अकबर के नवरत्न – अकबर के दरबार के 9 रत्नों के नाम

अकबर के दरबार के नवरत्न : अकबर के नवरत्न (Nine Jewels of Akbar) एक नौ व्यक्तियों का समूह है जो मुग़ल सम्राट अकबर के दरबार में महत्वपूर्ण नृत्यकला, साहित्य, विज्ञान, गणित, तर्कशास्त्र, राजनीति, चिकित्सा, संगीत, और शिक्षा से जुड़े नौ विद्वानों को संदर्भित करता है। इन नवरत्नों को अकबर के दरबार में उनके साथी, संगीतकार, विद्वान, वित्तमंत्री, सेनापति, मंत्री और हकीम आदि के रूप में स्थान दिया गया था, जिन्होंने अपने-अपने क्षेत्र में अत्यधिक ख्याति प्राप्त की।

Akbar ke Navratna - Akbar ke 9 ratan (ratna)

अकबर के दरबार के नवरत्न (9 रत्नों के नाम) निम्नलिखित हैं:

  1. अबुल फज़ल – अबुल फजल इब्न मुबारक
  2. फ़ैज़ी – शेख अबु अल-फ़ैज़
  3. तानसेन – रामतनु पाण्डेय
  4. राजा बीरबल – महेशदास
  5. राजा टोडरमल
  6. राजा मान सिंह – मिर्ज़ा राजा मान सिंहजी
  7. रहीमदास – अब्दुल रहीम ख़ान-ए-ख़ाना
  8. हक़ीम हुमाम – फकीर अजिओं-दिन
  9. मुल्ला दो प्याज़ा

1. अबुल फज़ल (अबुल फजल इब्न मुबारक) – इतिहासकार

अबुल फजल का पूरा नाम अबुल फजल इब्न मुबारक था, जो अरब के हिजाजी परिवार से संबंधित थे। इनका जन्म 14 जनवरी 1551 में हुआ था और इनके पिता का नाम शेख मुबारक था। अबुल फजल ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तकों, जैसे कि अकबरनामा और आइने अकबरी, की रचना की। वे अकबर के नवरत्नों में से एक भी थे।

Abul Fazl - Akbar ke Navratna, 9 ratan (ratna) me se ek

अबुल फजल का प्रारंभिक जीवन इतिहास में दरबारों और समाजों के बीच यात्राओं से भरा हुआ था। उनका जन्म आगरा में हुआ था, और उनका पूरा परिवार पहले सिंध से आकर स्थायी रूप से राजस्थान के नागौर, आस-पास के अजमेर, में बस गया था। अबुल फजल का बचपन से ही उदार और प्रतिभाशाली था। उनके पिताजी ने उनकी शिक्षा का विशेष ध्यान रखा और उन्हें एक गुणी समीक्षक और विद्वान बनाया।

उनकी 20 वर्ष की आयु में ही उन्होंने शिक्षक बनने का निर्णय लिया, और 1573 ई. में उन्हें अकबर के दरबार में स्वीकृति मिली। अबुल फजल ने अपनी असाधारण प्रतिभा, सतर्क निष्ठा, और वफादारी के साथ अकबर का विश्वास प्राप्त किया और उन्हें शीध्र ही प्रधानमंत्री बनने का औरोध मिला।

अबुल फजल ने अपने राजनैतिक और साहित्यिक योगदान के साथ ही इतिहास लेखन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने अकबरनामा और आइने अकबरी की रचना करके भारतीय मुग़लकालीन समाज और सभ्यता का विवरण किया और इसे लोगों के सामने प्रस्तुत किया।

2. फ़ैज़ी (शेख अबु अल फ़ैज़) – कवि एवं शिक्षक

शेख अबु अल-फ़ैज़ (24 सितंबर 1547, आगरा – 5 अक्टूबर 1595, आगरा), जिनको फ़ैज़ी के नाम से जाना जाता है, मध्यकालीन भारत के एक फ़ारसी कवि थे। 1588 में उन्होंने अकबर के मलिक-उश-शुआरा (विशेष कवि) का पद प्राप्त किया। फ़ैज़ी अबुल फजल के बड़े भाई थे और सम्राट अकबर ने उन्हें अपने पुत्र के गणित शिक्षक के रूप में नियुक्त किया था। उन्हें बाद में अकबर ने अपने नवरत्नों में से एक चुना गया।

