मुग़ल साम्राज्य (Mughal Samrajya) भारतीय इतिहास का एक “इस्लामी तुर्की-मंगोल साम्राज्य” था, भारत में जिसकी स्थापना बाबर (ज़हीरुद्दीन मुहम्मद बाबर) द्वारा 1526 में की गई थी। तत्कालीन समय में इसे “तैमूरी साम्राज्य” कहा जाता था। मुग़ल साम्राज्य का पतन 1857 में सिपाही विद्रोह के बाद हुआ। मुग़ल वंश का शासन लगभग 400 वर्षों तक रहा। मुग़ल साम्राज्य भारतीय इतिहास में अपने विशाल शासकीय क्षेत्र, सांस्कृतिक प्रभाव, और विभिन्न क्षेत्रों में कला और साहित्य में अपने योगदान के लिए मशहूर है।
मुगल साम्राज्य की स्थापना
मुगल साम्राज्य के संस्थापक ज़हीरुद्दीन मुहम्मद बाबर थे। भारत में 1526 के “पानीपत के युद्ध” में दिल्ली सल्तनत के अंतिम सुल्तान इब्राहिम लोदी को हराने के बाद बाबर ने इस इलाके में मुग़ल साम्राज्य की नींव रखी। इस युद्ध में बाबर ने तुलुगमा पद्धति का प्रयोग किया था। पानीपत के युद्ध को 21 अप्रैल 1526 को पानीपत नामक एक छोटे से गाँव के निकट लड़ा गया था जो वर्तमान भारतीय राज्य हरियाणा में स्थित है।
बाबर का जन्म मध्य एशिया के वर्तमान उज़्बेकिस्तान में हुआ था। बाबर के पिता “उमर शेख़ मिर्ज़ा” का संबंध तैमूरलंग और माता “कुतलुग निग़ार ख़ानम” का संबंध चंगेज खां से था। इस प्रकार बाबर तुर्क और मंगोल वंश का वंशज था।
सन् 1494 में 12वर्ष की आयु में ही उसे फ़रगना घाटी के शासक का पद सौंपा गया। फरगना का शासन उसकी दादी दौलत बेगम की वजह से मिला था। उसके चाचाओं ने इस स्थिति का फ़ायदा उठाया और बाबर को गद्दी से हटा दिया। कई सालों तक उसने निर्वासन में जीवन बिताया जब उसके साथ कुछ किसान और उसके सम्बंधी ही थे। 7 महीने बाद उसने संबंधियों की मदद से पुनः फ़रगना पर अपना शासन स्थापित किया। बाबर ने 1496 से कई बार समरकंद पर कब्जा किया परंतु अंततः 1512 में समरकंद को उज्बेकों ने अपने अधीन कर लिया। बाबर ने 1504 ई॰ में काबुल तथा 1507 ई॰ में कन्धार को जीता तथा बादशाह की उपाधि धारण की।
उस समय दिल्ली सल्तनत पर ख़िलज़ी राजवंश के पतन के बाद अराजकता की स्थिति बनी हुई थी। तैमूरलंग के आक्रमण के बाद सैय्यदों ने स्थिति का फ़ायदा उठाकर दिल्ली की सत्ता पर अधिपत्य कायम कर लिया। तैमुर लंग के द्वारा पंजाब का शासक बनाए जाने के बाद खिज्र खान ने इस वंश की स्थापना की थी। बाद में लोदी राजवंश के अफ़ग़ानों ने सैय्यदों को हरा कर सत्ता हथिया ली थी।
