उपेन्द्रनाथ अश्क (Upendra Nath Ashka) का जीवन परिचय, साहित्यिक परिचय, कवि परिचय एवं भाषा शैली और उनकी प्रमुख रचनाएँ एवं कृतियाँ। उपेन्द्रनाथ ‘अश्क’ का जीवन परिचय एवं साहित्यिक परिचय नीचे दिया गया है।
UpendraNath Ashka Biography / Upendra Nath Ashka Jeevan Parichay / UpendraNath Ashka Jivan Parichay / उपेन्द्रनाथ अश्क :
नाम | उपेन्द्रनाथ |
उपनाम | अश्क |
जन्म | 14 दिसम्बर, 1910 |
जन्मस्थान | जालंधर, पंजाब |
मृत्यु | 19 जनवरी, 1996 |
प्रमुख रचनाएँ | गिरती दीवारें, शहर में घूमता आईना, गर्म राख, सितारों, अन्धी गली, मुखड़ा बदल गया, चरवाहे, सत्तर श्रेष्ठ कहानियां, जुदाई की शाम के गीत, काले साहब, पिंजरा, लौटता हुआ दिन, बड़े खिलाड़ी , जय-पराजय, स्वर्ग की झलक, भँवर, अंजो दीदी, मण्टो मेरा दुश्मन, फिल्मी जीवन की झलकियाँ |
साहित्य काल | आधुनिक काल |
विधाएं | उपन्यास, कहानी, नाटक, एकांकी, कविता, निबन्ध, संस्मरण |
साहित्य में स्थान | विशेष उपलब्धि नाटक, एकांकी, उपन्यास और कहानी के क्षेत्र में |
पुरस्कार | संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार |
उपेन्द्रनाथ अश्क का जीवन-परिचय
उपेन्द्रनाथ ‘अश्क’ का जन्म 14 दिसम्बर, सन् 1910 को पंजाब के जालंधर नामक नगर में हुआ था। अश्क जी जाति से ब्राह्मण थे और उनका परिवार मध्यमवर्गीय था। अश्क जी का प्रारम्भिक जीवन गम्भीर समस्याओं से ग्रस्त रहा। आप गम्भीर रूप से अस्वस्थ रहे और राजयक्ष्मा जैसे रोग से संघर्ष किया। विधि परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात वे अध्यापन, पत्रकारिता, रेडियो तथा फिल्मों के क्षेत्र में प्रविष्ट हुए। सन् 1965 में अश्क जी को संगीतनाटक अकादमी पुरस्कार प्राप्त हुआ। 19 जनवरी, सन् 1996 को उपेन्द्रनाथ अश्क जी का निधन हो गया।
इसके अतिरिक्त अश्क जी ने निबन्ध, कविताएँ, संस्मरण, आलोचना आदि की भी रचना की। अश्क जी की बाल्यकाल से ही नाटकों में रुचि रही थी। उनके लगभग 11 नाटक और 40 एकांकी प्रकाशित हो चुके हैं।
उपेन्द्रनाथ अश्क की रचनाएँ
- प्रसिद्ध एकांकी– ‘पर्दा उठाओ : पर्दा गिराओं’, ‘चरवाहे’, ‘तौलिए, ‘चिलमन’, ‘कइसा साब : कइसी आया’, ‘मैमूना’ ‘मस्केबाजी का स्वर्ग’, ‘कस्बे का क्रिकेट’, ‘क्लब का उद्घाटन’, ‘सूखी डाली’, ‘चुम्बक’, ‘अधिकार का रक्षक’, ‘तूफान से पहले, ‘लक्ष्मी का स्वागत’, ‘किसकी बात’, ‘पापी’, ‘दो कैप्टन’, ‘नानक इस संसार में’।
- उपन्यास– ‘गिरती दीवारें’, ‘शहर में घूमता आइना’, ‘गर्म राख’, ‘नीला’, ‘मुझे माफ कर दो’, ‘चन्द्रा’।
- कहानी संग्रह– 70 श्रेष्ठ कहानियाँ, ‘काले साहब’, ‘पिंजरा’, ‘दूरदशी लोग’।
- नाटक– ‘लौटता हुआ दिन’, ‘जय-पराजय’, ‘अलग-अलग रास्ते’, ‘स्वर्ग की झलक’, ‘बड़े खिलाड़ी, ‘अंजो दीदी’, ‘आदि स्वर्ग’, ‘पैंतरे’, ‘छठा-बेटा’, ‘अंधी गली’, ‘मेरा नाम विएट्रिस है, भंवर’ आदि।
साहित्यिक अवदान
अश्क जी की लेखन-शक्ति प्रौढ़ और भाव-जगत व्यापक है। इन्होंने उपन्यास, कहानी, नाटक, एकांकी, कविता, निबन्ध, संस्मरण आदि सभी क्षेत्रों में विपुल साहित्य का निर्माण किया है, किन्तु उनकी विशेष उपलब्धि नाटक, एकांकी, उपन्यास और कहानी के क्षेत्र में रही।
अश्क जी के नाटक और एकांकी मुख्यतः सामाजिक हैं। वस्तु-चित्रण में उनकी दृष्टि यथार्थवादी है। हिन्दी में एक प्रकार से यथार्थवादी एकांकियों का प्रारम्भ ही अश्क जी के एकांकियों से हआ है। उन्होंने निम्न मध्यवर्गीय जीवन का चित्रण बड़ी सूक्ष्मता से किया है। अश्क जी ने सामाजिक और व्यक्तिगत दुर्बलताओं पर प्रहार करने वाले व्यंग्य और प्रहसन एकांकी भी लिखे हैं। इनमें चरित्र-चित्रण की मनोवैज्ञानिक गहराई रहती है।
