Samas (समास) – Samas In Hindi
समास : समास का तात्पर्य है ‘संक्षिप्तीकरण’। हिन्दी व्याकरण में समास का शाब्दिक अर्थ होता है छोटा रूप; अर्थात जब दो या दो से अधिक शब्दों से मिलकर जो नया और छोटा शब्द बनता है उस शब्द को हिन्दी में समास कहते हैं।
दूसरे शब्दों में कहा जाए तो समास वह क्रिया है, जिसके द्वारा हिन्दी में कम-से-कम शब्दों मे अधिक-से-अधिक अर्थ प्रकट किया जाता है।
समास के उदाहरण
- रसोई के लिए घर इसे हम रसोईघर भी कह सकते हैं।
- ‘राजा का पुत्र’ – राजपुत्र
संस्कृत एवं अन्य भारतीय भाषाओं में समास का बहुतायत में प्रयोग होता है। जर्मन आदि भाषाओं में भी समास का बहुत अधिक प्रयोग होता है। समास के बारे में संस्कृत में एक सूक्ति प्रसिद्ध है:-
वन्द्वो द्विगुरपि चाहं मद्गेहे नित्यमव्ययीभावः।
तत् पुरुष कर्म धारय येनाहं स्यां बहुव्रीहिः॥
समास रचना में दो पद होते हैं , पहले पद को ‘पूर्वपद ‘ कहा जाता है और दूसरे पद को ‘उत्तरपद ‘ कहा जाता है। इन दोनों से जो नया शब्द बनता है वो समस्त पद कहलाता है। जैसे :-
- रसोई के लिए घर = रसोईघर
- हाथ के लिए कड़ी = हथकड़ी
- नील और कमल = नीलकमल
- रजा का पुत्र = राजपुत्र
Samas In Hindi
सामासिक शब्द (Samasik shabd)
समास के नियमों से निर्मित शब्द सामासिक शब्द कहलाता है। इसे समस्तपद भी कहते हैं। समास होने के बाद विभक्तियों के चिह्न (परसर्ग) लुप्त हो जाते हैं।
- जैसे-राजपुत्र।
समास-विग्रह (Samas vigrah in hindi)
सामासिक शब्दों के बीच के संबंधों को स्पष्ट करना समास-विग्रह कहलाता है। विग्रह के पश्चात सामासिक शब्दों का लोप हो जाता है।
- जैसे- राज+पुत्र-राजा का पुत्र।
पूर्वपद और उत्तरपद (Poorvpad aur uttarpad in samas)
समास में दो पद (शब्द) होते हैं। पहले पद को पूर्वपद और दूसरे पद को उत्तरपद कहते हैं। जैसे-गंगाजल। इसमें गंगा पूर्वपद और जल उत्तरपद है।
समास के भेद (Samas ke bhed)
- अव्ययीभाव समास (Adverbial Compound)
- तत्पुरुष समास (Determinative Compound)
- कर्मधारय समास (Appositional Compound)
- द्विगु समास (Numeral Compound)
- द्वन्द समास (Copulative Compound)
- बहुव्रीहि समास (Attributive Compound)
प्रयोग की दृष्टि से समास के भेद-
- संयोगमूलक समास
- आश्रयमूलक समास
- वर्णनमूलक समास
पदों की प्रधानता के आधार पर वर्गीकरण-
- पूर्वपद प्रधान – अव्ययीभाव
- उत्तरपद प्रधान – तत्पुरुष, कर्मधारय, द्विगु
- दोनों पद प्रधान – द्वंद्व
- दोनों पद अप्रधान – बहुव्रीहि (इसमें कोई तीसरा अर्थ प्रधान होता है)
अव्ययीभाव समास (Avyayibhav samas in hindi)
इसमें प्रथम पद अव्यय होता है और उसका अर्थ प्रधान होता है उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं। इसमें अव्यय पद का प्रारूप लिंग, वचन, कारक, में नहीं बदलता है वो हमेशा एक जैसा रहता है।
or