Faizi - Akbar ke Navratna, 9 ratan (ratna) me se ek

फ़ैज़ी के पिता का नाम शेख मुबारक नागौरी था और वे सिंध के सिविस्तान, सहवान के निकट रेल नामक स्थान के एक सिन्धी शेख शेख मूसा की पांचवीं पीढ़ी से थे। उनका जन्म आगरा में 954 हि. (1547 ई.) में हुआ था। उन्होंने अपनी पूरी शिक्षा अपने पिता से प्राप्त की थी और उनके पिताजी सुन्नी, शिया, महदवी सबसे सहानुभूति रखते थे। फ़ैज़ी तथा अबुल फ़ज़ल ने इसी दृष्टिकोण के कारण अकबर के राज्यकाल में सुलह कुल (धार्मिक सहिष्णुता) की नीति को स्पष्ट रूप से समर्थन दिया।

974 हि. (1567 ई.) में फ़ैज़ी ने शाही दरबार के कवि बनने का मौका पाया, किंतु अब तक धार्मिक विषयों पर अकबर ने स्वतंत्र रूप से निर्णय लेना शुरू नहीं किया था, इसके कारण शेख मुबारक, फ़ैज़ी और अबुल फ़ज़ल ने कुछ समय तक दरबार के आलिमों के अत्याचार का सामना करना पड़ा।

1574 ई. में अबुल फ़ज़ल भी दरबार में शामिल हुए और उस समय से फ़ैज़ी की भी उन्नति हुई। 1578 ई. में अकबर ने अपने पुत्र शाहज़ादे सलीम और मुराद की शिक्षा का भार उनको सौंपा। 1579 ई. में अकबर ने फ़तहपुर की जामा मस्जिद में जो खुतबा पढ़ा उसकी रचना फ़ैज़ी ने की थी।

990 हि. (1581 ई.) में इन्हें अकबर द्वारा आगरा, कालपी और कलिंजर का सदर नियुक्त किया गया और 11 फ़रवरी 1589 ई. को उन्हें ‘मलिकुश्शु अरा’ (कविसम्राट्) की उपाधि प्रदान की गई। 999 हि. (अगस्त, 1591 ई.) में उन्हें खानदेश के राजा अली खां और अहमदनगर के बुरहानुलमुल्क के पास राजदूत बनाकर भेजा गया, लेकिन एक वर्ष आठ महीने चौदह दिन के बाद उन्होंने दरबार में वापसी की।

10 सफ़र, 1003 हि. (15 अक्टूबर 1595 ई.) को दक्खिन से वापस लौटने के कुछ वर्षों बाद फ़ैज़ी को क्षय रोग के अत्यधिक बढ़ने से आगरा में उनकी मृत्यु हो गई। पहले उन्हें आगरा के रामबाग में दफ़नाया गया, किन्तु बाद में सिकंदरा के पास उनके मकबरे में दफ़नाया गया।

3. तानसेन (रामतनु पाण्डेय) – संगीतकार

संगीत सम्राट तानसेन, जिनका जन्म संवत 1563 में बेहट ग्राम में हुआ था और मृत्यु संवत 1646 में हुई, उन्हें भारत के प्रमुख गायकों, मुग़ल संगीत के संगीतकारों, और बेहतरीन संगीतज्ञों में से एक माना जाता है। उनका नाम अकबर के प्रमुख संगीतज्ञों की सूची में सर्वोपरि है। तानसेन दरबारी कलाकारों का मुखिया था और सम्राट के नवरत्नों में से एक भी थे। उनके प्रामाणिक जीवन-वृत्तांत पर अज्ञातता है, लेकिन उनका संगीत और कला में महत्त्वपूर्ण योगदान है।

Tansen - Akbar ke Navratna, 9 ratan (ratna) me se ek

उनका जीवन भक्तिकालीन काव्य के साथ जुड़ा हुआ है, और इसलिए वे साहित्य के इतिहास में उल्लेखनीय हैं। उनके जीवन का बड़ा हिस्सा विभिन्न किंवदंतियों और अनुश्रुतियों पर आधारित है। उनके दीक्षा-गुरु के रूप में प्रसिद्ध कृष्ण-भक्त स्वामी हरिदास को माना जाता है, और उनके भेंट का उल्लेख विभिन्न काव्य ग्रंथों में है। “चौरासी वैष्णवन की वार्ता” और “दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता” में इनके भेंट की चर्चा मिलती है।