इसी बीच बाबर ने 1519 से 1526 ई॰ तक भारत पर 5 बार आक्रमण किया। 1526 में इन्होंने पानीपत के मैदान में दिल्ली सल्तनत के अंतिम सुल्तान इब्राहिम लोदी को हराकर मुग़ल साम्राज्य की नींव रखी। इसके बाद बाबर ने 1527 में ख़ानवा, 1528 में चंदेरी तथा 1529 में घग्गर जीतकर अपने राज्य को सुरक्षित किया। 1530 ई० में इसकी मृत्यु हो गयी।
इस प्रकार मुग़ल साम्राज्य की स्थापना “बाबर” ने सन् 1526 ई० में की।
आगे मुग़ल साम्राज्य के शासक एवं उनके वंश की जानकारी दी गई है-
मुगल शासक | जीवनकाल | राज्यकाल | संतान (वंश) |
---|---|---|---|
बाबर (ज़हीरुद्दीन मुहम्मद) |
जन्म: 14 फ़रवरी 1483; मृत्यु: 26 दिसंबर 1530; आयु: 47 |
20 अप्रैल 1526 – 26 दिसम्बर 1530 | पुत्र– हुमायूँ, कामरान, अस्करी, हिन्दाल,
पुत्री– गुलबदन बेगम |
हुमायूँ (नसीरुद्दीन मुहम्मद हुमायूँ) |
जन्म: 6 मार्च 1508; मृत्यु: 27 जनवरी 1556; आयु: 47 |
पहला राज्यकाल– 26 दिसम्बर 1530 – 17 मई 1540;
दूसरा राज्यकाल– 22 फ़रवरी 1555 – 27 जनवरी 1556 |
पुत्र– अकबर, मिर्ज़ा मुहम्मद हाकिम
पुत्री– अकीकेह बेगम, बख़्शी बानु बेगम, बख्तुन्निसा बेगम |
अकबर – अकबर-ए-आज़म (जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर) |
जन्म: 15 अक्टूबर 1542; मृत्यु: 27 अक्टूबर 1605; आयु: 63 |
11 फरवरी 1556 – 27 अक्टूबर 1605 | पुत्र: जहांगीर, दैन्याल मिर्जा, मुराद मिर्जा, हुसैन व हसन
पुत्रियाँ: अराम बानु बेगम, खानम सुल्तान बेगम, शाहजदी खानम, शकर-अन-निसा बेगम व मेहरुनिसा |
जहांगीर (नूरुद्दीन मुहम्मद सलीम) |
जन्म: 31 अगस्त 1569; मृत्यु: 28 अक्टूबर 1627; आयु: 58 |
3 नवंबर 1605 – 28 अक्टूबर 1627 | पुत्र: ख़ुसरो मिर्ज़ा, ख़ुर्रम (शाहजहाँ), परवेज़, शहरयार, जहाँदारशाह
पुत्रियाँ: निसार बेगम, बहार बेगम बानू |
शहरयार मिर्ज़ा (सलाफ़-उद-दीन मुहम्मद शहरयार) |
जन्म: 16 जनवरी 1605; मृत्यु: 23 जनवरी 1628; आयु: 23 |
7 नवंबर 1627 – 19 जनवरी 1628 | – |
शाहजहां – शाह-जहाँ-ए-आज़म (शिहाबुद्दीन मुहम्मद ख़ुर्रम) |
जन्म: 5 जनवरी 1592; मृत्यु: 22 जनवरी 1666; आयु: 74 |
19 जनवरी 1628 – 31 जुलाई 1658 | पुत्र: दारा शिकोह, शुज़ा, मुराद, औरंगज़ेब
पुत्रियाँ: जहाँआरा, रोशनआरा, गौहनआरा |
औरंगज़ेब (अलामगीर) (मुही उद्दीन मुहम्मद) |
जन्म: 3 नवम्बर 1618; मृत्यु: 3 मार्च 1707; आयु: 88 |
31 जुलाई 1658 – 3 मार्च 1707 | पुत्र: सुल्तान मुहम्मद, शाहजादा मुअज्ज़म, शाहजादा आज़म, शाहजादा अकबर, कामबख्श
पुत्री: जेबुन्निसा |
मुहम्मद आज़म शाह (मिर्ज़ा अबुल फ़ैयाज़ कुतुब-उद-दीन मोहम्मद आज़म) |