दूसरे शब्दों में कहा जाये तो यदि एक शब्द की पुनरावृत्ति हो और दोनों शब्द मिलकर अव्यय की तरह प्रयोग हों वहाँ पर अव्ययीभाव समास होता है संस्कृत में उपसर्ग युक्त पद भी अव्ययीभाव समास ही मने जाते हैं।
अव्ययीभाव समास के उदाहरण (Avyayibhav samas ke udaharan)
- यथाशक्ति = शक्ति के अनुसार
- यथाक्रम = क्रम के अनुसार
- यथानियम = नियम के अनुसार
- प्रतिदिन = प्रत्येक दिन
- प्रतिवर्ष =हर वर्ष
- आजन्म = जन्म से लेकर
- यथासाध्य = जितना साधा जा सके
- धडाधड = धड-धड की आवाज के साथ
- घर-घर = प्रत्येक घर
- रातों रात = रात ही रात में
- आमरण = म्रत्यु तक
- यथाकाम = इच्छानुसार
तत्पुरुष समास (Tatpurush samas in hindi)
इस समास में दूसरा पद प्रधान होता है। यह कारक से जुदा समास होता है। इसमें ज्ञातव्य – विग्रह में जो कारक प्रकट होता है उसी कारक वाला वो समास होता है। इसे बनाने में दो पदों के बीच कारक चिन्हों का लोप हो जाता है उसे तत्पुरुष समास कहते हैं।
तत्पुरुष समास के उदाहरण (Tatpurush samas ke udaharan)
- देश के लिए भक्ति = देशभक्ति
- राजा का पुत्र = राजपुत्र
- शर से आहत = शराहत
- राह के लिए खर्च = राहखर्च
- तुलसी द्वारा कृत = तुलसीदासकृत
- राजा का महल = राजमहल
तत्पुरुष समास के भेद (Tatpurush samas ke bhed)
वैसे तो तत्पुरुष समास के 8 भेद होते हैं किन्तु विग्रह करने की वजह से कर्ता और सम्बोधन दो भेदों को लुप्त रखा गया है। इसलिए विभक्तियों के अनुसार तत्पुरुष समास के 6 भेद होते हैं।
समानाधिकरण तत्पुरुष समास (कर्मधारय समास) (Samanadhikaran tatpurush samas)
जिस तत्पुरुष समास के समस्त होनेवाले पद समानाधिकरण हों, अर्थात विशेष्य-विशेषण-भाव को प्राप्त हों, कर्ताकारक के हों और लिंग-वचन में समान हों, वहाँ ‘कर्मधारय तत्पुरुष समास‘ होता है।
व्यधिकरण तत्पुरुष समास (Vyadhikaran tatpurush samas)
जिस तत्पुरुष समास में प्रथम पद तथा द्वतीय पद दोनों भिन्न-भिन्न विभक्तियों में हो, उसे व्यधिकरण तत्पुरुष समास कहते हैं। उदाहरणतया- राज्ञ: पुरुष: – राजपुरुष: में प्रथम पद राज्ञ: षष्ठी विभक्ति में है तथा द्वतीय पद पुरुष: में प्रथमा विभक्ति है। इस प्रकार दोनों पदों में भिन्न-भिन्न विभक्तियाँ होने से व्यधिकरण तत्पुरुष समास हुआ।
व्यधिकरण तत्पुरुष समास 6 प्रकार का होता है –
- कर्म तत्पुरुष समास
- करण तत्पुरुष समास
- सम्प्रदान तत्पुरुष समास
- अपादान तत्पुरुष समास
- सम्बन्ध तत्पुरुष समास
- अधिकरण तत्पुरुष समास
कर्म तत्पुरुष समास (Karm tatpurush samas)
इसमें दो पदों के बीच में कर्मकारक छिपा हुआ होता है। कर्मकारक का चिन्ह ‘को’ होता है। को’ को कर्मकारक की विभक्ति भी कहा जाता है। उसे कर्म तत्पुरुष समास कहते हैं।
कर्म तत्पुरुष समास के उदाहरण (Karm tatpurush samas ke udaharan)
- रथचालक = रथ को चलने वाला
- ग्रामगत = ग्राम को गया हुआ
- माखनचोर =माखन को चुराने वाला
