन
- यथा + अर्थ = यथार्थ
- रेखा + अंकित = रेखांकित
- वर्षा + अंत = वर्षांत
- विद्या + अर्थी = विद्यार्थी
- शिक्षा + अर्थी = शिक्षार्थी
- सीमा + अंत = सीमांत
आ + आ = आ
- गदा + आघात = गदाघात
- दया + आनंद = दयानंद
- महा + आत्मा = महात्मा
- महा + आनंद = महानंद
- महा + आशय = महाशय
- वार्ता + आलाप = वार्तालाप
- विद्या + आलय = विद्यालय
- श्रद्धा + आनंद = श्रद्धानंद
इ + इ = ई
- अति + इव = अतीव
- अभि + इष्ट = अभीष्ट
- कपि + इंद्र = कपीन्द्र
- कवि + इंद्र = कवीन्द्र
- क्षिति + इंद = क्षितिन्द्र
- गिरि + इंद्र = गिरींद्र
- प्रति + इति = प्रतीति
- मुनि + इंद्र = मुनींद्र
- रवि + इंद्र = रविन्द्र
इ + ई = ई
- कपि + ईश = कपीश
- कवि + ईश = कवीश
- गिरि + ईश = गिरीश
- परि + ईक्षा = परीक्षा
- मुनि + ईश्वर = मुनीश्वर
- वारि + ईश = वारीश
- हरि + ईश = हरीश
ई + इ = ई
- नदी + इंद्र = नदीन्द्र
- नारी + इंद्र = नारीन्द्र
- नारी + इच्छा = नारीच्छा
- पत्नी + इच्छा = पत्नीच्छा
- मही + इंद्र = महींद्र
- शती + इंद्र = शचीन्द्र
ई + ई = ई
- गौरी + ईश = गौरीश
- नदी + ईश = नदीश
- नारी + ईश्वर = नारीश्वर
- पृथ्वी + ईश = पृथ्वीश
- पृथ्वी + ईश्वर = पृथ्वीश्वर
- रजनी + ईश = रजनीश
- लक्ष्मी + ईश = लक्ष्मीश
- सती + ईश = सतीश
उ + उ = ऊ
- सु + उक्ति = सूक्ति
- भानु + उदय = भानूदय
- गुरु + उपदेश = गुरूपदेश
- लघु + उत्तर = लघूत्तर
उ + ऊ = ऊ
- सिंधु + ऊर्मि = सिंधूर्मि
- लघु + ऊर्मि = लघूर्मि
- बहु + ऊर्ध्व = बहूर्ध्व
- धातु + ऊष्मा = धतूष्मा
- अंबु + ऊर्मि = अबूंर्मि
- भानु + ऊर्ध्व = भानूवर्ध्व
ऊ + उ = ऊ
- भू + ऊर्जा = भूर्जा
- भू + उत्सर्ग = भूत्सर्ग
- भू + उर्ध्व = भूर्ध्व
- चमू + उत्तम = चमूत्तम
- वधू + उत्सव = वधूत्सव
- वधू + उपालंभ = वधूपालंभ
- वधू + ऊर्मि = वधूर्मि
- वधू + उपकार = वधूपकार
- साधु + उत्सव = साधूत्सव
ऊ + ऊ = ऊ
- भू + उर्जा = भूर्जा
- वधू + ऊर्मि = वधूर्मि
- सरयू + ऊर्मि = सरयूर्मि
ऋ + ऋ = ऋ
- मातृ + तृण = मातृण
- पितृ + ऋण = पितृण
2. गुण संधि
जब ( अ , आ ) के साथ ( इ , ई ) हो तो ‘ए‘ बनता है , जब ( अ , आ )के साथ ( उ , ऊ ) हो तो ‘ओ‘ बनता है , जब ( अ , आ ) के साथ ( ऋ ) हो तो ‘अर‘ बनता है। उसे गुण संधि कहते हैं।
- सूत्र– आद्गुण:
गुण संधि के उदाहरण
- नर + इंद्र + नरेंद्र
- सुर + इन्द्र = सुरेन्द्र
- ज्ञान + उपदेश = ज्ञानोपदेश
- भारत + इंदु = भारतेन्दु
- देव + ऋषि = देवर्षि
- सर्व + ईक्षण = सर्वेक्षण
अ + इ = ए
- उप + इंद्र = उपेंद्र
- देव + इंद्र = देवेंद्र
- धर्म + इंद्र = धर्मेंद्र
- नर + इंद्र = नरेंद्र
- पुष्प + इंद्र = पुष्पेंद्र
- भारत + इंदु = भारतेंदु
