भारत विविधताओं से भरा देश है, जहां हर त्योहार को अनूठे और पारंपरिक तरीकों से मनाया जाता है। ऐसी ही एक विशेष परंपरा है पत्थर मार होली, जो राजस्थान के डूंगरपुर जिले के भीलूड़ा गांव में मनाई जाती है। स्थानीय भाषा में इसे ‘राड़’ कहा जाता है, जिसका अर्थ ‘लड़ाई’ होता है। यह परंपरा लगभग 100 वर्षों से चली आ रही है और इसे देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं।
पत्थर मार होली | Pattharmar Holi
धुलंडी के दिन शाम को गांव के लोग दो समूहों में बंटकर रघुनाथजी मंदिर के पास एकत्रित होते हैं। रस्सी से बने गोफनों की मदद से वे एक-दूसरे पर पत्थर फेंकते हैं। प्रतिभागी हाथों में ढाल लेकर खुद को बचाने का प्रयास करते हैं, लेकिन कई बार वे घायल भी हो जाते हैं। इस आयोजन के दौरान ढोल-नगाड़ों की थाप पर गैर नृत्य भी किया जाता है, जो माहौल को और भी उत्साहपूर्ण बना देता है।
परंपरा का महत्व
स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, होली के दिन खून बहाना आवश्यक है, अन्यथा गांव पर कोई बड़ा संकट आ सकता है। इसलिए, पत्थर मार होली के दौरान खून बहाकर इस परंपरा का पालन किया जाता है। हालांकि, यह परंपरा खतरनाक है, लेकिन गांव के लोग इसे पूरी श्रद्धा और उत्साह के साथ निभाते हैं।
हाल के वर्षों में, इस परंपरा के दौरान कई लोग घायल हुए हैं। इसलिए, स्थानीय प्रशासन और गांव के लोग मिलकर सुरक्षा के उपायों पर ध्यान दे रहे हैं, ताकि इस अनूठी परंपरा को सुरक्षित तरीके से निभाया जा सके।
पत्थर मार होली राजस्थान की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का एक हिस्सा है, जो हमें हमारी परंपराओं और मान्यताओं की गहराई से परिचित कराती है।