जन्म: 28 जून 1653; मृत्यु: 20 जून 1707; आयु: 53 |
14 मार्च 1707 – 20 जून 1707 | पुत्र: बीदर बख्त, सिकंदर शान, अली तबर, वाला शान, जवान बख्त
पुत्रियाँ: गीति आरा बेगम, नजीब-उन-निसा बेगम |
बहादुर शाह (क़ुतुबुद्दीन मुहम्मद मुआज्ज़म) |
जन्म: 14 अक्टूबर 1643; मृत्यु: 27 फ़रवरी 1712; आयु: 68 |
19 जून 1707 – 27 फ़रवरी 1712 | पुत्र: जहांदार शाह, आज़-उद-दीन मिर्जा, अजीम-उश-शान मिर्जा, दौलत-अफज़ा मिर्जा, रफ़ी-उश शान मिर्जा, जहां श़ाह मिर्जा, मोहम्मद हुमायूं मिर्जा
पुत्रियाँ: दाहर अफ्रज़ बानो बेगम, |
जहांदार शाह (माज़ुद्दीन जहंदर शाह बहादुर) |
जन्म: 9 मई 1661; मृत्यु: 12 फ़रवरी 1713; आयु: 51 |
29 मार्च 1712 – 10 जनवरी 1713 | पुत्र: आलमगीर द्वितीय, अज़-उद-दिन मिर्ज़ा, अज-उद-दिन वली अहद बहादुर, इज़्ज़-उद-दिन बहादुर, मुहम्मद अजहर-उद-दिन बहादुर
पुत्रियाँ: सैद-उन-निशा बेगम, राबी बेगम, इफ़्फ़त आरा बेगम |
फर्रुख्शियार (फर्रुख्शियार) |
जन्म: 20 अगस्त 1685; मृत्यु: 19 अप्रैल 1719; आयु: 33 |
11 जनवरी 1713 – 28 फ़रवरी 1719 | पुत्री: बादशाह बेगम |
रफ़ीउद्दाराजात (रफी उल-दर्जत) |
जन्म: 1 दिसंबर 1699; मृत्यु: 6 जून 1719; आयु: 19 |
28 फ़रवरी – 6 जून 1719 | – |
शाहजहां द्वितीय (रफी उद-दौलत) रफ़ीउद्दौला |
जन्म: जून 1696; मृत्यु: 18 सितम्बर 1719; आयु: 23 |
6 जून 1719 – 17 सितम्बर 1719 | – |
नेकसियर (नेकुसियार मुहम्मद) |
जन्म: 6 अक्टूबर 1679; मृत्यु: 12 अप्रैल 1723; आयु: 43 |
17 सितम्बर 1719 – 20 सितम्बर 1719 | – |
मुहम्मद इब्राहीम (अबुल फ़तह ज़ाहिर-उल-दीन मुहम्मद इब्राहीम) |
जन्म: 9 अगस्त 1703; मृत्यु: 31 जनवरी 1746; आयु: 43 |
20 सितम्बर 1719 – 27 सितम्बर 1719 | – |
मुहम्मद शाह (मुहम्मदशाह रौशन अख़्तर) |
जन्म: 7 अगस्त 1702; मृत्यु: 26 अप्रैल 1748; आयु: 45 |
27 सितम्बर 1719 – 26 अप्रैल 1748 | पुत्र: शहरियार शाह बहादुर, हज़रात बेगम, अहमद शाह बहादुर |
अहमद शाह (अहमद शाह बहादुर) |
जन्म: 23 दिसम्बर 1725; मृत्यु: 1 जनवरी 1775; आयु: 49 |
29 अप्रैल 1748 – 2 जून 1754 | पुत्र: शाहजहां चतुर्थ |
आलमगीर द्वितीय (अज़ीज़ुद्दीन) |
जन्म: 6 जून 1699; मृत्यु: 29 नवम्बर 1759; आयु: 60 |
3 जून 1754 – 29 नवम्बर 1758 | पुत्र: शाह आलम द्वितीय |
शाहजहां तृतीय (मुही-उल-मिल्लत) |
जन्म: 1711
मृत्यु: 1772 आयु: 60-61 |
10 दिसम्बर 1759 – 10 अक्टूबर 1760 | – |
शाह आलम द्वितीय (अली गौहर) |
जन्म: 25 जून 1728; मृत्यु: 19 नवम्बर 1806; आयु: 78 |