- राज + इंद्र = राजेंद्र
- वीर + इंद्र = वीरेंद्र
- शुभ + इच्छा = शुभेच्छा
- सत्य + इंद्र = सत्येंद्र
- सुर + इंद = सुरेंद्र
- स्व + इच्छा = स्वेच्छा
अ + ई = ए
- कमल + ईश = कमलेश
- गण + ईश = गणेश
- दिन + ईश = दिनेश
- देव + ईश = देवेश
- नर + ईश = नरेश
- परम + ईश्वर = परमेश्वर
- सर्व + ईश्वर = सर्वेश्वर
- सुर + ईश = सुरेश
- सोम + ईश = सोमेश
आ + इ = ए
- महा + इंद्र = महेंद्र
- यथा + इष्ट – यथेष्ट
- रमा + इंद्र = रमेन्द्र
- राजा + इंद्र = राजेन्द्र
आ + ई = ए
- उमा + ईश = उमेश
- महा + ईश = महेश
- महा + ईश्वर = महेश्वर
- रमा + ईश = रमेश
- राका + ईश = राकेश
- राजा + ईश = राजेश
- लंका + ईश = लंकेश
अ + उ = ओ
- चंद्र + उदय = चंद्रोदय
- देश + उपकार = देशोपकार
- नर + उत्तम = नरोत्तम
- नील + उत्पल = नीलोत्पल
- पर + उपकार = परोपकार
- पूर्व + उदय = पूर्वोदय
- बंसत + उत्सव = बसंतोत्सव
- महा + उत्सव = महोत्सव
- रोग + उपचार = रोगोपचार
- लोक + उक्ति = लोकोक्ति
- लोक + उपचार = लोकोपचार
- विवाह + उत्सव = विवाहोत्सव
- वीर + उचित = वीरोचित
- सर्व + उदय = सर्वोदय
- सूर्य + उदय = सूर्योदय
- हित + उपदेश = हितोपदेश
अ + ऊ = ओ
- उच्च + ऊर्ध्व = उच्चोर्ध्व
- जल + ऊर्मि = जलोर्मि
- नव + ऊढ़ा = नवोढ़ा
- समुद्र + ऊर्मि = समुद्रोर्मि
- सूर्य + ऊर्जा = सूर्योर्जा
आ + उ = ओ
- गंगा + उदक = गंगोदक
- महा + उत्सव = महोत्सव
- महा + उदधि = महोदधि
- महा + उदय = महोदय
- महा + उद्यम = महोद्यम
- महा + उपकार = महोपकार
- महा + उष्ण = महोष्ण
- महा + ऊष्ण = महोष्ण
- विद्या + उन्नति = विद्योन्नति
आ + ऊ = ओ
- गंगा + ऊर्मि = गंगोर्मि
- दया + ऊर्मि = दयोर्मि
- महा + ऊर्जा = महोर्जा
- महा + ऊर्ध्व = महोर्ध्व
- महा + ऊर्मि = महोर्मि
- महा + ऊष्मा = महोष्मा
अ + ऋ = अर्
- देव + ऋषि = देवर्षि
- ब्रह्म + ऋषि = ब्रह्मर्षि
- सप्त + ऋषि = सप्तर्षि
आ + ऋ = अर्
- महा + ऋषि = महर्षि
- राजा + ऋषि = राजर्षि
3. वृद्धि संधि
जब ( अ , आ ) के साथ ( ए , ऐ ) हो तो ‘ ऐ ‘ बनता है और जब ( अ , आ ) के साथ ( ओ , औ )हो तो ‘ औ ‘ बनता है। उसे वृधि संधि कहते हैं।
- सूत्र– वृद्धिरेचि
वृधि संधि के उदाहरण
- मत + एकता = मतैकता
- एक + एक =एकैक
- धन + एषणा = धनैषणा
- सदा + एव = सदैव
- महा + ओज = महौज
अ + ए = ऐ
- एक + एक = एकैक
- लोक + एषणा = लोकैषणा
- वित + एषणा = वितैषणा
अ + ऐ = ऐ
- नव + ऐश्वर्य = नवैश्वर्य
- भाव + ऐक्य = भवैक्य
- मत + ऐक्य = मतैक्य
आ + ए = ऐ
- तथा + एव = तथैव
- सदा + एव = सदैव
अ + ओ = औ
- जल + ओघ = जलौघ
- दंत + ओष्ठ = दंतौष्ठ
- परम + ओज = परमौज
- वन + ओषधि = वनौषधि
अ + औ = औ
- देव + औदार्य = देवौदार्य