- वनगमन =वन को गमन
- मुंहतोड़ = मुंह को तोड़ने वाला
- स्वर्गप्राप्त = स्वर्ग को प्राप्त
- देशगत = देश को गया हुआ
- जनप्रिय = जन को प्रिय
- मरणासन्न = मरण को आसन्न
करण तत्पुरुष समास (Karan tatpurush samas)
जहाँ पर पहले पद में करण कारक का बोध होता है। इसमें दो पदों के बीच करण कारक छिपा होता है। करण कारक का चिन्ह य विभक्ति “के द्वारा” और ‘से’ होता है। उसे करण तत्पुरुष कहते हैं।
करण तत्पुरुष समास के उदाहरण (Karan tatpurush samas ke udaharan)
- स्वरचित =स्व द्वारा रचित
- मनचाहा = मन से चाहा
- शोकग्रस्त = शोक से ग्रस्त
- भुखमरी = भूख से मरी
- धनहीन = धन से हीन
- बाणाहत = बाण से आहत
- ज्वरग्रस्त =ज्वर से ग्रस्त
- मदांध =मद से अँधा
- रसभरा =रस से भरा
- भयाकुल = भय से आकुल
- आँखोंदेखी = आँखों से देखी
सम्प्रदान तत्पुरुष समास (Sampradan tatpurush samas)
इसमें दो पदों के बीच सम्प्रदान कारक छिपा होता है। सम्प्रदान कारक का चिन्ह या विभक्ति “के लिए” होती है। उसे सम्प्रदान तत्पुरुष समास कहते हैं।
सम्प्रदान तत्पुरुष समास के उदाहरण (Sampradan tatpurush ke udaharan)
- विद्यालय =विद्या के लिए आलय
- रसोईघर = रसोई के लिए घर
- सभाभवन = सभा के लिए भवन
- विश्रामगृह = विश्राम के लिए गृह
- गुरुदक्षिणा = गुरु के लिए दक्षिणा
- प्रयोगशाला = प्रयोग के लिए शाला
- देशभक्ति = देश के लिए भक्ति
- स्नानघर = स्नान के लिए घर
- सत्यागृह = सत्य के लिए आग्रह
- यज्ञशाला = यज्ञ के लिए शाला
- डाकगाड़ी = डाक के लिए गाड़ी
- देवालय = देव के लिए आलय
- गौशाला = गौ के लिए शाला
अपादान तत्पुरुष समास (Apadan tatpurush samas)
इसमें दो पदों के बीच में अपादान कारक छिपा होता है। अपादान कारक का चिन्ह (से) या विभक्ति ‘से अलग’ होता है। उसे अपादान तत्पुरुष समास कहते हैं।
अपादान तत्पुरुष समास के उदाहरण (Apadan tatpurush samas ke udaharan):
- कामचोर = काम से जी चुराने वाला
- दूरागत =दूर से आगत
- रणविमुख = रण से विमुख नेत्रहीन = नेत्र से हीन
- पापमुक्त = पाप से मुक्त
- देशनिकाला = देश से निकाला
- पथभ्रष्ट = पथ से भ्रष्ट
- पदच्युत =पद से च्युत
- जन्मरोगी = जन्म से रोगी
- रोगमुक्त = रोग से मुक्त
सम्बन्ध तत्पुरुष समास (Sambandh tatpurush samas)
इसमें दो पदों के बीच में सम्बन्ध कारक छिपा होता है। सम्बन्ध कारक के चिन्ह या विभक्ति “का, के, की” होती हैं। उसे सम्बन्ध तत्पुरुष समास कहते हैं।
सम्बन्ध तत्पुरुष समास के उदाहरण (Sambandh tatpurush samas ke udaharan)
- राजपुत्र = राजा का पुत्र
- गंगाजल =गंगा का जल
- लोकतंत्र = लोक का तंत्र
- दुर्वादल =दुर्व का दल
- देवपूजा = देव की पूजा
- आमवृक्ष = आम का वृक्ष
- राजकुमारी = राज की कुमारी
- जलधारा = जल की धारा
- राजनीति = राजा की नीति
- सुखयोग = सुख का योग
- मूर्तिपूजा = मूर्ति की पूजा
