हमारी पृथ्वी चारों ओर से वायु की घनी चादर से घिरी हुई है, जिसे वायुमंडल कहते हैं। पृथ्वी पर सभी जीव जीवित रहने के लिए वायुमंडल पर निर्भर हैं। यह हमें साँस लेने के लिए वायु प्रदान करता है एवं सूर्य की किरणों के हानिकारक प्रभाव से हमारी रक्षा करता है। यदि सुरक्षा की यह चादर न हो तो हम दिन के समय सूर्य की गर्मी से तप्त होकर जल सकते है एवं रात के समय ठंड से जम सकते हैं। अतः यह वह वायुराशि है जिसने पृथ्वी के तापमान को रहने योग्य बनाया है।
वायुमण्डल किसे कहते हैं? परिभाषा एवं अर्थ
वायुमण्डल (Atmosphere) पृथ्वी के चारों ओर फैली वायु की पतली परत को वायुमण्डल कहते हैं। यह पृथ्वी के चारों ओर पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल के कारण टिका रहता है। इसमें उपस्थित ओजोन परत बैंगनी किरणों से हमारी रक्षा करती है। वायुमण्डल सूर्य की झुलसाने वाली गर्मी से भी हमारी रक्षा करता है। इसमें कई प्रकार की गैस, धूल-कण व जलवाष्प उपस्थित रहते हैं, जो क्षेत्र विशेष के मौसम को निर्धारित करते हैं।
वायुमण्डल (Atmosphere) जीवन के लिए एक महत्त्वपूर्ण घटक है, इसके बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। वायुमण्डल में विभिन्न प्रकार की गैसें पाई जाती है जिसमें ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, कार्बन डाई-ऑक्साइड महत्त्वपूर्ण हैं।
वायुमंडल का संघटन
क्या आप जानते हैं कि जिस वायु का उपयोग हम साँस लेने के लिए करते हैं, वास्तव में वह अनेक गैसों का मिश्रण होती है? नाइट्रोजन तथा ऑक्सीजन ऐसी दो गैसें हैं, जिनसे वायुमंडल का बड़ा भाग बना है। कार्बन डाइऑक्साइड, हीलियम, ओज़ोन, आर्गन, एवं हाइड्रोजन कम मात्रा में पाई जाती हैं। इन गैसों के अलावा धूल के छोटे-छोटे कण भी हवा में ) मौजूद होते हैं।
नाइट्रोजन, वायु में सर्वाधिक पाई जाने वाली गैस है। जब हम साँस लेते हैं तब फेफड़ों में कुछ नाइट्रोजन भी ले जाते हैं और फिर उसे बाहर निकाल देते हैं। परंतु पौधों को अपने जीवन के लिए नाइट्रोजन की आवश्यकता होती है। वे सीधे वायु से नाइट्रोजन नहीं ले पाते। मृदा तथा कुछ पौधों की जड़ों में रहने वाले जीवाणु वायु से नाइट्रोजन लेकर इसका स्वरूप बदल देते हैं, जिससे पौधे इसका प्रयोग कर सकें।
ऑक्सीजन वायु में प्रचुरता से मिलने वाली दूसरी गैस है। मनुष्य तथा पशु साँस लेने में वायु से ऑक्सीजन प्राप्त करते हैं । हरे पादप, प्रकाश संश्लेषण द्वारा ऑक्सीजन उत्पन्न करते हैं। इस प्रकार वायु में ऑक्सीजन की मात्रा समान बनी रहती है। यदि हम वृक्ष काटते हैं तो यह संतुलन बिगड़ जाता है।
कार्बन डाइऑक्साइड अन्य महत्त्वपूर्ण गैस है। हरे पादप अपने भोजन के रूप में कार्बन डाइऑक्साइड का प्रयोग करते हैं और ऑक्सीजन वापस देते हैं। और पशु कार्बन डाइऑक्साइड बाहर निकालते हैं। मनुष्यों तथा पशुओं द्वारा बाहर छोड़ी जाने वाली कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा पादपों द्वारा प्रयोग की जाने वाली गैस के बराबर होती है, जिससे यह संतुलन बना रहता है। परंतु यह संतुलन कोयला तथा खनिज तेल आदि ईंधनों के जलाने से गड़बड़ा जाता है। वे वायुमंडल में प्रतिवर्ष करोड़ों टन कार्बन डाइऑक्साइड की बढ़ोतरी करते हैं । परिणामस्वरूप कार्बन डाइऑक्साइड का बढ़ा हुआ आयतन पृथ्वी पर मौसम तथा जलवायु को प्रभावित करता है।