- परम + औदार्य = परमौदार्य
- परम + औषध = परमौषध
आ + ओ = औ
- महा + ओज = महौज
- महा + ओजस्वी = महौजस्वी
आ + औ = औ
- महा + औघ = महौघ
- महा + औत्सुक्य = महोत्सुक्य
- महा + औदार्य = महौदार्य
- महा + औषध = महौषध
- महा + औषधि = महौषधि
4. यण संधि
जब ( इ , ई ) के साथ कोई अन्य स्वर हो तो ‘ य ‘ बन जाता है , जब ( उ , ऊ ) के साथ कोई अन्य स्वर हो तो ‘ व् ‘ बन जाता है , जब ( ऋ ) के साथ कोई अन्य स्वर हो तो ‘ र ‘ बन जाता है।
- सूत्र– एकोयणचि
यण संधि के तीन प्रकार के संधि युक्त्त पद होते हैं-
- य से पूर्व आधा व्यंजन
- व् से पूर्व आधा व्यंजन
- त्र युक्त शब्द
यण स्वर संधि में एक शर्त भी दी गयी है कि य और त्र में स्वर होना चाहिए और उसी से बने हुए शुद्ध व् सार्थक स्वर को + के बाद लिखें। उसे यण संधि कहते हैं।
यण संधि के उदाहरण
- इति + आदि = इत्यादि
- परी + आवरण = पर्यावरण
- अनु + अय = अन्वय
- सु + आगत = स्वागत
- अभी + आगत = अभ्यागत
य से पूर्व आधा व्यंजन (इ / ई + असमान स्वर = य)
इ + अ = य
- अति + अधिक = अत्यधिक
- अति + अन्त = अत्यन्त
- अति + अल्प = अत्यल्प
- यदि + अपि = यद्यपि
ई + अ = य
- नदी + अम्बु = नद्यम्बु
इ + आ = या
- अति + आचार = अत्याचार
- अति + आनंद = अत्यानंद
- अति + आवश्यक = अत्यावश्यक
- अभि + आगत = अभ्यागत
- इति + आदि = इत्यादि
- परि + आवरण = पर्यावरण
- वि + आप्त = व्याप्त
ई + आ = या
- सखी + आगमन = सख्यागमन
- देवी + आगम = देव्यागम
- नदी + आगम = नद्यागम
- नदी + आमुख = नद्यामुख
इ + उ = यु
- अति + उत्तम = अत्युत्तम
- उपरि + युक्त = उपर्युक्त
- प्रति + उपकार = प्रत्युपकार
इ + ऊ = यू
- अति + ऊष्ण = अत्यूष्म
- अति + ऊर्ध्व = अत्यूर्ध्व
- नि + ऊन = न्यून
- वि + ऊह = व्यूह
ई + उ = यु
- स्त्री + उपयोगी = स्त्रीयुपयोगी
ई + ऊ = यू
- नदी + ऊर्मि = नद्यूर्मि
इ + ए = ये
- प्रति + एक = प्रत्येक
- अधि + एषणा = अध्येषणा
इ + ऐ = यै
- अति + एश्वर्य = अत्यैश्वर्य
ई + ऐ = यै
- सखी + ऐक्य = सख्यैक्य
- देवी + ऐश्वर्य = देव्यैश्वर्य
- नदी + ऐश्वर्य = नद्यैश्वर्य
इ + ओ = यो
- अति + ओज = अत्योज
- दधि + ओदन = दध्योदन
इ + औ = यौ
- अति + औदार्य = अत्यौदार्य
- अति + औचित्य = अत्यौचित्य
ई + औ = यौ
- वाणी + औचित्य = वाण्यौचित्य
व् से पूर्व आधा व्यंजन (उ / ऊ + असमान स्वर = व)
उ + अ = व
- अनु + अय = अन्वय
- मनु + अंतर = मवंतर
- सु + अच्छ = स्वच्छ
- मधु + अरि = मध्वरि
- सु + अल्प = स्वल्प
उ + आ = वा
- मधु + आलय = मध्वालय
- लघु + आदि = लघ्वादि
- सु + आगत = स्वागत
उ + इ = वि
- अनु + इति = अन्विति
- अनु + इत = अन्वित
उ + ई = वी
- अनु + ईषण = अन्वीक्षण
उ + ए = वे
