पत्थर मार होली | PattharMar Holi 2025 | राजस्थान की पारंपरिक पत्थर मार होली

PattharMar Holi: पत्थर मार होली, जो राजस्थान के डूंगरपुर जिले के भीलूड़ा गांव में मनाई जाती है। स्थानीय भाषा में इसे 'राड़' कहा जाता है। इस लेख में जानिए राजस्थान की पारंपरिक पत्थर मार होली के बारे में सरल शब्दों में।

Pattharmar Holi

भारत विविधताओं से भरा देश है, जहां हर त्योहार को अनूठे और पारंपरिक तरीकों से मनाया जाता है। ऐसी ही एक विशेष परंपरा है पत्थर मार होली, जो राजस्थान के डूंगरपुर जिले के भीलूड़ा गांव में मनाई जाती है। स्थानीय भाषा में इसे ‘राड़’ कहा जाता है, जिसका अर्थ ‘लड़ाई’ होता है। यह परंपरा लगभग 100 वर्षों से चली आ रही है और इसे देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं।

पत्थर मार होली | Pattharmar Holi

धुलंडी के दिन शाम को गांव के लोग दो समूहों में बंटकर रघुनाथजी मंदिर के पास एकत्रित होते हैं। रस्सी से बने गोफनों की मदद से वे एक-दूसरे पर पत्थर फेंकते हैं। प्रतिभागी हाथों में ढाल लेकर खुद को बचाने का प्रयास करते हैं, लेकिन कई बार वे घायल भी हो जाते हैं। इस आयोजन के दौरान ढोल-नगाड़ों की थाप पर गैर नृत्य भी किया जाता है, जो माहौल को और भी उत्साहपूर्ण बना देता है।

परंपरा का महत्व

स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, होली के दिन खून बहाना आवश्यक है, अन्यथा गांव पर कोई बड़ा संकट आ सकता है। इसलिए, पत्थर मार होली के दौरान खून बहाकर इस परंपरा का पालन किया जाता है। हालांकि, यह परंपरा खतरनाक है, लेकिन गांव के लोग इसे पूरी श्रद्धा और उत्साह के साथ निभाते हैं।

हाल के वर्षों में, इस परंपरा के दौरान कई लोग घायल हुए हैं। इसलिए, स्थानीय प्रशासन और गांव के लोग मिलकर सुरक्षा के उपायों पर ध्यान दे रहे हैं, ताकि इस अनूठी परंपरा को सुरक्षित तरीके से निभाया जा सके।

पत्थर मार होली राजस्थान की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का एक हिस्सा है, जो हमें हमारी परंपराओं और मान्यताओं की गहराई से परिचित कराती है।

Holi Hai 27

FAQs

1.

पत्थर मार होली कहाँ मनाई जाती है?

राजस्थान के डूंगरपुर जिले के भीलूड़ा गांव में होली का पर्व एक अनूठी परंपरा के साथ मनाया जाता है, जिसे पत्थर मार होली या स्थानीय भाषा में 'राड़' कहा जाता है। इस परंपरा में, होली के दिन शाम को गांव के लोग दो समूहों में बंटकर रघुनाथजी मंदिर के पास एकत्रित होते हैं और रस्सी से बने गोफनों की मदद से एक-दूसरे पर पत्थर फेंकते हैं।

2.

पत्थर मार होली कैसे मनाई जाती है?

होली के दिन शाम को गांव के लोग दो समूहों में बंटकर रघुनाथजी मंदिर के पास एकत्रित होते हैं और रस्सी से बने गोफनों की मदद से एक-दूसरे पर पत्थर फेंकते हैं। इस दौरान, प्रतिभागी ढालों का उपयोग करके खुद को बचाने का प्रयास करते हैं, लेकिन कई बार वे घायल भी हो जाते हैं। मान्यता है कि इस परंपरा का पालन करने से गांव में खुशहाली और समृद्धि बनी रहती है। यह परंपरा लगभग 100 वर्षों से चली आ रही है और इसे देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं।

3.

पत्थर मार होली क्यों मनाई जाती है?

डूंगरपुर जिले के भीलूड़ा गांव की मान्यता के अनुसार, होली के दिन यहां के राजा ने एक पाटीदार व्यक्ति को मृत्युदंड दिया था। दुखद घटना के बाद, उसकी पत्नी ने पति के शव के साथ चिता में सती हो जाने का निर्णय लिया। कहा जाता है कि मरते समय उसने श्राप दिया कि यदि हर साल होली पर रक्त नहीं बहेगा, तो धरती पर कोई बड़ी आपदा आ जाएगी। इस मान्यता के चलते, भीलूड़ा गांव में हर साल अनोखी परंपरा के रूप में "पत्थर मार होली" मनाई जाती है, जिसमें लोग एक-दूसरे पर पत्थर फेंकते हैं

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