व्यावसायिक पत्र (Vyavsayik Patra Lekhan) – व्यावसायिक पत्र की रूपरेखा और प्रारूप

व्यावसायिक पत्र:
आज का युग व्यापार-प्रदान युग है। चारों ओर उद्योग धन्धों का जाल फैलता जा रहा है। अनेक प्रकार के उद्योगों के बीच परस्पर सम्बन्ध और व्यापार की दृष्टि से पत्राचार का महत्त्व बहुत बढ़ गया है। व्यापारिक जटिलताओं को देखते हुए आज मौखिक शब्द की अपेक्षा लिखित शब्द बहुत महत्त्वपूर्ण हो गया है।
          कच्चा माल मँगाना है, माल बेचने के लिए बाजार की खोज करनी है, व्यापारिक शर्ते तय करनी है और भी अनेक व्यावसायिक कार्यों के लिए पत्राचार आवश्यक है। यह पत्राचार ही व्यावसायिक पत्राचार कहलाता है। इसलिए एक व्यावसायिक संस्थान संगठन का प्रतिष्ठान का दूसरे उद्योग समूह के साथ जिस प्रकार के पत्रों का आदान-प्रदान होता है, वे ही व्यावसायिक पत्र कहे जाते हैं।

ये पत्र इसलिए उपयोगी हैं क्योंकि इन पत्रों से-

  1. समय बचता है।
  2. पैसा कम खर्च होता है।
  3. प्रचार और विज्ञापन का काम देते हैं।
  4. उद्योगों में परस्पर निकटता आती है।
  5. विवाद उत्पन्न होने पर ये अकाट्य प्रमाण का काम देते हैं।
  6. इन पत्रों के माध्यम से माल मँगाने और बेचने में सहायता मिलती है।
  7. व्यापारिक साख बढ़ती है।
  8. विवाद और भ्रम का निवारण होता है।

सामान्यतः निम्नांकित कार्यों के लिए व्यावसायिक पत्र लिखे जाते हैं-

  1. मूल्य या भाव जानने के लिए।
  2. मूल्य और सामग्री-सूची मँगाने के लिए।
  3. कोई नमूना मँगाने के लिए।
  4. भुगतान के लिए।
  5. सामग्री क्रय करने के लिए।
  6. विक्रय-प्रस्ताव भेजने के लिए।
  7. एजेन्सी लेने या देने के लिए।
  8. बीमा सम्बन्धी कार्य के लिए।
  9. कोई शिकायत करने के लिए।
  10. बैंक से कोई अनुरोध करने के लिए।

व्यावसायिक पत्र में ध्यान देने योग्य बातें

          एक व्यावसायिक पत्र को स्वच्छ और प्रभावपूर्ण बनाये रखने के लिए निम्नांकित विशेषताओं को ध्यान में रखना चाहिए-

  1. व्यावसायिक पत्र मुद्रित लैटरहैड पर लिखा जाना या टाइप किया जाना चाहिए।
  2. पत्र में काट-छाँट नहीं होनी चाहिए। यदि काट-छाँट आवश्यक हो गया हो तो उसे दुबारा सुन्दर एवं स्पष्ट लिखावट में लिखा जाना चाहिए। वैसे व्यवसाय पत्र टाइप किए हुए ही अच्छे होते हैं।
  3. हर नयी बात के लिए अलग परिच्छेद होना चाहिए। एक ही परिच्छेद में एक से अधिक बातों को ढेर सा नहीं लगा देना चाहिए।
  4. पत्र की भाषा सरल और स्पष्ट होनी चाहिए।
  5. जहाँ तक सम्भव हो,पत्र छोटा और अपने आप में पूर्णता लिए हुए होना चाहिए।
  6. सामग्री की गुणवत्ता का यथा तथ्य उल्लेख होना चाहिए। किसी प्रकार की अतिशयोक्ति नहीं की जानी चाहिए, इससे साख कम हो जाती है।
  7. पत्र से प्रामाणिकता का प्रभाव पड़ना चाहिए। कोई बात ढुलमुल, अप्रासंगिक, का या सन्देह उत्पन्न करने वाली नहीं होनी चाहिए। विश्वसनीयता और स्पष्ट प्रभाव व्यापार में बढ़ोत्तरी करते हैं।
  8. व्यावसायिक पत्र में शिष्टता और विनम्रता का पूरा ध्यान रखना आवश्यक है। ‘मीठा बोल, पूरा तोल’ यह व्यापार की सफलता और समृद्धि का मूल मन्त्र है।