- प्रभु + एषणा = प्रभ्वेषणा
- अनु + एषण = अन्वेषण
उ + ऐ = वै
- अल्प + ऐश्वर्य = अल्पेश्वर्य
उ + ओ = वो
- गुरु + ओदन = गुरूदन
- लघु + ओष्ठ = लघ्वोष्ठ
उ + औ = वौ
- गुरु + औदार्य = गुर्वोदार्य
ऊ + आ = वा
- वधू + आगम = वध्यागम
ऊ + ऐ = एै
- वधू + ऐश्वर्य = वध्वैश्वर्य
त्र युक्त शब्द (ऋ + असमान स्वर = र)
ऋ + अ = र
- पितृ + अनुमति = पित्रनुमति
- धातृ + अंश = धात्रांश
ऋ + आ = रा
- पितृ + आदेश = पित्रादेश
- पितृ + आज्ञा = पित्राज्ञा
- मातृ + आज्ञा = मात्राज्ञा
- मातृ + आनंद = मात्रानंद
ऋ + इ = रि
- पितृ + इच्छा = पित्रिच्छा
- मातृ + इच्छा = मात्रिच्छा
ऋ + उ = रु
- मातृ + उपदेश = मात्रुपदेश
5. अयादि संधि
जब ( ए , ऐ , ओ , औ ) के साथ कोई अन्य स्वर हो तो ‘ ए – अय ‘ में , ‘ ऐ – आय ‘ में , ‘ ओ – अव ‘ में, ‘ औ – आव ‘ ण जाता है। य , व् से पहले व्यंजन पर अ , आ की मात्रा हो तो अयादि संधि हो सकती है लेकिन अगर और कोई विच्छेद न निकलता हो तो + के बाद वाले भाग को वैसा का वैसा लिखना होगा। उसे अयादि संधि कहते हैं।
- सूत्र– एचोऽयवायाव:
अयादि संधि के उदाहरण
- ने + अन = नयन
- नौ + इक = नाविक
- भो + अन = भवन
- पो + इत्र = पवित्र
- भौ + उक = भावुक
ए + अ = अय
- शे + अन = शयन
- ने + अन = नयन
- चे + अन = चयन
ऐ + अ = आय
- गै + अक = गायक
- नै + अक = नायक
ओ + अ = अव्
- भो + अन = भवन
- पो + अन = पवन
- श्रो + अन = श्रवण
औ + अ = आव्
- श्रौ + अन = श्रावण
- पौ + अन = पावन
- पौ + अक = पावक
औ + इ = आवि
- पौ + इत्र = पवित्र
- नौ + इक = नाविक
व्यंजन संधि
जब व्यंजन को व्यंजन या स्वर के साथ मिलाने से जो परिवर्तन होता है, उसे व्यंजन संधि कहते हैं।
व्यंजन संधि के उदाहरण
- जगत्+नाथ = जगन्नाथ (त्+न = न्न)
- सत्+जन = सज्जन (त्+ज = ज्ज)
- उत्+हार = उद्धार (त्+ह =द्ध)
- सत्+धर्म = सद्धर्म (त्+ध =द्ध)
- आ+छादन = आच्छादन (आ+छा = च्छा)
व्यंजन संधि के नियम
क् के ग् में बदलने के उदाहरण
- दिक् + अम्बर = दिगम्बर
- दिक् + गज = दिग्गज
- वाक् +ईश = वागीश
च् के ज् में बदलने के उदाहरण
- अच् +अन्त = अजन्त
- अच् + आदि =अजादी
ट् के ड् में बदलन के उदाहरण
- षट् + आनन = षडानन
- षट् + यन्त्र = षड्यन्त्र
- षड्दर्शन = षट् + दर्शन
- षड्विकार = षट् + विकार
- षडंग = षट् + अंग
त् के द् में बदलने के उदाहरण:
- तत् + उपरान्त = तदुपरान्त
- सदाशय = सत् + आशय
- तदनन्तर = तत् + अनन्तर
- उद्घाटन = उत् + घाटन
- जगदम्बा = जगत् + अम्बा
प् के ब् में बदलने के उदाहरण
- अप् + द = अब्द
- अब्ज = अप् + ज
क् के ङ् में बदलने के उदाहरण:
- वाक् + मय = वाङ्मय
- दिङ्मण्डल = दिक् + मण्डल
- प्राङ्मुख = प्राक् + मुख