- श्रधकण = श्रधा के कण
- शिवालय = शिव का आलय
- देशरक्षा = देश की रक्षा
- सीमारेखा = सीमा की रेखा
अधिकरण तत्पुरुष समास (Adhikaran tatpurush samas)
इसमें दो पदों के बीच अधिकरण कारक छिपा होता है। अधिकरण कारक का चिन्ह या विभक्ति ‘ में ‘, ‘पर’ होता है। उसे अधिकरण तत्पुरुष समास कहते हैं।
अधिकरण तत्पुरुष समास के उदाहरण (Adhikaran tatpurush samas ke udaharan)
- कार्य कुशल =कार्य में कुशल
- वनवास =वन में वास
- ईस्वरभक्ति = ईस्वर में भक्ति
- आत्मविश्वास = आत्मा पर विश्वास
- दीनदयाल = दीनों पर दयाल
- दानवीर = दान देने में वीर
- आचारनिपुण = आचार में निपुण
- जलमग्न =जल में मग्न
- सिरदर्द = सिर में दर्द
- क्लाकुशल = कला में कुशल
- शरणागत = शरण में आगत
- आनन्दमग्न = आनन्द में मग्न
- आपबीती =आप पर बीती
तत्पुरुष समास के उपभेद (Tatpurush samas ke upbhed)
- नञ् तत्पुरुष समास
- उपपद तत्पुरुष समास
- लुप्तपद तत्पुरुष समास
उपपद तत्पुरुष समास
ऐसा समास जिनका उत्तरपद भाषा में स्वतंत्र रूप से प्रयुक्त न होकर प्रत्यय के रूप में ही प्रयोग में लाया जाता है। जैसे- नभचर , कृतज्ञ , कृतघ्न , जलद , लकड़हारा इत्यादि।
लुप्तपद तत्पुरुष समास
जब किसी समास में कोई कारक चिह्न अकेला लुप्त न होकर पूरे पद सहित लुप्त हो और तब उसका सामासिक पद बने तो वह लुप्तपद तत्पुरुष समास कहलाता है।जैसे –
- दहीबड़ा – दही में डूबा हुआ बड़ा
- ऊँटगाड़ी – ऊँट से चलने वाली गाड़ी
- पवनचक्की – पवन से चलने वाली चक्की आदि।
नञ तत्पुरुष समास (Nav samas in hindi)
इसमें पहला पद निषेधात्मक होता है उसे नञ तत्पुरुष समास कहते हैं।
नञ तत्पुरुष समास के उदाहरण (Nav tatpurush samas ke udaharn):
- असभ्य =न सभ्य
- अनादि =न आदि
- असंभव =न संभव
- अनंत = न अंत
कर्मधारय समास (Karmadharaya samas)
इस समास का उत्तर पद प्रधान होता है। इस समास में विशेषण -विशेष्य और उपमेय -उपमान से मिलकर बनते हैं उसे कर्मधारय समास कहते हैं।
कर्मधारय समास के उदाहरण (Karmdharay samas ke udaharan)
- चरणकमल = कमल के समान चरण
- नीलगगन =नीला है जो गगन
- चन्द्रमुख = चन्द्र जैसा मुख
- पीताम्बर =पीत है जो अम्बर
- महात्मा =महान है जो आत्मा
- लालमणि = लाल है जो मणि
- महादेव = महान है जो देव
- देहलता = देह रूपी लता
- नवयुवक = नव है जो युवक
कर्मधारय समास के भेद (Karmdharay samas ke bhed)
- विशेषणपूर्वपद कर्मधारय समास
- विशेष्यपूर्वपद कर्मधारय समास
- विशेषणोंभयपद कर्मधारय समास
- विशेष्योभयपद कर्मधारय समास
विशेषण पूर्वपद कर्मधारय समास:
जहाँ पर पहला पद प्रधान होता है वहाँ पर विशेषणपूर्वपद कर्मधारय समास होता है। जैसे :-
- नीलीगाय = नीलगाय
- पीत अम्बर =पीताम्बर
- प्रिय सखा = प्रियसखा
विशेष्य पूर्वपद कर्मधारय समास
इसमें पहला पद विशेष्य होता है और इस प्रकार के सामासिक पद ज्यादातर संस्कृत में मिलते हैं। जैसे :