वायुमंडल की संरचना
हमारा वायुमंडल पाँच परतों में विभाजित हैं। ये निम्न हैं- क्षोभमंडल, समतापमण्डल, मध्यमण्डल, तापमण्डल, और बाह्यमण्डल।
वायुमंडल की परतें
पृथ्वी के वायुमण्डल की संरचना: पृथ्वी के वायुमण्डल को पृथ्वी की सतह से लेकर उसके ऊपरी स्तर तक निम्नलिखित पाँच स्तरों में बाँटा गया है-
- क्षोभमंडल (Troposphere) – ट्रोपोस्फीयर
- समतापमंडल (Stratosphere) – स्ट्रेटोस्फीयर
- मध्यमंडल (Mesosphere) – मेसोस्फीयर
- तापमंडल (Thermosphere) – थर्मोस्फीयर
- बाह्यमंडल (Exosphere) – एक्सोस्फीयर
क्षोभमण्डल (Troposphere) – ट्रोपोस्फीयर
क्षोभमण्टल (Tronosphere) वायुमण्डल की सबसे निचला पत होती है, जो ध्रवों पर 8 किमी तथा विषवत रेखा पर 18 किमी की ऊँचाई तक पाई जाती है। इस मण्डल में तापमान क गिरने की दर 165 मी की ऊचाई पर 1°C तथा किमी की ऊँचाई पर 6.4°C होती है।
क्षोभमण्डल में वायु मण्डल की कुल राशि का 90% भाग पाया जाता है। आँधी, बादल, वर्षा आदि प्राकृतिक घटनाएँ मण्डल में घटित होती हैं। धरातलीय जीवों का सम्बन्ध इसी मण्डल से होता है। इसी के अन्तर्गत भारी गैसों, जलवाष्प तथा धूलिकणों का अधिकतम भाग रहता है। इस मण्डल की ऊँचाई सर्दी की अपेक्षा गर्मी में अधिक हो जाती है। इस मण्डल की ऊपरी सीमा को क्षोभ सीमा (Tropopause) भी कहते हैं।
समतापमण्डल (Stratosphere) – स्ट्रेटोस्फीयर
समतापमण्डल (Stratosphere) वायुमण्डल में क्षोभमण्डल के ऊपर पाया जाता है। इसकी ऊँचाई विषवत रेखा पर 18 किमी से लेकर 50 किमी तक पाई जाती है। इस मण्डल में ओजोन (Ozone) परत पाई जाती है, इसलिए इसे ओजोनोस्फीयर (Ozonosphere) भी कहा जाता है।
मध्यमण्डल (Mesosphere) – मेसोस्फीयर
मध्यमण्डल (Mesosphere) की ऊँचाई 50 से 80 किमी तक होती है तथा यहाँ तापमान में एकाएक गिरावट जाती है। मध्यमण्डल में ऊँचाई के साथ तापमान में ह्रास होता जाता है। इसकी ऊपरी सीमा -90°C द्वारा निर्धारित होती है, जिसको मेसोपाज (Mesopause) कहते हैं।
तापमण्डल (Thermosphere) – थर्मोस्फीयर
मध्यमण्डल (80 किमी.) के ऊपर वाला वायुमण्डलीय भाग (640 किमी ऊंचाई तक) तापमण्डल (Thermosphere) कहलाता है। इसमें ऊँचाई के साथ तेजी से तापमान बढ़ता जाता है। इस मण्डल का तापमान अत्यधिक होने के बावजूद गर्मी महसूस नहीं होती है, क्योंकि इस ऊँचाई पर गैसें अत्यधिक विरल (Dispersed) हो जाती है और बहुत कम ऊष्मा को ही रख पाती हैं।
बाह्य वायुमंडल में बढ़ती ऊँचाई के साथ तापमान अत्यधिक तीव्रता से बढ़ता है। आयन मंडल इस परत का एक भाग है, यह 80 से 400 किलोमीटर तक फैला है। रेडियो संचार के लिए इस परत का उपयोग होता है। वास्तव में पृथ्वी से प्रसारित रेडियो तरंगें इस परत द्वारा पुनः पृथ्वी पर परावर्तित कर दी जाती हैं।