तानसेन ने हरिदास के साथ वृन्दावन संगीत की शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने मानसिंह की विधवा पत्नी, मृगनयनी से भी संगीत की शिक्षा प्राप्त की। बचपन में तानसेन ने पशु-पक्षियों की विभिन्न बोलियों की सच्ची नकल की और वे हिंसक पशुओं की बोली से लोगों को डराते थे। एक दिन, स्वामी हरिदास से मिलने के दौरान उन्होंने अपनी अद्वितीय नकल क्षमता का प्रदर्शन किया। स्वामी जी ने तानसेन को अपने पिता से संगीत सिखने के लिए माँग लिया, जिससे तानसेन को संगीत का ज्ञान हुआ। 1586 में, तानसेन की मृत्यु आगरा में हो गई, और उनकी इच्छा के अनुसार उनका मकबरा मोहम्मद गौस के मकबरे के समीप बनाया गया जो ग्वालियर में स्थित है।

4. राजा बीरबल (महेशदास) – सलाहकार

बीरबल, जिनका जन्म 1528 ई. में हुआ था और मृत्यु 1586 ई. में हुई, मुग़ल बादशाह अकबर के दरबार में प्रमुख वज़ीर और नवरत्नों में से एक थे। उनका जन्म महर्षि कवि के वंशज भट्ट ब्राह्मण परिवार में हुआ था और वह बचपन से ही तीव्र बुद्धि के धनी थे। उनकी व्यंग्यपूर्ण कहानियों और काव्य रचनाओं ने उन्हें प्रसिद्ध बनाया था। प्रारम्भ में, उन्हें पान का सौदा करने वाला “पनवाड़ी” कहा जाता था, लेकिन उनकी बुद्धिमानी ने उन्हें अकबर के दरबार में ले आया। उनके बचपन के नाम महेश दास था, और उनके बुद्धिमानी से जुड़े अनेक किस्से बच्चों को सुनाए जाते हैं। माना जाता है कि उनकी मृत्यु 16 फरवरी 1586 को अफगानिस्तान के एक बड़े सैन्य मंडली के नेतृत्व के दौरान हुई।

Birbal - Akbar ke Navratna, 9 ratan (ratna) me se ek

बीरबल ने अकबर का दीन-ए-इलाही अपनाया था और फ़तेहपुर सीकरी में उनका एक सुंदर मकान था। उन्हें मुग़ल दरबार का प्रमुख वज़ीर बनाया गया था और उनका बहुत प्रभाव राज दरबार में था। बीरबल कवियों का सम्मान करते थे और वह स्वयं भी ब्रजभाषा का अच्छा जानकार और कवि थे।

राजा बीरबल का जन्म संवत 1584 विक्रमी में कानपुर ज़िले के अंतर्गत ‘त्रिविक्रमपुर’ अर्थात् तिकवांपुर में हुआ था। भूषण कवि ने अपने जन्मस्थान त्रिविक्रमपुर में ही इनका जन्म होना लिखा है। प्रयाग के अशोक-स्तंभ पर इसका लेख है- “संवत 1632 शाके 1493 मार्ग बदी 5 सोमवार गंगादास सुत महाराज बीरबल श्री तीरथराज की यात्रा सुफल लिखितं।

बदायूंनी ने बीरबल के उपनाम ब्रह्म में दास मिलाकर इनका नाम ब्रह्मदास लिखा है। ये कान्यकुब्ज ब्राह्मण थे। अकबर ने उन्हें ‘राजा’ और ‘कविराय’ की उपाधि से सम्मानित किया था और उनका साहित्यिक जीवन राजदरबार में मनोरंजन करने तक ही सीमित रहा।

5. राजा टोडरमल – राजस्व मंत्री

टोडरमल (1 जनवरी 1500 – 8 नवम्बर 1589) अकबर के नवरत्नों में से एक थे। उनका जन्म लहरपुर, उत्तर प्रदेश, भारत में हुआ था, जो सीतापुर जिले में स्थित था। अकबर के समय से प्रारंभ हुई भूमि पैमाइश का आयोजन टोडरमल ने किया था। उनका निधन 8 नवम्बर 1589 को लाहौर, पाकिस्तान में हुआ।