- कुमारी श्रमणा = कुमारश्रमणा
विशेषणोंभयपद कर्मधारय समास –
इसमें दोनों पद विशेषण होते हैं। जैसे :
- नील – पीत
- सुनी – अनसुनी
- कहनी – अनकहनी
विशेष्योभयपद कर्मधारय समास
इसमें दोनों पद विशेष्य होते है। जैसे :-
- आमगाछ ,वायस-दम्पति।
कर्मधारय समास के उपभेद
- उपमानकर्मधारय समास
- उपमितकर्मधारय समास
- रूपककर्मधारय समास
उपमानकर्मधारय समास:
इसमें उपमानवाचक पद का उपमेयवाचक पद के साथ समास होता है। इस समास में दोनों शब्दों के बीच से ‘ इव’ या ‘जैसा’ अव्यय का लोप हो जाता है और दोनों पद , चूँकि एक ही कर्ता विभक्ति , वचन और लिंग के होते हैं , इसलिए समस्त पद कर्मधारय लक्ष्ण का होता है। उसे उपमानकर्मधारय समास कहते हैं। जैसे :-
- विद्युत् जैसी चंचला = विद्युचंचला
उपमितकर्मधारय समास:
यह समास उपमानकर्मधारय का उल्टा होता है। इस समास में उपमेय पहला पद होता है और उपमान दूसरा पद होता है। उसे उपमितकर्मधारय समास कहते हैं। जैसे :
- अधरपल्लव के समान = अधर – पल्लव ,
- नर सिंह के समान = नरसिंह।
रूपककर्मधारय समास:
जहाँ पर एक का दूसरे पर आरोप होता है वहाँ पर रूपककर्मधारय समास होता है। जैसे :-
मुख ही है चन्द्रमा = मुखचन्द्र।
द्विगु समास (Dvigu samas)
द्विगु समास में पूर्वपद संख्यावाचक होता है और कभी-कभी उत्तरपद भी संख्यावाचक होता हुआ देखा जा सकता है। इस समास में प्रयुक्त संख्या किसी समूह को दर्शाती है किसी अर्थ को नहीं |इससे समूह और समाहार का बोध होता है। उसे द्विगु समास कहते हैं।
द्विगु समास के उदाहरण (Dvigu samas ke udaharan)
- नवग्रह = नौ ग्रहों का समूह
- दोपहर = दो पहरों का समाहार
- त्रिवेणी = तीन वेणियों का समूह
- पंचतन्त्र = पांच तंत्रों का समूह
- त्रिलोक =तीन लोकों का समाहार
- शताब्दी = सौ अब्दों का समूह
- पंसेरी = पांच सेरों का समूह
- सतसई = सात सौ पदों का समूह
- चौगुनी = चार गुनी
- त्रिभुज = तीन भुजाओं का समाहार
द्विगु समास के भेद (Dvigu samas ke bhed)
- समाहारद्विगु समास
- उत्तरपदप्रधानद्विगु समास
समाहारद्विगु समास (Samahar dvigu samas)
समाहार का मतलब होता है समुदाय , इकट्ठा होना , समेटना उसे समाहारद्विगु समास कहते हैं। जैसे :
- तीन लोकों का समाहार = त्रिलोक
- पाँचों वटों का समाहार = पंचवटी
- तीन भुवनों का समाहार =त्रिभुवन
उत्तरपदप्रधानद्विगु समास (Uttar-pad-pradhan dvigu samas)
उत्तरपदप्रधानद्विगु समास दो प्रकार के होते हैं।
1. बेटा या फिर उत्पन्न के अर्थ में। जैसे :-
- दो माँ का =दुमाता
- दो सूतों के मेल का = दुसूती।
2. जहाँ पर सच में उत्तरपद पर जोर दिया जाता है। जैसे :
- पांच प्रमाण = पंचप्रमाण
- पांच हत्थड = पंचहत्थड
द्वन्द समास (Dwand samas)
इस समास में दोनों पद ही प्रधान होते हैं इसमें किसी भी पद का गौण नहीं होता है। ये दोनों पद एक-दूसरे पद के विलोम होते हैं लेकिन ये हमेशा नहीं होता है। इसका विग्रह करने पर और, अथवा, या, एवं का प्रयोग होता है उसे द्वंद्व समास कहते हैं।