व्यावसायिक पत्र लेखन की रीति

  1. संस्था के ‘लेटर हैड’ पर व्यापारिक संस्थान का नाम, पता, फोन, फैक्स आदि की संख्या छपी होती है, न हो तो आवश्यक रूप से टाइप करवा कर ही पत्र लिखना चाहिए। 
  2. बायीं ओर पत्रांक और क्रमांक होता है।
  3. इसके नीचे पत्र पाने वाले व्यक्ति का नाम, पद या संस्था का नाम होता है।
  4. इसके बाद बायीं ओर ही ‘प्रिय महोदय’ आदि सम्बोधन होता है।
  5. व्यावसायिक युग में अभिवादन का प्रयोग नहीं हुआ करता है।
  6. इसके बाद पत्र का मूल भाग होता है जिसमें सम्बन्धित विषय का स्पष्ट, किन्तु संक्षिप्त विवरण दिया जाता है।
  7. दांयी और ‘भवदीय’ शब्द लिखा जाता है।
  8. ‘भवदीय’ के नीचे हस्ताक्षर और फिर नाम व पद लिखा जाता है।
  9. पत्र के साथ कोई और कागज-पत्र, रसीद आदि हों तो नीचे ‘संलग्न’ लिख कर उनका उल्लेख कर देना चाहिए।
  10. पत्र की प्रति कहीं और भेजी जा रही हो तो ‘प्रति प्रेषित’ लिखकर प्रति जहाँ भेजी जा रही है, उसका उल्लेख कर दिया जाता है।

व्यावसायिक पत्र की रूपरेखा

Vyavasayik Patra Ki Rooprekha

व्यावसायिक पत्रों के प्रकार एवं उदाहरण

          व्यवसाय में भिन्न-भिन्न प्रयोजनों से पत्र लिखे जाते हैं। अतः वे नाना प्रकार के होते हैं।

सामान्यतः व्यवसाय जगत् में प्रयुक्त होने वाले पत्रों के निम्नलिखित प्रकार भेद

1. पूछताछ-पत्र

          जो पत्र किसी माल के गुण, प्रकार, मूल्य, उपयोगिता, भुगतान शर्तों आदि की आवश्यक जानकारी हेतु लिखे जाते हैं, वे पूछताछ पत्र कहलाते हैं। उदाहरणार्थ-

संजय पुस्तक मन्दिर
(पुस्तक प्रकाशक एवं विक्रेता)

          शास्त्री नगर,
          जयपुर
          दिनांक 10.9.2020
सेवा में,
          प्रभाकर प्रकाशन,
          कचहरी रोड़ अजमेर
प्रिय महोदय,
          कृपया अप्रैल, 2020 के पश्चात् आपके यहाँ से प्रकाशित पुस्तकों का सूची पत्र शीघ्र ही भेजने का कष्ट करें। कमीशन की पिछली दरों में कोई परिवर्तन हुआ हो, तो उसकी भी सूचना दें।
                 भवदीय,
          कमल किशोर जैन
              व्यवस्थापक

2. आदेश पत्र

          माल मँगाने के आदेश से सम्बन्धित सभी प्रकार के पत्र आदेश पत्र कहलाते हैं। जिन पत्रों द्वारा माल मंगाया जाता है, माल भेजने की सूचना दी जाती है, किसी कारण मंगाने का आदेश रद्द किया जाता है, आदेश के अनुसार माल भेज पाने में असमर्थता व्यक्त की जाती है, आदेश में कुछ परिवर्तन किया जाता है-वे सभी इस वर्ग में आते हैं। आदेश-पत्र का एक उदाहरण प्रस्तुत है-

अलवर पुस्तक प्रकाशन
(प्रमुख पुस्तक विक्रेता)

          अलवर
          दिनांक 15 सितम्बर, 2020
सेवा में,
          व्यवस्थापक,
          संजय पुस्तक मन्दिर
          जयपुर।
प्रिय महोदय,
          कृपा करके निम्नलिखित पुस्तकें रेलवे पार्सल द्वारा भेजने का कष्ट करें-