ट् के ण् में बदलने के उदाहरण:
- षट् + मास = षण्मास
- षट् + मूर्ति = षण्मूर्ति
- षण्मुख = षट् + मुख
त् के न् में बदलने के उदाहरण:
- उत् + नति = उन्नति
- जगत् + नाथ = जगन्नाथ
- उत् + मूलन = उन्मूलन
प् के म् में बदलने के उदाहरण:
- अप् + मय = अम्मय
म् + क ख ग घ ङ के उदाहरण:
- सम् + कल्प = संकल्प/सटड्ढन्ल्प
- सम् + ख्या = संख्या
- सम् + गम = संगम
- शंकर = शम् + कर
म् + च, छ, ज, झ, ञ के उदाहरण:
- सम् + चय = संचय
- किम् + चित् = किंचित
- सम् + जीवन = संजीवन
म् + ट, ठ, ड, ढ, ण के उदाहरण:
- दम् + ड = दण्ड/दंड
- खम् + ड = खण्ड/खंड
म् + त, थ, द, ध, न के उदाहरण:
- सम् + तोष = सन्तोष/संतोष
- किम् + नर = किन्नर
- सम् + देह = सन्देह
म् + प, फ, ब, भ, म के उदाहरण:
- सम् + पूर्ण = सम्पूर्ण/संपूर्ण
- सम् + भव = सम्भव/संभव
त् + ग , घ , ध , द , ब , भ ,य , र , व् के उदाहरण:-
- सत् + भावना = सद्भावना
- जगत् + ईश =जगदीश
- भगवत् + भक्ति = भगवद्भक्ति
- तत् + रूप = तद्रूपत
- सत् + धर्म = सद्धर्म
म + य , र , ल , व् , श , ष , स , ह के उदाहरण:-
- सम् + रचना = संरचना
- सम् + लग्न = संलग्न
- सम् + वत् = संवत्
- सम् + शय = संशय
त् + च , ज , झ , ट , ड , ल के उदाहरण:
- उत् + चारण = उच्चारण
- सत् + जन = सज्जन
- उत् + झटिका = उज्झटिका
- तत् + टीका =तट्टीका
- उत् + डयन = उड्डयन
- उत् +लास = उल्लास
- उत् + चारण = उच्चारण
- शरत् + चन्द्र = शरच्चन्द्र
- उत् + छिन्न = उच्छिन्न
त् + श् के उदाहरण:
- उत् + श्वास = उच्छ्वास
- उत् + शिष्ट = उच्छिष्ट
- सत् + शास्त्र = सच्छास्त्र
- सत् + जन = सज्जन
- जगत् + जीवन = जगज्जीवन
- वृहत् + झंकार = वृहज्झंकार
त् + ह के उदाहरण:
- उत् + हार = उद्धार
- उत् + हरण = उद्धरण
- तत् + हित = तद्धित
- तत् + टीका = तट्टीका
- वृहत् + टीका = वृहट्टीका
- भवत् + डमरू = भवड्डमरू
अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, + छ के उदाहरण
- स्व + छंद = स्वच्छंद
- आ + छादन =आच्छादन
- संधि + छेद = संधिच्छेद
- अनु + छेद =अनुच्छेद
- उत् + लास = उल्लास
- तत् + लीन = तल्लीन
- विद्युत् + लेखा = विद्युल्लेखा
म् + च् , क, त, ब , प के उदाहरण
- किम् + चित = किंचित
- किम् + कर = किंकर
- सम् +कल्प = संकल्प
- सम् + चय = संचयम
- सम +तोष = संतोष
- सम् + बंध = संबंध
- सम् + पूर्ण = संपूर्ण
- उत् + हार = उद्धार/उद्धार
- उत् + हृत = उद्धृत/उद्धृत
- पद् + हति = पद्धति
म् + म के उदाहरण:
- सम् + मति = सम्मति
- सम् + मान = सम्मान
- उत् + श्वास = उच्छ्वास
- उत् + शृंखल = उच्छृंखल
- शरत् + शशि = शरच्छशि
म् + य, र, व्,श, ल, स, के उदाहरण
- सम् + योग = संयोग
- सम् + रक्षण = संरक्षण