10 अक्टूबर 1760 – 19 नवम्बर 1806 | पुत्र: अकबर शाह द्वितीय, मिर्जा जवां बख्त, मुहम्मद सुलेमान शिकोह शहज़ादा बहादुर |
अकबर शाह द्वितीय (मिर्ज़ा अकबर या अकबर शाह सानी) |
जन्म: 22 अप्रैल 1760; मृत्यु: 28 सितम्बर 1837; आयु: 77 |
19 नवम्बर 1806 – 28 सितम्बर 1837 | पुत्र: बहादुर शाह जफर, मिर्ज़ा जहाँगीर, मिर्ज़ा बाबर, मिर्ज़ा सलीम, मिर्ज़ा जहाँ शाह, मिर्ज़ा नाज़िम शाह, मिर्ज़ा नली |
बहादुर शाह द्वितीय (अबू ज़फर सिराजुद्दीन मुहम्मद बहादुर शाह ज़फर या बहादुर शाह ज़फर) |
जन्म: 24 अक्टूबर 1775; मृत्यु: 7 नवम्बर 1862; आयु: 87 |
28 सितम्बर 1837 – 21 सितम्बर 1857 | पुत्र: मिर्जा मुगल, मिर्जा शाह अब्बास, मिर्जा जवान बख्त, मिर्जा खिज्र सुल्तान, मिर्जा अबू बक्र, मिर्जा फत-उल-मुल्क बहादुर, मिर्जा दारा बख्त, मिर्जा उलुग ताहिर, मिर्जा फरखुंदा शाह
पुत्रियाँ: कुलसुम ज़मानी बेगम, बेगम फातिमा सुल्तान, राबेया बेगम, रौनक जमानी बेगम |
एटवरीतहफयुग
1. बाबर (ज़हीरुद्दीन मुहम्मद)
बाबर (जन्म: 14 फ़रवरी 1483; मृत्यु: 26 दिसंबर 1530; आयु: 47) जिसका शासन 20 अप्रैल 1526 – 26 दिसम्बर 1530 तक रहा। ज़हिर उद-दिन मुहम्मद बाबर, जिन्हें भारतीय इतिहास में बाबर के नाम से जाना जाता है, मुग़ल साम्राज्य के संस्थापक थे। उन्होंने भारत में मुग़ल वंश की नींव रखी। बाबर तैमूर लंग के परपोते थे और वह यकीन रखते थे कि चंगेज़ ख़ान उनके वंश के पूर्वज थे। 1526 ई. में पानीपत के पहले युद्ध में दिल्ली सल्तनत के अंतिम वंश (लोदी वंश) के सुल्तान इब्राहीम लोदी की हार के साथ ही भारत में मुग़ल वंश की स्थापना हो गई थी। इस विजय से बाबर का दिल्ली और आगरा पर अधिकार हो गया। 1527 ई. में बाबर ने मेवाड़ के शासक राणा साँगा को खनुआ के युद्ध में पराजित कर राजपूतों के प्रतिरोध का भी अन्त कर दिया। अन्तत: 1528 ई. में उसने घाघरा के युद्ध में अफ़ग़ानों को भी पराजित कर अपना शासन बंगाल और बिहार तक विस्तृत कर लिया। इन विजयों ने बाबर को उत्तरी भारत का सम्राट बना दिया। उसके द्वारा प्रचलित मुग़ल राजवंश ने भारत में 1526 ई. से 1858 ई. तक राज्य किया।
2. हुमायूँ (नसीरुद्दीन मुहम्मद हुमायूँ)