Todar Mal - Akbar ke Navratna, 9 ratan (ratna) me se ek

बिहार के पटना सिटी के दीवान मोहल्ले में, नौजरघाट स्थित चित्रगुप्त मंदिर का पुनर्निर्माण, राजा टोडरमल और उनके नायब कुवर किशोर बहादुर ने करवाया था। इस परियोजना में, कसौटी पत्थर की चित्रगुप्त की मूर्ति को हिजरी सन 980 तदानुसार इसवीं सन 1574 में स्थापित किया गया था।

उत्तर प्रदेश राज्य के हरदोई जनपद में, राजस्व अधिकारियों के लिए बनाए गए एकमात्र राजस्व प्रशिक्षण संस्थान का नाम राजा टोडरमल भूलेख प्रशिक्षण संस्थान रखा गया है, जहां आईएएस, आईपीएस, पीसीएस, पीपीएस के अलावा राजस्व कर्मियों को भूलेख संबंधी प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है।

6. राजा मान सिंह (मिर्ज़ा राजा मान सिंहजी) – सेनापति

मान सिंह (जन्म: 21 दिसम्बर 1550 ई., आमेर, राजस्थान; मृत्यु: 6 जुलाई 1614 ई.) राजा भगवानदास के पुत्र थे। इनकी बुद्धिमानी, साहस, संबंध, और उच्च वंश के कारण वे अकबर के राज्य के स्तम्भों और सरदारों के अग्रणी थे। उन्हें बादशाह कभी फर्जद और कभी मिरज़ा राजा के नाम से पुकारा जाता था।

Man Singh - Akbar ke Navratna, 9 ratan (ratna) me se ek

मानसिंह की बुवा ने अकबर के साथ विवाह किया था, और मानसिंह की बहन की शादी 1584 में जहांगीर सलीम के साथ हुई थी। अकबर ने भी कई मुग़ल बेगम को मानसिंह को दी थीं। अकबर के भाई की बेटी मुबारक की शादी मानसिंह से हुई थी।

महान इतिहासकार कर्नल जेम्स टॉड ने लिखा है – “भगवान दास के उत्तराधिकारी मानसिंह को अकबर के दरबार में श्रेष्ठ स्थान मिला था।..मानसिंह ने उडीसा और आसाम को जीत कर उनको बादशाह अकबर के अधीन बना दिया. राजा मानसिंह से भयभीत हो कर काबुल को भी अकबर की अधीनता स्वीकार करनी पडी थी। अपने इन कार्यों के फलस्वरूप मानसिंह बंगाल, बिहार, दक्षिण और काबुल का शासक नियुक्त हुआ था।

7. रहीमदास (अब्दुल रहीम ख़ान-ए-ख़ाना) – कवि

रहीमदास या अब्दुर्रहीम ख़ानख़ाना भारतीय साहित्य के एक महत्त्वपूर्ण कवि रहे हैं, जो अकबर के दरबार में हुए थे। उनका जन्म 17 दिसम्बर 1556 में हुआ था और मृत्यु 1627 में हुई। उन्हें अकबर ने गुजरात के युद्ध में शौर्य प्रदर्शन के लिए ‘ख़ानखाना‘ की उपाधि से सम्मानित किया था।

Rahimdas - Akbar ke Navratna, 9 ratan (ratna) me se ek

रहीम ने अकबर के दरबार में नवरत्नों में भी अपनी जगह बनाई और उन्हें विभिन्न विषयों में माहिर बनाया गया। वे अरबी, तुर्की, फ़ारसी, संस्कृत और हिन्दी में सुपरिचित थे और ज्योतिष के भी ज्ञाता थे।

रहीम की कविताएं उनके भक्तिभाव, नीति और श्रृंगार रस के साथ प्रसिद्ध हैं। उनका काव्य आम जनता के बीच लोकप्रिय था और उनकी रचनाओं में सामाजिक और धार्मिक संदेश होता था।

रहीम का देहांत 70 वर्ष की आयु में 1626 में हुआ था, लेकिन उनकी कविताएं आज भी हिन्दी साहित्य में जीवित हैं और लोगों को उनके उदार भावनाओं और शैली के लिए याद किया जाता है।

अवश्य पढ़ें: रहीम का सम्पूर्ण जीवन परिचय

8. हक़ीम हुमाम (फकीर अजिओं-दिन) – सलाहकार

हक़ीम हुमाम एक मुग़ल सम्राट अकबर के सलाहकार और नवरत्नों में से एक थे, जो भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण रोल निभाए गए। उनका पूरा नाम हक़ीम हुमायूँ था, और वे हक़ीम अबुलफ़तह गीलानी के भाई थे। हक़ीम हुमाम का मृत्यु सन् 1004 हिजरी (1596 ई.) में हुआ था और उनकी मौत तपेदिक में 40 वें वर्ष में हुई थी।