द्वन्द समास उदाहरण (Dwand samas ka udharan)
- जलवायु = जल और वायु
- अपना-पराया = अपना या पराया
- पाप-पुण्य = पाप और पुण्य
- राधा-कृष्ण = राधा और कृष्ण
- अन्न-जल = अन्न और जल
- नर-नारी =नर और नारी
- गुण-दोष =गुण और दोष
- देश-विदेश = देश और विदेश
- अमीर-गरीब = अमीर और गरीब
द्वन्द समास के भेद (Dwand samas ke prakar)
- इतरेतरद्वंद्व समास
- समाहारद्वंद्व समास
- वैकल्पिकद्वंद्व समास
इतरेतरद्वंद्व समास (Itaretara dvandva)
वो द्वंद्व जिसमें और शब्द से भी पद जुड़े होते हैं और अलग अस्तित्व रखते हों उसे इतरेतर द्वंद्व समास कहते हैं। इस समास से जो पद बनते हैं वो हमेशा बहुवचन में प्रयोग होते हैं क्योंकि वे दो या दो से अधिक पदों से मिलकर बने होते हैं।
इतरेतर द्वंद्व समास के उदाहरण (Itaretara dvandva ke udaharan)
- राम और कृष्ण = राम-कृष्ण
- माँ और बाप = माँ-बाप
- अमीर और गरीब = अमीर-गरीब
- गाय और बैल =गाय-बैल
- ऋषि और मुनि = ऋषि-मुनि
- बेटा और बेटी =बेटा-बेटी
समाहार द्वन्द्व समास (Samahar dwand samas)
समाहार का अर्थ होता है समूह। जब द्वंद्व समास के दोनों पद और समुच्चयबोधक से जुड़ा होने पर भी अलग-अलग अस्तिव नहीं रखकर समूह का बोध कराते हैं , तब वह समाहारद्वंद्व समास कहलाता है। इस समास में दो पदों के अलावा तीसरा पद भी छुपा होता है और अपने अर्थ का बोध अप्रत्यक्ष रूप से कराते हैं।
समाहार द्वन्द्व समास के उदाहरण (Samahar dwand samas ke udaharan)
- दालरोटी = दाल और रोटी
- हाथपॉंव = हाथ और पॉंव
- आहारनिंद्रा = आहार और निंद्रा
वैकल्पिक द्वंद्व समास (Vaikalpik dwand samas ke udaharan)
इस द्वंद्व समास में दो पदों के बीच में या,अथवा आदि विकल्पसूचक अव्यय छिपे होते हैं उसे वैकल्पिक द्वंद्व समास कहते हैं। इस समास में ज्यादा से ज्यादा दो विपरीतार्थक शब्दों का योग होता है। जैसे-
- पाप-पुण्य =पाप या पुण्य
- भला-बुरा =भला या बुरा
- थोडा-बहुत =थोडा या बहुत
बहुव्रीहि समास (Bahuvrihi samas)
इस समास में कोई भी पद प्रधान नहीं होता। जब दो पद मिलकर तीसरा पद बनाते हैं तब वह तीसरा पद प्रधान होता है। इसका विग्रह करने पर “वाला है, जो, जिसका, जिसकी, जिसके, वह” आदि आते हैं वह बहुब्रीहि समास कहलाता है।
बहुव्रीहि समास के उदाहरण (Bahuvrihi samas ke example)
- गजानन = गज का आनन है जिसका (गणेश)
- त्रिनेत्र =तीन नेत्र हैं जिसके (शिव)
- नीलकंठ =नीला है कंठ जिसका (शिव)
- लम्बोदर = लम्बा है उदर जिसका (गणेश)
- दशानन = दश हैं आनन जिसके (रावण)
- चतुर्भुज = चार भुजाओं वाला (विष्णु)
- पीताम्बर = पीले हैं वस्त्र जिसके (कृष्ण)
- चक्रधर=चक्र को धारण करने वाला (विष्णु)
- वीणापाणी = वीणा है जिसके हाथ में (सरस्वती)
- स्वेताम्बर = सफेद वस्त्रों वाली (सरस्वती)