रंगमंच की दष्टि से अश्क जी के एकांकी बहुत सफल हैं। वे प्राय: जीवन की अति साधारण और परिचित समस्याओं-घटनाओं पर निर्मित होते हैं और बिना कल्पना का सहारा लिए ही मन में उतर जाते हैं। उनके संवाद आडम्बरहीन, चुस्त और सहज होते हैं। उनमें बोलचाल की सहजता, प्रवाह, आंचलकिता और पात्र की अनकलता रहती है। इस प्रकार हम देखते हैं कि हिन्दी-गद्य की विविध विधाओं पर लेखनी चलाकर अश्क जी ने हिन्दी-साहित्य भण्डार की अभिवृद्धि की है।
लक्ष्मी का स्वागत
उपेन्द्रनाथ अश्क द्वारा लिखित ‘लक्ष्मी का स्वागत’ एकांकी एक सामाजिक समस्या-प्रधान एकांकी है। इस एकांकी में एकांकीकार ने दहेज के लोभी उन माता-पिता का चित्र अंकित किया है, जो दहेज की लम्बी-चौड़ी रकम प्राप्त करने के लालच में अपने बेटे रोशन का पुनर्विवाह उसकी पूर्व-पत्नी के निधन के चौथे दिन ही कर देना चाहते हैं। इससे स्पष्ट है कि आज का मानव धनलिप्सा के कारण कितना स्वार्थी, नीच एवं हृदयहीन हो सकता है।
एकांकी का प्रमुख पात्र रोशनलाल शिक्षित होने के साथ-साथ ही एक संवेदनशील युवक भी है। उसके लिए उसकी पत्नी कोई ऐसी वस्तु नहीं थी, जिसके खो जाने पर उसे भुला दिया जाए, वरन् वह एक ऐसा इन्सान थी, जिसकी मृत्यु के दुःख को भुला पाना चौथे दिन ही सम्भव न था। रोशनलाल किसी भी प्रकार के पुनर्विवाह करने के पक्ष में नहीं था। दूसरी ओर उसके माता-पिता, जो दहेज के लालच में उसका शीघ्रातिशीघ्र विवाह कर देना चाहते थे, उसकी पूर्व-पत्नी के चौथे पर स्यालकोट के एक व्यापारी उसके लिए रिश्ता लेकर आए थे, तब उन्हें एक माह का समय दिया गया था।
एक माह बाद वे पुनः रोशन के घर रिश्ता लेकर आते हैं। इस समय रोशन का एकमात्र पुत्र अरुण अत्यधिक अस्वस्थ है। उसे डिफ्थीरिया हो गया है, वह मरणासन्न अवस्था में है, किन्तु रोशन की माँ उसकी बीमारी को अति साधारण समझती है तथा रोशन के पिता रिश्ता लाने वाले स्यालकोट के धनाढ्य व्यवसायी को अपने घर से निराश कैसे लौटाते? वह घर आयी लक्ष्मी का निरादर नहीं कर सकते, क्योंकि उन्हें ज्ञात था कि रिश्ता लाने वाले कोई ऐसे-वैसे नहीं, हजारों का लेन-देन करने वाले हैं।
पत्नी की मृत्यु के बाद रोशन का पूरा ध्यान बच्चे पर केन्द्रित था। बच्चे को देखकर वह पत्नी के गम को पी चुका है। अत: वह विवाह का विरोध करता है, लेकिन उसकी माँ उसके मित्र सुरेन्द्र से विवाह हेतु अपने पुत्र को समझाने का असफल प्रयास करती है। रोशन के पिता क्रोधित होकर शगुन लेने की बात कहते हैं, इसी बीच रोशन के पुत्र अरुण की दशा अचानक बिगड़ जाती है तथा उसकी मृत्यु हो जाती है, जिससे रोशन बन्द कमरे में अपने को अकेला अनुभव करता है, तभी कमरे से बाहर रोशन के पिता अपनी पत्नी को शगुन की बधाई देते हैं। तभी रोशन का मित्र सुरेन्द्र कहता है- माँ जी दाने लाओ, दिए का प्रबन्ध करो, अरुण इस संसार में नहीं रहा। रोशन पुत्र के शव को लेकर कमरे से निकलता है, माता-पिता आश्चर्य की मुद्रा में देखते हए रह जाते हैं। वह उनसे कहता है कि जाओ, लक्ष्मी का स्वागत करो।
एकांकी का कथानक भावप्रवण, मर्मस्पर्शी तथा विचारोत्तेजक है। कथ्य रंग-मंच एवं रेडियो-रूपक दोनों ही दृष्टि से अनुकूल है। एकांकी सहृदय पाठकों को प्रभावित करने वाला है। वह भाषा-शैली, चरित्रांकन एवं उद्देश्य सभी दष्टियों से सफल है। आजकल मध्यम वर्ग किस प्रकार दहेज के दानव का शिकार होता जा रहा है, यही बताना इस एकांकी का उद्देश्य है। धनलोलुप गयी हुई लक्ष्मी की चिन्ता न करके आने वाली का स्वागत करता है। पुत्र की पीड़ित एवं आहत भावनाओं की भी उसे चिन्ता नहीं है।
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