- सम् + विधान = संविधान
- सम् + शय =संशय
- सम् + लग्न = संलग्न
- सम् + सार = संसार
- आ + छादन = आच्छादन
- अनु + छेद = अनुच्छेद
- शाला + छादन = शालाच्छादन
- स्व + छन्द = स्वच्छन्द
र् + न, म के उदाहरण
- परि + नाम = परिणाम
- प्र + मान = प्रमाण
- वि + सम = विषम
- अभि + सिक्त = अभिषिक्त
- अनु + संग = अनुषंग
भ् + स् के उदाहरण
- अभि + सेक = अभिषेक
- नि + सिद्ध = निषिद्ध
- वि + सम + विषम
- राम + अयन = रामायण
- परि + नाम = परिणाम
- नार + अयन = नारायण
- संसद् + सदस्य = संसत्सदस्य
- तद् + पर = तत्पर
- सद् + कार = सत्कार
विसर्ग संधि
विसर्ग के बाद जब स्वर या व्यंजन आ जाये तब जो परिवर्तन होता है उसे विसर्ग संधि कहते हैं।
विसर्ग संधि के उदाहरण
- मन: + अनुकूल = मनोनुकूल
- नि:+अक्षर = निरक्षर
- नि: + पाप =निष्पाप
विसर्ग संधि के 10 नियम-
- मनः + अनुकूल = मनोनुकूल
- अधः + गति = अधोगति
- मनः + बल = मनोबल
- निः + चय = निश्चय
- दुः + चरित्र = दुश्चरित्र
- ज्योतिः + चक्र = ज्योतिश्चक्र
- निः + छल = निश्छल
- तपः + चर्या = तपश्चर्या
- अन्तः + चेतना = अन्तश्चेतना
- हरिः + चन्द्र = हरिश्चन्द्र
- अन्तः + चक्षु = अन्तश्चक्षु
- दुः + शासन = दुश्शासन
- यशः + शरीर = यशश्शरीर
- निः + शुल्क = निश्शुल्क
- निः + आहार = निराहार
- निः + आशा = निराशा
- निः + धन = निर्धन
- निः + श्वास = निश्श्वास
- चतुः + श्लोकी = चतुश्श्लोकी
- निः + शंक = निश्शंक
- धनुः + टंकार = धनुष्टंकार
- चतुः + टीका = चतुष्टीका
- चतुः + षष्टि = चतुष्षष्टि
- निः + चल = निश्चल
- निः + छल = निश्छल
- दुः + शासन = दुश्शासन
- निः + कलंक = निष्कलंक
- दुः + कर = दुष्कर
- आविः + कार = आविष्कार
- चतुः + पथ = चतुष्पथ
- निः + फल = निष्फल
- निः + काम = निष्काम
- निः + प्रयोजन = निष्प्रयोजन
- बहिः + कार = बहिष्कार
- निः + कपट = निष्कपट
- नमः + ते = नमस्ते
- निः + संतान = निस्संतान
- दुः + साहस = दुस्साहस
- अधः + पतन = अध: पतन
- प्रातः + काल = प्रात: काल
- अन्त: + पुर = अन्त: पुर
- वय: + क्रम = वय:क्रम
- रज: + कण = रज:कण
- तप: + पूत = तप:पूत
- पय: + पान = पय:पान
- अन्त: + करण = अन्त:करण
विसर्ग संधि के अपवाद (1)
- भा: + कर = भास्कर
- नम: + कार = नमस्कार
- पुर: + कार = पुरस्कार
- श्रेय: + कर = श्रेयस्कर
- बृह: + पति = बृहस्पति
- पुर: + कृत = पुरस्कृत
- तिर: + कार = तिरस्कार
- निः + कलंक = निष्कलंक
- चतुः + पाद = चतुष्पाद
- निः + फल = निष्फल
- अन्त: + तल = अन्तस्तल
- नि: + ताप = निस्ताप
- दु: + तर = दुस्तर
- नि: + तारण = निस्तारण
- निः + तेज = निस्तेज
- नम: + ते = नमस्ते
- मन: + ताप = मनस्ताप