बहुव्रीहि समास के प्रकार/भेद (Bahuvrihi samas ke prakar/bhed)
- समानाधिकरण बहुब्रीहि समास
- व्यधिकरण बहुब्रीहि समास
- तुल्ययोग बहुब्रीहि समास
- व्यतिहार बहुब्रीहि समास
- प्रादी बहुब्रीहि समास
समानाधिकरण बहुब्रीहि समास (Samanadhikaran bahuvrihi samas)
इसमें सभी पद कर्ता कारक की विभक्ति के होते हैं लेकिन समस्त पद के द्वारा जो अन्य उक्त होता है ,वो कर्म, करण, सम्प्रदान, अपादान, सम्बन्ध, अधिकरण आदि विभक्तियों में भी उक्त हो जाता है उसे समानाधिकरण बहुब्रीहि समास कहते हैं। जैसे-
- प्राप्त है उदक जिसको = प्रप्तोद्क
- जीती गई इन्द्रियां हैं जिसके द्वारा = जितेंद्रियाँ
- दत्त है भोजन जिसके लिए =दत्तभोजन
- निर्गत है धन जिससे = निर्धन
- नेक है नाम जिसका = नेकनाम
- सात है खण्ड जिसमें = सतखंडा
व्यधिकरण बहुब्रीहि समास (Vyadhikaran bahuvrihi samas)
समानाधिकरण बहुब्रीहि समास में दोनों पद कर्ता कारक की विभक्ति के होते हैं लेकिन यहाँ पहला पद तो कर्ता कारक की विभक्ति का होता है लेकिन बाद वाला पद सम्बन्ध या फिर अधिकरण कारक का होता है उसे व्यधिकरण बहुब्रीहि समास कहते हैं। जैसे-
- शूल है पाणी में जिसके = शूलपाणी
- वीणा है पाणी में जिसके = वीणापाणी
तुल्ययोग बहुब्रीहि समास (Tulog bahuvrihi samas)
जिसमें पहला पद ‘सह’ होता है वह तुल्ययोग बहुब्रीहि समास कहलाता है। इसे सहबहुब्रीहि समास भी कहती हैं। सह का अर्थ होता है साथ और समास होने की वजह से सह के स्थान पर केवल स रह जाता है।
इस समास में इस बात पर ध्यान दिया जाता है की विग्रह करते समय जो सह दूसरा वाला शब्द प्रतीत हो वो समास में पहला हो जाता है। जैसे –
- जो बल के साथ है = सबल
- जो देह के साथ है = सदेह
- जो परिवार के साथ है = सपरिवार
व्यतिहार बहुब्रीहि समास (Vyatihar bahuvrihi samas)
जिससे घात या प्रतिघात की सुचना मिले उसे व्यतिहार बहुब्रीहि समास कहते हैं। इस समास में यह प्रतीत होता है की ‘ इस चीज से और उस चीज से लड़ाई हुई। जैसे –
- मुक्के-मुक्के से जो लड़ाई हुई = मुक्का-मुक्की
- बातों-बातों से जो लड़ाई हुई = बाताबाती
प्रादी बहुब्रीहि समास (Pradi bahuvrihi samas)
जिस बहुब्रीहि समास पूर्वपद उपसर्ग हो वह प्रादी बहुब्रीहि समास कहलाता है। जैसे-
- नहीं है रहम जिसमें = बेरहम
- नहीं है जन जहाँ = निर्जन
***
अन्य विशेष समास और उनके उदाहरण-
संयोगमूलक समास (Sanyog moolak samas)
संयोगमूलक समास को संज्ञा समास भी कहते हैं। इस समास में दोनों पद संज्ञा होते हैं अथार्त इसमें दो संज्ञाओं का संयोग होता है। जैसे :
- माँ-बाप, भाई-बहन, दिन-रात, माता-पिता।
आश्रयमूलक समास (Aashray moolak samas)
आश्रयमूलक समास को विशेषण समास भी कहा जाता है। यह प्राय कर्मधारय समास होता है। इस समास में प्रथम पद विशेषण होता है और दूसरा पद का अर्थ बलवान होता है। यह विशेषण-विशेष्य, विशेष्य-विशेषण, विशेषण,विशेष्य आदि पदों द्वारा सम्पन्न होता है। जैसे –