1. सामान्य हिन्दी 15 प्रतियाँ
2. महाकवि निराला 15 प्रतियाँ
3. कबीर वाणी 10 प्रतियाँ
4. कामायनी की टीका 10 प्रतियाँ

          साथ में अपना नया सूची-पत्र भी भेजने का कष्ट करें।
                     भवदीय
             ओंकार नाथ गर्ग
          क्रय-विक्रय अधिकारी

3. एजेन्सी-पत्र

          अपने माल की बिक्री बढ़ाने हेतु एजेन्सी देने, दूसरे के उत्पादन को बेचने के लिए एजेन्सी लेने हेतु अधिक कमीशन की माँग आदि के लिए लिखे जाने वाले पत्र एजेन्सी-पत्र कहलाते हैं। उदाहरण के लिए-

जगत आयुर्वेदिक औषधि भण्डार
(आयुर्वेदिक औषधियों के विक्रेता)

          जगतपुरा,
          जयपुर
          दिनांक 19 सितम्बर, 2020
सेवा में,
          व्यवस्थापक,
          श्री वैद्यनाथ आयुर्वेद भवन प्रा. लि.
          कोलकता।
प्रिय महोदय,
          10 सितम्बर, 2020 के ‘जनसत्ता’ दैनिक में जयपुर में एजेण्ट की आवश्यकता हेतु किए गये आपके विज्ञापन के सन्दर्भ में हम अपने संस्थान को इस सेवा के लिए प्रस्तुत करते हैं। हम आयुर्वेदिक औषधि-विक्रय क्षेत्र में तीन वर्षों से कार्यरत हैं और उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान तथा मध्य प्रदेश में हमें इन औषधियों के विक्रय का अच्छा बाजार उपलब्ध है। अतः हम आपके उत्पादनों की अच्छी बिक्री कर सकने में पूर्णत: समर्थ हैं। हम अन्य संस्थानों के साथ 20 प्रतिशत कमीशन पर कार्य करते हैं। यही कमीशन हम आपसे भी चाहेंगे।
          हमारी कमीशन दर पर आप हमें जयपुर में अपना एजेन्ट नियुक्त करने की स्वीकृति प्रदान करेंगे, तो हम आपकी भली प्रकार सेवा कर सकेंगे, ऐसा हम विश्वास दिलाते हैं।
               भवदीय
           प्रेमचन्द जैन
              संचालक

4. शिकायती पत्र

          खरीददार अपने आदेश के अनुरूप माल न मिलने, माल में खराबी होने, बिल्कुल माल न मिलने, देर से माल मिलने, रास्ते में माल खराब हो जाने, बैंक, रेलवे, बिजली घर आदि से वांछित सहयोग न मिल पाने आदि के सम्बन्ध में अपनी शिकायत प्रस्तुत करते हुए पत्र लिखते हैं, वे पत्र शिकायती पत्र या परिवाद पत्र कहलाते हैं। उदाहरणार्थ-

भारत मेडिकल स्टोर
(अंग्रेजी दवाओं के प्रमुख विक्रेता)

          70, जयपुर हाऊस
          चौड़ा रास्ता, जयपुर
          दिनांक 17.7.2020
सेवा में,
          प्रबन्धक,
          हिमालय ड्रग कम्पनी
          मुम्बई।
प्रिय महोदय,
          अत्यन्त खेद के साथ हमें यह लिखना पड़ रहा है कि 15.9.2020 को आपका आप का जो पार्सल हमें प्राप्त हुआ है, उसमें लीवर-52 की 300 शीशियों के स्थान पर का 250 शीशियाँ ही प्राप्त हुई हैं, जिनमें से 43 की सील खराबी से दवा रिस गयी है। हम वे 43 शीशियाँ लौटा रहे हैं। अब कपया लीवर-52 की 93 शीशियाँ तरन्त भेज दे, ताकि हमारी बिक्री पर विपरीत प्रभाव न पड़ सके।
                भवदीय
          सुरेश चन्द्र मीणा
             व्यवस्थापक