- बहि: + थल = बहिस्थल
- निः + रोग = निरोग
- निः + रस = नीरस
- नि: + सन्देह = निस्सन्देह
- दु: + साहस = दुस्साहस
- नि: + स्वार्थ = निस्स्वार्थ
- दु: + स्वप्न = दुस्स्वप्न
- निस्संतान = नि: + संतान
- दुस्साध्य = दु: + साध्य
- मनस्संताप = मन: + संताप
- पुनस्स्मरण = पुन: + स्मरण
- अंतः + करण = अंतःकरण
- नि: + रस = नीरस
- नि: + रव = नीरव
- नि: + रोग = नीरोग
- दु: + राज = दूराज
- नीरज = नि: + रज
- नीरन्द्र = नि: + रन्द्र
- चक्षूरोग = चक्षु: + रोग
- दूरम्य = दु: + रम्य
- अत: + एव = अतएव
- मन: + उच्छेद = मनउच्छेद
- पय: + आदि = पयआदि
- तत: + एव = ततएव
- मन: + अभिलाषा = मनोभिलाषा
- सर: + ज = सरोज
- वय: + वृद्ध = वयोवृद्ध
- यश: + धरा = यशोधरा
- मन: + योग = मनोयोग
- अध: + भाग = अधोभाग
- तप: + बल = तपोबल
- मन: + रंजन = मनोरंजन
- मन: + अनुकूल = मनोनुकूल
- मन: + हर = मनोहर
- तप: + भूमि = तपोभूमि
- पुर: + हित = पुरोहित
- यश: + दा = यशोदा
- अध: + वस्त्र = अधोवस्त्र
विसर्ग संधि के अपवाद (2)
- पुन: + अवलोकन = पुनरवलोकन
- पुन: + ईक्षण = पुनरीक्षण
- पुन: + उद्धार = पुनरुद्धार
- पुन: + निर्माण = पुनर्निर्माण
- अन्त: + द्वन्द्व = अन्तद्र्वन्द्व
- अन्त: + देशीय = अन्तर्देशीय
- अन्त: + यामी = अन्तर्यामी
संधि से अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न-उत्तर
1. संधि किसे कहते हैं?
दो निकटवर्ती वर्णों के परस्पर मेल से होने वाले परिवर्तन को ‘संधि’ कहते हैं। जैसे-
गिरि + ईश = गिरीश,
सत् + जन = सज्जन।
2. संधि कितने प्रकार की होती हैं?
वर्णों के आधार पर संधि के तीन प्रकार की होती हैं-
(i) स्वर संधि,
(ii) व्यंजन संधि,
(iii) विसर्ग संधि।
3. स्वर संधि के सभी भेद लिखिए?
स्वर संधि के पाँच भेद होते हैं, जो इस प्रकार हैं-
1. दीर्घ स्वर संधि,
2. गुण स्वर संधि,
3. वृद्धि स्वर संधि,
4. यण स्वर संधि,
5. अयादि स्वर संधि।
4. व्यंजन संधि किसे कहते हैं? उपयुक्त उदाहरण के साथ बताइए।
संधि के समय जब पहले वर्ण या शब्द के अंत में किसी व्यंजन का प्रयोग हो तो, वह ‘व्यंजन संधि’ कहलाती है। उदाहरण के लिए-
दिक् + विजय = दिग्विजय,
जगत् + अम्बा = जगदम्वा,
वाक् + जाल = वाग्जाल,
जगत् + गुरू = जगद्गुरू,
वाक् + ईश = वागीश,
जगत् + आधार = जगदाधार।
5. विसर्ग संधि किसे कहते हैं? उदाहरण सहित लिखो।
दो वर्णों या शब्दों की संधि के समय जब पहले वर्ण या शब्द के अंत में विसर्ग का प्रयोग हो तो, वह ‘विसर्ग संधि’ कहलाती है। उदाहरण के लिए-
नि: + चय = निश्चय,
नि: + ठुर = निष्ठुर,
नि: + चल = निश्चल,
दु: + चरित्र = दुश्चरित्र,
दु: + तर = दुस्तर।
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