आयनमण्डल (Ionosphere) तापमण्डल (Thermosphere) का एक भाग है।
आयनमण्डल (Ionosphere) – आयनोंस्फीयर
मध्यमण्डल के ऊपर 80 से 640 किमी तक आयनमण्डल (Ionosphere) का विस्तार होता है। इसमें विद्युत आवेशित कणों की अधिकता होती है। इसी भाग में विस्मयकारी विद्युतीय व चुम्बकीय घटनाएँ घटित होती हैं, तथा ब्रह्माण्ड किरणों (Cosmic Rays) का परिलक्षण होता है। रेडियो तरंगें इसी मण्डल से परावर्तित होकर संचार को सम्भव बनाती है। यदि यह मण्डल ने होता तो रेडियो तरंगें भूतल पर न आकर आकाश में असीमित ऊँचाई तक चली जाती। आयनमण्डल तापमण्डल का सबसे निचला भाग है।
बाह्यमंडल/बहिर्मंडल (Exosphere) – एक्सोस्फीयर
वायुमंडल की सबसे ऊपरी परत को बाह्यमंडल/बहिर्मंडल के नाम से जाना जाता है। यह वायु की पतली परत होती है। हल्की गैसें जैसे- हीलियम एवं हाइड्रोजन यहीं से अंतरिक्ष में तैरती रहती हैं। बाह्यमंडल (Exosphere) का विस्तार 640 किमी. से ऊपर होता है। इस मण्डल के बाद वायुमण्डल अन्तरिक्ष में विलीन हो जाता है।
मौसम एवं जलवायु
“क्या आज वर्षा होगी? क्या आज दिन साफ़ होगा और धूप निकलेगी?” कितनी ही बार हमने क्रिकेट प्रेमियों के मुँह से एकदिवसीय मैच के भविष्य पर अनुमान लगाते सुना होगा? यदि हम कल्पना करें कि हमारा शरीर एक रेडियो है और मस्तिष्क उसके स्पीकर, तो मौसम वह है जो इसके नियंत्रण बटनों से छेड़छाड़ करता रहता है। मौसम, वायुमंडल की प्रत्येक घंटे तथा दिन-प्रतिदिन की स्थिति होती है। आर्द्र एवं गर्म मौसम किसी को भी चिड़चिड़ा बना सकता है। अच्छा, हवादार मौसम हमें आनंद देता है और हम घूमने की योजना भी बना सकते हैं। मौसम नाटकीय रूप से दिन-प्रतिदिन बदलता है। किंतु दीर्घ काल में किसी स्थान का औसत मौसम, उस स्थान की जलवायु बताता है। क्या अब आप समझ गए कि हम मौसम का दैनिक पूर्वानुमान क्यों करते हैं?
तापमान
आप प्रतिदिन जिस तापमान का अनुभव करते हैं, वह वायुमंडल का तापमान होता है। वायु में मौजूद ताप एवं शीतलता के परिमाण को तापमान कहते हैं।
वायुमंडल का तापमान केवल दिन और रात में ही नहीं बदलता बल्कि ऋतुओं के अनुसार भी बदलता है। शीत ऋतु की अपेक्षा ग्रीष्म ऋतु ज्यादा गर्म होती है।
आतपन
आतपन एक महत्त्वपूर्ण कारक है, जो तापमान के वितरण को प्रभावित करता है। सूर्य से आने वाली वह ऊर्जा जिसे पृथ्वी रोक लेती है, आतपन कहलाती है।
आतपन (सूर्यातप) की मात्रा भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर घटती है। इसलिए तापमान उसी प्रकार घटता जाता है। क्या अब आप समझ गए होंगे कि ध्रुव बर्फ़ से क्यों ढँके हुए हैं? यदि पृथ्वी का तापमान अत्यधिक बढ़ जाता है तो यह इतनी गर्म हो जाएगी कि यहाँ कुछ फ़सलें नहीं उग सकेंगी। गाँवों की अपेक्षा नगरों का तापमान बहुत अधिक होता है। दिन के समय में ऐसाफेल्ट से बनी सड़कें एवं धातु और कंक्रीट से बने भवन गर्म हो जाते हैं। रात के समय यह ऊष्मा मुक्त हो जाती है ।