हुमायूँ (जन्म: 6 मार्च 1508; मृत्यु: 27 जनवरी 1556; आयु: 47) जिसका शासन पहला राज्यकाल- 26 दिसम्बर 1530 – 17 मई 1540; दूसरा राज्यकाल- 22 फ़रवरी 1555 – 27 जनवरी 1556 तक रहा। नसिरुद्दीन मुहम्मद हुमायूँ, जिन्हें अंग्रेज़ी में Humayun के नाम से भी जाना जाता है, एक प्रसिद्ध मुग़ल बादशाह थे। हुमायूँ का जन्म 6 मार्च, 1508 ई. को बाबर की पत्नी ‘माहम बेगम’ के गर्भ से काबुल में हुआ था। बाबर के चार पुत्रों में हुमायूँ सबसे बड़े थे, जिनमें कामरान, अस्करी और हिन्दाल शामिल थे। बाबर ने हुमायूँ को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया था। भारत में राज्याभिषेक से पहले, 1520 ई. में, उसे बदख्शाँ का सूबेदार नियुक्त किया गया था। बदख्शाँ के सूबेदार के रूप में, हुमायूँ ने भारत के सभी वह अभियानों में भाग लिया, जिनका नेतृत्व बाबर ने किया था।
3. अकबर – अकबर-ए-आज़म (जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर)
अकबर (जन्म: 15 अक्टूबर 1542; मृत्यु: 27 अक्टूबर 1605; आयु: 63) जिसका शासन 11 फरवरी 1556 – 27 अक्टूबर 1605 तक रहा। जलाल उद्दीन मुहम्मद अकबर, जिन्हें अंग्रेज़ी में Jalal-ud-din Muhammad Akbar के नाम से भी जाना जाता है, भारत के महानतम मुग़ल बादशाह थे। उनका जन्म 15 अक्टूबर, 1542 ई. को अमरकोट में हुआ था और मृत्यु 27 अक्टूबर, 1605 ई. को आगरा में हुई थी। अकबर ने मुग़ल साम्राज्य का विस्तार भारतीय उपमहाद्वीप के अधिकांश हिस्सों में किया।
अपने साम्राज्य की एकता को बनाए रखने के लिए अकबर ने ऐसी नीतियाँ अपनाई, जिनसे गैर मुसलमानों की भी राजभक्ति जीती जा सके। भारत के इतिहास में आज अकबर का नाम काफ़ी प्रसिद्ध है। उन्होंने अपने शासनकाल में सभी धर्मों का सम्मान किया, सभी जाति-वर्गों के लोगों को एक समान माना और उनसे अपने मित्रता के सम्बन्ध स्थापित किए। अकबर ने अपने शासनकाल में सारे भारत को एक साम्राज्य के अंतर्गत लाने का प्रयास किया, जिसमें वह काफ़ी हद तक सफल भी रहे।
4. जहांगीर (नूरुद्दीन मुहम्मद सलीम)
जहांगीर (जन्म: 31 अगस्त 1569; मृत्यु: 28 अक्टूबर 1627; आयु: 58) जिसका शासन 3 नवंबर 1605 – 28 अक्टूबर 1627 तक रहा। मिर्ज़ा नूर-उद्दीन बेग़ मोहम्मद ख़ान सलीम जहाँगीर, जिन्हें अंग्रेज़ी में Mirza Nur-ud-din Baig Mohammad Khan Salim Jahangir के नाम से भी जाना जाता है, मुग़ल वंश का चौथा बादशाह थे। वे महान मुग़ल बादशाह अकबर के पुत्र थे। अकबर के तीन पुत्र थे, सलीम (जहाँगीर), मुराद और दानियाल। मुराद और दानियाल पिता के जीवन में शराब पीने की वजह से मृत्यु को प्राप्त हो चुके थे।
सलीम ने अकबर की मृत्यु के बाद ‘नूरुद्दीन मोहम्मद जहाँगीर’ के उपनाम से तख्त पर बैठा। उन्होंने 1605 ई. में कई उपयोगी सुधार लागू किए। कान, नाक और हाथ आदि काटने की सजा को रद्द किया गया। शराब और अन्य नशे आदि वाली वस्तुओं का हकमा बंद करवाया गया। कई अवैध महसूलात को हटा दिया गया। किसी की भी फ़रियाद सुनने के लिए उन्होंने अपने महल की दीवार से जंजीर लगा दी, जिसे ‘न्याय की जंजीर’ कहा जाता था।