5. सूचना-प्रचार पत्र

उत्पादित माल की बिक्री के लिए ग्राहकों को आमन्त्रित और आकर्षित करने के लिखे जाने वाला पत्र सूचना-प्रभाव पत्र कहलाता है। इन पत्रों का प्रारूप अन्य पत्रों जैसा ही रहता है। इनमें विनम्रतापूर्वक अपने माल से सम्बन्धित नाम, मल्य, दर, बिक्री की शर्ते, कमीशन दर, भुगतान की सुविधाएँ, माल भेजने की सुविधाएँ आदि की सूचना देते हुए व्यवसायियों से अपने माल को बेचने में सहयोग माँगा जाता है।

6. साख सम्बन्धी पत्र

विक्रेता अपने प्रतिनिधि को जब माल की बिक्री बढ़ाने के उद्देश्य से सुदूर क्षेत्र में भेजता है तब उस क्षेत्र के ग्राहकों को अपने परिचित संस्थानों या बैंकों के लिए उस व्यक्ति से अपेक्षित सहयोग करने और आवश्यकता पड़ने पर एक निश्चित धनराशि प्रदान करने आदि के लिए जो पत्र लिखता है, उसे साख सम्बन्धी पत्र कहते हैं। ऐसे पत्र में विक्रेता फर्म की साख काम करती है। जो पत्र एक ही व्यक्ति (या संस्था) को लिखा जाता है, उसे गश्ती कहते हैं।

7. परिचय-पत्र

जो पत्र किसी विक्रेता द्वारा अन्य व्यापारियों से मिलने हेतु भेजे जाने वाले अपने प्रतिनिधि का उस फर्म (या व्यापारी) को परिचय देने के लिए लिखा जाता है, उसे परिचय-पत्र कहते हैं। इसमें भेजे जाने वाले अपने प्रतिनिधि का नाम, उसके इस व्यवसाय में अनुभव, उसकी दक्षता और उसे भेजने के उद्देश्य आदि का विवरण दिया जाता है, ताकि उसे सम्मानित प्रतिनिधि माना जा सके।

8. भुगतान सम्बन्धी पत्र

बिके हुए माल का भुगतान एक निश्चित समय में न मिलने पर भुगतान करने की प्रार्थना करते हुए जो पत्र खरीददार फर्म को लिखे जाते हैं, वे भुगतान सम्बन्धी पत्र कहलाते है। फिर भी भुगतान न होने पर ऐसे अनेक पत्र बार-बार लिखे जाते हैं।

9. धन्यवाद पत्र

व्यवसायी या फर्म को किसी से व्यवसाय के हित में परामर्श करने पर, किसी नये ग्राहक द्वारा पहला क्रय-आदेश मिलने पर, किसी पुराने ग्राहक से माल के लिए बड़ा आदेश मिलने पर उसके प्रति आभार व्यक्त करने हेतु जो पत्र समय-समय पर लिखे जाते है, उन्हें धन्यवाद पत्र कहते हैं।

10. बीमा सम्बन्धी पत्र

व्यवसायी को अपने व्यापारिक संस्थान की सुरक्षा, क्षतिपूर्ति आदि के लिए बीमा कंपनी से सम्बन्ध स्थापित करने पड़ते हैं। इस सम्बन्ध में बीमा कम्पनी से जो भी पत्र-व्यवहार होता है, उसे बीमा सम्बन्धी पत्रों की श्रेणी में गिना जा सकता है अथवा गिना जाता है।

11. बैंक सम्बन्धी पत्र

व्यवसायी व्यक्ति या फर्म द्वारा बैंक में खाता खोलने, ऋण लेने, बिलों को स्वीकृत कराने, चैक का धन संगृहीत न होने पर उस सम्बन्ध में पूछताछ करने आदि के लिए निरन्तर बैंक से पत्र-व्यवहार करना होता है। इस प्रकार के सभी पत्र बैंक सम्बन्धी पत्र कहलाते हैं।

12. यातायात सम्बन्धी पत्र

माल के समुचित यातायात हेतु व्यवसायियों को समय-समय पर ट्रान्सपोर्ट कम्पनियों, कस्टम, रेलवे, शिपिंग या हवाई कम्पनी के फारवर्डिंग एजेण्टों आदि को पत्र लिखने पड़ते हैं। ये सभी पत्र यातायात सम्बन्धी पत्र कहलाते हैं।

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