नगर के भीड़ वाले ऊँचे भवन गर्म वायु को रोक लेते हैं, जिससे नगरों का तापमान बढ़ जाता है।
वायु दाब
यह जानकर आपको आश्चर्य होगा कि वायु हमारे शरीर पर उच्च दाब के साथ बल लगाती है। किंतु हम इसका अनुभव नहीं करते हैं। यह इसलिए होता है, क्योंकि वायु का दाब हमारे ऊपर सभी दिशाओं से लगता है, और हमारा शरीर विपरीत बल लगाता है।
पृथ्वी की सतह पर वायु के भार द्वारा लगाया गया दाब, वायु दाब कहलाता है। वायुमंडल में ऊपर की ओर जाने पर दाब तेज़ी से गिरने लगता है। समुद्र स्तर पर वायु दाब सर्वाधिक होता है और ऊँचाई पर जाने पर यह घटता जाता है। वायु दाब का क्षैतिज वितरण किसी स्थान पर उपस्थित वायु के ताप द्वारा प्रभावित होता है। अधिक तापमान वाले क्षेत्रों में वायु गर्म होकर ऊपर उठती है। यह निम्न दाब क्षेत्र बनाता है। निम्न दाब बादलयुक्त आकाश एवं नम मौसम के साथ जुड़ा होता है।
कम तापमान वाले क्षेत्रों की वायु ठंडी होती है। इसके फलस्वरूप यह भारी होती है। भारी वायु निमज्जित होकर उच्च दाब क्षेत्र बनाती है। उच्च दाब के कारण स्पष्ट एवं स्वच्छ आकाश होता है।
वायु सदैव उच्च दाब क्षेत्र से निम्न दाब क्षेत्र की ओर गमन करती है।
पवन
उच्च दाब क्षेत्र से निम्न दाब क्षेत्र की ओर वायु की गति को ‘पवन’ कहते हैं। । आप पवन को काम करते देख सकते हैं। जब यह सड़क पर गिरी पत्तियों को उड़ाती अथवा तूफ़ान के समय पेड़ों को उखाड़ देती है। कभी-कभी जब पवन धीरे बहती है, तो आप इसे महीन धूल या धुएँ को उड़ाते देख सकते हैं। कभी-कभी पवन इतनी तेज़ होती है कि इसके विपरीत दिशा में चलना कठिन हो जाता है। आपने अवश्य अनुभव किया होगा कि तेज़ पवन में छाता लेकर चलना आसान नहीं है। तीन अन्य उदाहरण सोचिए, जब तेज़ पवन के कारण आपके लिए समस्या उत्पन्न हुई हो। पवन को मुख्यतः तीन प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है।
- स्थायी पवनें: व्यापारिक पश्चिमी एवं पूर्वी पवनें स्थायी पवनें हैं। ये वर्षभर लगातार निश्चित दिशा में चलती रहती हैं।
- मौसमी पवनें: ये पवनें विभिन्न ऋतुओं में अपनी दिशा बदलती रहती हैं। उदाहरण के लिए – भारत में मानसूनी पवनें।
- स्थानीय पवनें: ये पवनें किसी छोटे क्षेत्र में वर्ष या दिन के किसी विशेष समय में चलती हैं। उदाहरण के लिए स्थल एवं समुद्री समीर. क्या आपको भारत के उत्तरी क्षेत्र की गर्म एवं शुष्क स्थानीय पवन याद हैं? इसे ‘लू‘ कहते हैं।
आर्द्रता
जब जल पृथ्वी एवं विभिन्न जलाशयों से वाष्पित होता है, तो यह जलवाष्प बन जाता है। वायु में किसी भी समय जलवाष्प की मात्रा को ‘आर्द्रता’ कहते हैं।
जब वायु में जलवाष्प की मात्रा अत्यधिक होती है, तो उसे हम आर्द्र दिन कहते हैं। जैसे-जैसे वायु गर्म होती जाती है, इसकी जलवाष्प धारण करने की क्षमता बढ़ती जाती है। और इस प्रकार यह और अधिक आर्द्र हो जाती है।
आर्द्र दिन में, कपड़े सूखने में काफ़ी समय लगता है एवं हमारे शरीर से पसीना आसानी से नहीं सूखता और हम असहज महसूस करते हैं।