शहरयार मिर्ज़ा (सलाफ़-उद-दीन मुहम्मद शहरयार)
शहरयार मिर्ज़ा (जन्म: 16 जनवरी 1605; मृत्यु: 23 जनवरी 1628; आयु: 23) जिसका शासन 7 नवंबर 1627 – 19 जनवरी 1628 तक रहा। शहरयार मिर्जा, जिनको सलफ-उद-दीन मुहम्मद शहरयार के नाम से भी जाना जाता है, मुग़ल सम्राट जहांगीर के पांचवें और सबसे छोटे बेटे थे। जहांगीर के जीवन के अंत में और उसकी मृत्यु के बाद, शहरयार ने अपनी प्रभावशाली और सर्वशक्तिमान सौतेली माँ नूरजहाँ, जो उसकी सास भी थी, द्वारा योजना बनाकर, समर्थन और साजिश रचकर सम्राट बनने का प्रयास किया।
उत्तराधिकार को चुनौती दी गई, हालाँकि शहरयार ने 7 नवंबर 1627 से 19 जनवरी 1628 तक लाहौर में रहकर सत्ता का प्रयोग किया, लेकिन अपने पिता की तरह, उन्होंने नूरजहाँ को मामलों को चलाने और अपने शासन को मजबूत करने की अनुमति दी, लेकिन वह सफल नहीं हुई, और वह पराजित हुआ और अपने भाई खुर्रम के आदेश पर मारा गया, जिसे गद्दी संभालने के बाद शाहजहाँ के नाम से जाना जाता था।
शहरयार पाँचवाँ मुग़ल बादशाह होता, लेकिन आमतौर पर उसे मुग़ल बादशाहों की सूची में नहीं गिना जाता।
5. शाहजहां – शाह-जहाँ-ए-आज़म (शिहाबुद्दीन मुहम्मद ख़ुर्रम)
शाहजहां (जन्म: 5 जनवरी 1592; मृत्यु: 22 जनवरी 1666; आयु: 74) जिसका शासन 19 जनवरी 1628 – 31 जुलाई 1658 तक रहा। शाहजहाँ का जन्म जोधपुर के शासक राजा उदयसिंह की पुत्री ‘जगत गोसाई’ (जोधाबाई) के गर्भ से 5 जनवरी, 1592 ई. को लाहौर में हुआ था। उसका बचपन का नाम ख़ुर्रम था। ख़ुर्रम जहाँगीर का छोटा पुत्र था, जो छल−बल से अपने पिता का उत्तराधिकारी हुआ था।
वह बड़ा कुशाग्र बुद्धि, साहसी और शौक़ीन बादशाह था। वह बड़ा कला प्रेमी, विशेषकर स्थापत्य कला का प्रेमी था। उसका विवाह 20 वर्ष की आयु में नूरजहाँ के भाई आसफ़ ख़ाँ की पुत्री ‘आरज़ुमन्द बानो’ से सन् 1611 में हुआ था। वही बाद में ‘मुमताज़ महल’ के नाम से उसकी प्रियतमा बेगम हुई।
20 वर्ष की आयु में ही शाहजहाँ, जहाँगीर शासन का एक शक्तिशाली स्तंभ समझा जाता था। फिर उस विवाह से उसकी शक्ति और भी बढ़ गई थी। नूरजहाँ, आसफ़ ख़ाँ और उनका पिता मिर्ज़ा गियासबेग़ जो जहाँगीर शासन के कर्त्ता-धर्त्ता थे, शाहजहाँ के विश्वसनीय समर्थक हो गये थे।