- कच्चाकेला , शीशमहल , घनस्याम, लाल-पीला, मौलवीसाहब , राजबहादुर।
वर्णनमूलक समास (Varn moolak samas)
इसे वर्णनमूलक समास भी कहते हैं। वर्णनमूलक समास के अंतर्गत बहुब्रीहि और अव्ययीभाव समास का निर्माण होता है। इस समास में पहला पद अव्यय होता है और दूसरा पद संज्ञा। उसे वर्णनमूलक समास कहते हैं। जैसे-
- यथाशक्ति , प्रतिमास , घड़ी-घड़ी, प्रत्येक, भरपेट, यथासाध्य।
समास युग्म में अंतर
कर्मधारय समास और बहुब्रीहि समास में अंतर
समास के कुछ उदहारण है जो कर्मधारय और बहुब्रीहि समास दोनों में समान रूप से पाए जाते हैं ,इन दोनों में अंतर होता है। कर्मधारय समास में एक पद विशेषण या उपमान होता है और दूसरा पद विशेष्य या उपमेय होता है। इसमें शब्दार्थ प्रधान होता है। कर्मधारय समास में दूसरा पद प्रधान होता है तथा पहला पद विशेष्य के विशेषण का कार्य करता है। जैसे – नीलकंठ = नीला कंठ
बहुब्रीहि समास में दो पद मिलकर तीसरे पद की ओर संकेत करते हैं इसमें तीसरा पद प्रधान होता है। जैसे-नीलकंठ = नील + कंठ
द्विगु समास और बहुब्रीहि समास में अंतर
द्विगु समास में पहला पद संख्यावाचक विशेषण होता है और दूसरा पद विशेष्य होता है जबकि बहुब्रीहि समास में समस्त पद ही विशेषण का कार्य करता है। जैसे –
- चतुर्भुज -चार भुजाओं का समूह
- चतुर्भुज -चार हैं भुजाएं जिसकी
द्विगु और कर्मधारय समास में अंतर
द्विगु का पहला पद हमेशा संख्यावाचक विशेषण होता है जो दूसरे पद की गिनती बताता है जबकि कर्मधारय का एक पद विशेषण होने पर भी संख्यावाचक कभी नहीं होता है। द्विगु का पहला पद्द ही विशेषण बन कर प्रयोग में आता है जबकि कर्मधारय में कोई भी पद दूसरे पद का विशेषण हो सकता है। जैसे –
- नवरात्र – नौ रात्रों का समूह
- रक्तोत्पल – रक्त है जो उत्पल
समास और संधि में अंतर
संधि का शाब्दिक अर्थ होता है मेल। संधि में उच्चारण के नियमों का विशेष महत्व होता है। इसमें दो वर्ण होते हैं इसमें कहीं पर एक तो कहीं पर दोनों वर्णों में परिवर्तन हो जाता है और कहीं पर तीसरा वर्ण भी आ जाता है। संधि किये हुए शब्दों को तोड़ने की क्रिया विच्छेद कहलाती है। संधि में जिन शब्दों का योग होता है उनका मूल अर्थ नहीं बदलता। जैसे – पुस्तक +आलय = पुस्तकालय।
समास का शाब्दिक अर्थ होता है संक्षेप। समास में वर्णों के स्थान पर पद का महत्व होता है। इसमें दो या दो से अधिक पद मिलकर एक समस्त पद बनाते हैं और इनके बीच से विभक्तियों का लोप हो जाता है। समस्त पदों को तोडने की प्रक्रिया को विग्रह कहा जाता है। समास में बने हुए शब्दों के मूल अर्थ को परिवर्तित किया भी जा सकता है और परिवर्तित नहीं भी किया जा सकता है। जैसे :- विषधर = विष को धारण करने वाला अथार्त शिव।
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