रूपक अलंकार
जहाँ पर उपमेय और उपमान में कोई अंतर न दिखाई दे वहाँ रूपक अलंकार होता है अथार्त जहाँ पर उपमेय और उपमान के बीच के भेद को समाप्त करके उसे एक कर दिया जाता है वहाँ पर रूपक अलंकार होता है। दूसरे शब्दों में जब गुण की अत्यंत समानता के कारण उपमेय को ही उपमान बता दिया जाए यानी उपमेय ओर उपमान में कोई अंतर न दिखाई दे तब वह रूपक अलंकार कहलाता है। यह अलंकार, Hindi Grammar के Alankar के भेदों में से एक हैं।
रूपक अलंकार के उदाहरण
1.
स्पष्टीकरण– उदाहरण में राम रतन को ही धन बता दिया गया है। ‘राम रतन’ – उपमेय पर ‘धन’ – उपमान का आरोप है एवं दोनों में अभिन्नता है।
2.
स्पष्टीकरण-चाँद की रोशनी को चादर के समान ना बताकर चादर ही बता दिया गया है। इस वाक्य में उपमेय – ‘चन्द्रिका’ है एवं उपमान – ‘चादर’ है।
3.
स्पष्टीकरण– उदाहरण में पैरों को ही कमल बता दिया गया है। ‘पैरों’ – उपमेय पर ‘कमल’ – उपमान का आरोप है। उपमेय ओर उपमान में अभिन्नता दिखाई जा रही है।
4.
अम्बर पनघट में डुबो रही
तारा घाट उषा नगरी।
5.
स्पष्टीकरण-यहाँ यौवन में प्रभात का वक्ष में सर का निषेध रहित आरोप हुआ है। यहां हम देख सकते हैं की उपमान एवं उपमेय में अभिन्नता दर्शायी जा रही है।
Examples of Roopak Alankar
6.
विकसे संत सरोज सब हर्षे लोचन भंग।
7.
अंचल में दीप छिपाये।
8.
9.
10.
11.
स्वयं ही मुरझा गया तेरा हृदय-जलजात।
रूपकालंकारः संस्कृत
‘तद्रूपकमभेदोयउपमानोपमेययोः अति साम्यादनपहनुतभेदयोरभेदः’- जब उपमेय पर उपमान का निषेध-रहित आरोप करते हैं, तब रूपक अलंकार होता है। उपमेय में उपमान के आरोप का अर्थ है दोनों में अभिन्नता या अभेद दिखाना। इस आरोप में निषेध नहीं होता है। जैसे-
अम्बर पनघट में डुबो रही
तारा घट ऊषा नागरी।”
स्पष्टीकरण– यहाँ, ऊषा में नागरी का, अम्बर में पनघट का और तारा में घट का निषेध-रहित
आरोप हुआ है।
संस्कृत साहित्यकारों द्वारा दिए गए उदाहरणों को देखें-
1.
न्यन्तद्धनिव्यसनरसिका रात्रिकापालिकीयम् ।
द्वीपाद द्वीपं भ्रमति दधती चन्द्रमुद्राकपाले
न्यस्त सिद्धाञ्जनपरिमलं लाञ्छनस्यच्छलेन ।।
स्पष्टीकरण– इसमें ‘रात्रि’ के ऊपर कापालिकी का आरोप है।
2.
रससम्मुख्यपि सहसा पराङ्मुखी भवति रिपुसेना ।।
3.
कान्तेः कार्मणकर्मनर्मरहसमुल्लासनावासभूः ।
विद्यावक्रगिरां विधेरनविधिप्रावीण्यसाक्षाक्रिया
बाणाः पञ्चशिलीमुखस्य ललनाचूडामणिः सा प्रिया ।।
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