Hakim Humam - Akbar ke Navratna, 9 ratan (ratna) me se ekek

हक़ीम हुमाम के दो लड़के थे – पहला था हक़ीम हाजिक और दूसरा था हक़ीम खुशहाल। हक़ीम हाजिक ने अपनी पूरे जीवन में हकीमी क्षेत्र में अपनी भूमिका निभाई और हक़ीम खुशहाल ने शाहजहाँ के समय में एक हजारी मनसब पाकर दक्षिण का बख्शी नियत हुआ।

महाबत ख़ाँ, जो समय के एक महत्वपूर्ण आदमी थे, ने हक़ीम हुमाम पर विशेष कृपा की और उन्हें अपनी सूबेदारी के समय में महत्वपूर्ण मानसिक और आर्थिक समर्थ का हक़दार माना।

इस प्रकार, हक़ीम हुमाम ने अपने समय में मुग़ल साम्राज्य के सेवा में अपना योगदान दिया और उनके परिवार के सदस्यों ने भी अपनी अद्भुत कला और सेवाएँ दी।

9. मुल्ला दो प्याज़ा – सलाहकार

मुल्ला दो-पियाज़ा (1527-1620) मुग़ल बादशाह अकबर के सलाहकार और वज़ीर थे। मुल्ला दो-पियाज़ा, जिसे बुद्धिमान भी माना जाता है, बीरबल का प्रतिद्वंद्वी था। हालाँकि ये लोक कथाएँ अकबर के शासनकाल (1556-1605) के अंत में उत्पन्न हुईं, मुल्ला दो-पियाज़ा बहुत बाद में सामने आने लगीं।

Mulla Do Piyaza - Akbar ke Navratna, 9 ratan (ratna) me se ek ek

अधिकांश विद्वान इन्हें पूर्णतः काल्पनिक मानते हैं। विद्वान उन्हें मुग़लों के वफादार सेनापति बैरम खान का पुत्र मानते हैं, जिनकी हज पर जाते समय माहम अंगा के पुत्र अधम खान ने हत्या कर दी थी। बाद में मुल्ला को अकबर ने अपने दरबारी के रूप में अपनाया और मुगल दरबार में सम्मान भी दिया।

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अकबर के नौ रत्नों पर सर्वाधिक पूछे जाने वाले प्रश्न

यहां अकबर के नौ रत्नों के बारे में कुछ सामान्यतः पूछे जाने वाले प्रश्न दिए गए हैं:

1. अकबर के नौ रत्न कौन थे?
बीरबल, अबुल फजल, टोडर मल, राजा मान सिंह, फैजी, राजा बीरबल, अब्दुल रहीम खान-ए-खाना, मियां तानसेन, फकीर अज़ियाओ-दीन(हकीम हुमाम)।

2. अकबर के दरबार में बीरबल की क्या भूमिकाएँ और योगदान थे?
बीरबल, जिनका असली नाम महेश दास था, अपनी बुद्धि, बुद्धिमत्ता और समस्या सुलझाने की क्षमताओं के लिए जाने जाते थे।

3. अकबर के दरबार में अबुल फज़ल का महत्वपूर्ण योगदान क्या था?
अबुल फज़ल एक इतिहासकार और अकबर का मुख्यमंत्री था। वह अपने काम “अकबरनामा” के लिए प्रसिद्ध हैं, जो अकबर के शासनकाल का विस्तृत विवरण है।

4. टोडरमल ने अकबर के प्रशासन में किस प्रकार योगदान दिया?
राजा टोडरमल अकबर के वित्त मंत्री थे और उन्होंने राजस्व सुधारों को लागू करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसमें “टोडरमल का बंदोबस्त” नामक राजस्व प्रणाली की शुरूआत भी शामिल थी।

5. अकबर के दरबार में राजा मान सिंह की उपलब्धियाँ क्या थीं?
राजा मान सिंह एक भरोसेमंद सैन्य कमांडर और अकबर के सबसे भरोसेमंद जनरलों में से एक थे। उन्होंने विभिन्न सैन्य अभियानों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और अपनी वफादारी और रणनीतिक कौशल के लिए जाने जाते थे।

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