जब जलवाष्प ऊपर उठता है, तो यह ठंडा होना शुरू हो जाता है। जलवाष्प संघनित होकर ठंडा होकर जल की बूँद बनाते हैं। बादल इन्हीं जल बूँदों का ही एक समूह होता है। जब जल की ये बूँदें इतनी भारी हो जाती हैं कि वायु में तैर न सकें, तब ये वर्षण के रूप में नीचे आ जाती हैं।
आकाश में उड़ते हुए जेट हवाई जहाज़ अपने पीछे सफ़ेद पथ चिह्न छोड़ते हैं। इनके इंजनों से निकली नमी संघनित हो जाती है। वायु के गतिमान न रहने की स्थिति में यह संघनित नमी कुछ देर तक पथ के रूप में दिखाई देती है।
पृथ्वी पर जल के रूप में गिरने वाला वर्षण, वर्षा कहलाता है। ज्यादातर भौम जल, वर्षा जल से ही प्राप्त होता है। पौधे जल संरक्षण में मदद करते हैं। जब पहाड़ी पाश्र्व से पेड़ काटे जाते हैं, वर्षा जल अनावृत पहाड़ों से नीचे बहता है एवं निचले इलाकों में बाढ़ का कारण बनता है।
क्रियाविधि आधार पर वर्षा के तीन प्रकार होते हैं : संवहनी वर्षा, पर्वतीय वर्षा एवं चक्रवाती वर्षा पौधों तथा जीव-जंतुओं के जीवित रहने के लिए वर्षा बहुत महत्त्वपूर्ण है। इससे धरातल को ताज़ा जल प्रदान होता है । यदि वर्षा कम हो, तो जल की कमी तथा सूखा हो जाता है। इसके विपरीत अगर वर्षा अधिक होती है, तो बाढ़ आ जाती है।
निम्न प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
(1) वायुमंडल क्या है?
वायुमण्डल (Atmosphere) पृथ्वी के चारों ओर फैली वायु की पतली परत को वायुमण्डल कहते हैं।
(2) वायुमंडल का अधिकतर भाग किन दो गैसों से बना है?
नाइट्रोजन तथा ऑक्सीजन ऐसी दो गैसें हैं, जिनसे वायुमंडल का बड़ा भाग बना है।
(3) वायुमंडल में कौन-सी गैस हरित गृह प्रभाव पैदा करती है ?
कार्बन डाइऑक्साइड का बढ़ा हुआ आयतन पृथ्वी पर हरित गृह प्रभाव पैदा करती है।
(4) मौसम किसे कहते हैं?
मौसम किसी निश्चित स्थान और समय की वायुमंडलीय स्थिति है। मौसम के प्रकारों में धूप, बादल, बरसात, हवा और बर्फ शामिल हैं। मौसम को प्रभावित करने वाले सबसे महत्वपूर्ण कारकों में से एक वायु द्रव्यमान है।
(5) वर्षा के तीन प्रकार लिखें।
वर्षा के तीन प्रकार होते हैं : संवहनी वर्षा, पर्वतीय वर्षा एवं चक्रवाती वर्षा।
(6) वायुदाब क्या है?
वायुमंडलीय गैसों द्वारा धरातल पर लगाए गए दबाव को वायुमंडलीय दबाव या वायुदाब कहते हैं।
सही उत्तर बताइए –
(1) निम्नलिखित में से कौन-सी गैस हमें सूर्य की हानिकारक किरणों से बचाती हैं?
- कार्बन डाइऑक्साइड
- नाइट्रोजन
- ओज़ोन
उत्तर– ओज़ोन
(2) वायुमंडल की सबसे महत्त्वपूर्ण परत है
- बाह्य वायुमंडल
- क्षोभमंडल
- मध्यमंडल
उत्तर– क्षोभमंडल
(3) वायुमंडल की निम्न परतों में कौन-सी बादल विहीन है?
- क्षोभमंडल
- समताप मंडल
- मध्यमंडल
उत्तर– समताप मंडल
(4) वायुमंडल की परतों में जब हम ऊपर जाते हैं, तब वायुदाब-
- बढ़ता है
- घटता है
- समान रहता है।
उत्तर– घटता है
(5) जब वृष्टि तरल रूप में पृथ्वी पर आती है, उसे हम कहते हैं-
- बादल
- हिम
- वर्षा
उत्तर– वर्षा