संपादक के नाम पत्र के कुछ प्रमुख शीर्षक
- नजर अपनी-अपनी
- लोकवाणी
- सुझाव और शिकायतें
- जनवाणी, आपके पत्र
- जनता की आवाज
- कुछ तथ्य
- विचार प्रवाह
- जनता का मंच
- लोकमत
- पाठक-पीठ
संपादक के नाम पत्र की उपयोगिता एवं महत्त्व
आज का युग समाचार-पत्रों का युग है। जनता तक सार्वजनिक रूप से अपने विचारों को समाचार-पत्रों तथा अन्य प्रकार के पत्रों के माध्यम से ही पहुँचाया जाता है और जनमत बनाने का माध्यम भी पत्र-पत्रिकाएँ ही है। यों तो लेखादि पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते हैं।
संक्षेप में तथा व्यापक रूप से यह कार्य संपादक के नाम पत्रों के द्वारा ही होता है। सम्पादक के नाम पत्र वस्तुतः एक प्रकार से विचार-विमर्श का खुला मंच है जिसके माध्यम से व्यक्ति घटनाओं, स्थितियों, लेखों, विचारों, सम्पादकीय टिप्पणियों आदि पर अपनी प्रतिक्रिया एवं विचार व्यक्त करता है और एक साथ कई लोग अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं, फिर उन प्रतिक्रियाओं के प्रति प्रतिक्रिया में पत्र लिखे जाते हैं, इस प्रकार सार्वजनिक रूप से व्यापक पैमाने पर विचार-विमर्श होता है।
यही संपादक के नाम पत्र की सबसे बड़ी उपयोगिता और महत्त्व है। संपादक के नाम पत्र-पत्रकारिता की महान् उपलब्धि है। यह किसी भी पत्र की लोकप्रियता का आधार भी है। अतः सम्पादक के नाम पत्र की निम्न उपयोगिताएँ मानी जा सकती है-
- यह विचार अभिव्यक्त करने का खुला सार्वजनिक मंच है। हर व्यक्ति इस मंच के माध्यम से जनता तथा शासन के सामने निर्भीक रूप से अपने विचार रख सकता है और विचारों के आदान-प्रदान में खुलकर भाग ले सकता है।
- जनमत को बनाने और प्रभावित करने और जानने का एक सशक्त माध्यम है। मुहल्ले की समस्या से लेकर राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं और प्रश्नों पर सम्पादक के नाम पत्र के द्वारा विचारों का आदान-प्रदान कर सम्बन्धित समस्याओं के विषय में जनमत को प्रभावित किया जा सकता है और बनाया भी जा सकता है तथा जाना जा सकता है।
- शासन तथा अधिकारियों का किसी व्यक्तिगत या सार्वजनिक समस्या के प्रति ध्यान आकर्षित करने का सबल एवं सरल माध्यम है। कोई भी व्यक्ति अपनी अथवा सार्वजनिक समस्याओं के निराकरण के लिए सम्पादक के नाम पत्र के द्वारा शासन तथा अधिकारियों का ध्यान आकर्षित कर सकता है।
- समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार, अव्यवस्था अथवा गुण्डागर्दी के विरुद्ध सार्वजनिक रूप से आवाज उठाने का भी एक उपयोगी माध्यम है।
- सम्पादक के नाम पत्रों के माध्यम से, किसी व्यक्ति के किसी काम, वक्तव्य अथवा उसके किसी भी विषय में जिसका जीवन सार्वजनिक महत्त्व का हो, आलोचना की जा सकती है और वह व्यक्ति इसी मंच से उत्तर भी दे सकता है। इस प्रकार के उत्तर-प्रति-उत्तर से जनता के भ्रम का निवारण होता है और व्यक्ति विशेष के बारे में जनमत का पता चलता है।
इस प्रकार संपादक के नाम पत्रों का सार्वजनिक दृष्टि से बड़ा उपयोग और महत्त्व है।
संपादक के नाम पत्रों में अपने गाँव, गली और मुहल्ले से लेकर राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं तक का चित्रण किया जाता है। इन पत्रों के विषय ‘सार्वजनिक समस्याओं’, ‘आर्थिक समस्याओं’, ‘राजनीतिक’, ‘व्यापारिक’ और ‘सामाजिक व सांस्कृतिक समस्याओं से सम्बन्धित होते हैं। विषय के आधार पर इन पत्रों को निम्न प्रकार वर्गीकृत किया जा सकता है-
- समस्या प्रधान पत्र– इन पत्रों में सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक समस्याओं पर विचार किया जाता है।
- शिकायती पत्र– इस श्रेणी में विभिन्न विभागों, संस्थाओं और उनके कर्मचारियों के आचरण और शासन-सूत्र की अव्यवस्था आदि से सम्बन्धित पत्र आते हैं। इन पत्रों द्वारा सरकार और उसके अधिकारियों का ध्यान आकर्षित किया जाता है।
- निवेदन या अपील– इस प्रकार के पत्रों में अकाल पीड़ितों, बाढ़ पीड़ितों या अन्य किसी प्रकोप से ग्रस्त व्यक्तियों की सहायता हेतु निवेदन किया जाता है।
- समीक्षात्मक– इस प्रकार के पत्रों में किसी समस्या पर अपना सुझाव प्रस्तुत किया जाता है। कभी-कभी सम्पादक भी इस प्रकार के सुझाव आमन्त्रित करते हैं।
- स्पष्टीकरण– इस प्रकार के पत्रों में कोई व्यक्ति अपने ऊपर लगाये गये आरोपों का स्पष्टीकरण देता है।
उदाहरण
छात्रों की असुविधाओं के लिए संपादक के नाम पत्र
बजाज नगर,
जयपुर
दिनांक 15 सितम्बर, 2020
सेवा में,
सम्पादक,
राजस्थान पत्रिका
जयपुर
मान्यवर,
यह पत्र आपके लोकप्रिय दैनिक राजस्थान पत्रिका में प्रकाशनार्थ भेज रहा हूँ। आशा है, प्रकाशित कर अनुगृहीत करेंगे।
“विषयः- छात्रों की असुविधायें“
राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर का नवीनतम पाठ्यक्रम महाविद्यालयों का सत्र प्रारम्भ होने के चार माह तक प्रकाशित नहीं हुआ है। फलतः छात्रों का अध्ययन विधिवत् और सुचारू रूप से नहीं चल पा रहा है। ऐसी स्थिति में विश्वविद्यालयों के अधिकारियों तथा कुलपति महोदय को शीघ्र कदम उठाकर छात्रों की असुविधा एवं परेशानियों को दूर करना चाहिए, अन्यथा असन्तोष की भावना आन्दोलन का रूप ले सकती है।