शाहजहाँ के शासन−काल में मुग़ल साम्राज्य की समृद्धि, शान−शौक़त और ख्याति चरम सीमा पर थी। उसके दरबार में देश−विदेश के अनेक प्रतिष्ठित व्यक्ति आते थे। वे शाहजहाँ के वैभव और ठाट−बाट को देख कर चकित रह जाते थे। उसके शासन का अधिकांश समय सुख−शांति से बीता था; उसके राज्य में ख़ुशहाली रही थी। उसके राजकोष में अपार धन था। सम्राट शाहजहाँ को सब सुविधाएँ प्राप्त थीं।
6. औरंगज़ेब (अलामगीर) (मुही उद्दीन मुहम्मद)
औरंगज़ेब (जन्म: 3 नवम्बर 1618; मृत्यु: 3 मार्च 1707; आयु: 88) जिसका शासन 31 जुलाई 1658 – 3 मार्च 1707 तक रहा। औरंगज़ेब का जन्म गुजरात के ‘दोहद’ नामक स्थान पर मुमताज़ के गर्भ से हुआ था। औरंगज़ेब के बचपन का अधिकांश समय नूरजहाँ के पास बीता था।
1643 ई. में औरंगज़ेब को 10,000 जात एवं 4000 सवार का मनसब प्राप्त हुआ। उन्होंने ‘ओरछा’ के जूझर सिंह के विरुद्ध प्रथम युद्ध का अनुभव प्राप्त किया। 18 मई, 1637 ई. को फ़ारस के राजघराने की ‘दिलरास बानो बेगम’ के साथ उनका निकाह हुआ।
औरंगज़ेब ने 1636 ई. से 1644 ई. एवं 1652 ई. से 1657 ई. तक गुजरात (1645 ई.), मुल्तान (1640 ई.) एवं सिंध का भी गर्वनर रहा।
आगरा पर क़ब्ज़ा कर जल्दबाज़ी में उन्होंने अपना राज्याभिषक “अबुल मुजफ्फर मुहीउद्दीन मुजफ्फर औरंगज़ेब बहादुर आलमगीर” की उपाधि से 31 जुलाई, 1658 ई. को दिल्ली में करवाया।
‘खजुवा’ एवं ‘देवराई’ के युद्ध में सफल होने के बाद 15 मई, 1659 ई. को औरंगज़ेब ने दिल्ली में प्रवेश किया, जहाँ शाहजहाँ के शानदार महल में जून, 1659 ई. को उनका दूसरी बार राज्याभिषेक हुआ। औरंगज़ेब के सिंहासनारूढ़ होने पर फ़ारस के शाह ने मैत्री स्वरूप बुदाग़ बेग के नेतृत्व में एक दूत मण्डल भेजा था।
औरंगजेब, अकबर के बाद सबसे अधिक समय तक शासन करने वाला मुग़ल शासक था। उसने अपने शासनकाल के दौरान मुग़ल साम्राज्य को विस्तार के शिखर पर पहुँचाया। इसके अलावा दक्षिण भारत के कुछ राज्यों में विजयी प्राप्त कर अपने साम्राज्य को साढ़े बारह लाख वर्ग मील में फैलाया।
मुहम्मद आज़म शाह (मिर्ज़ा अबुल फ़ैयाज़ कुतुब-उद-दीन मोहम्मद आज़म)
आज़म शाह (जन्म: 28 जून 1653; मृत्यु: 20 जून 1707; आयु: 53) जिसका शासन 14 मार्च 1707 – 20 जून 1707 तक रहा। कुतुब-उद-दीन मुहम्मद आज़म का जन्म बुरहानपुर में राजकुमार मुही-उद-दीन और उनकी पहली पत्नी और मुख्य पत्नी दिलरास बानू बेगम के घर हुआ था। उनकी माँ, जो उन्हें जन्म देने के चार साल बाद मर गईं, मिर्ज़ा बदी-उज़-ज़मान सफ़वी (शाह नवाज़ खान शीर्षक) की बेटी और फारस के प्रमुख सफ़ाविद राजवंश की राजकुमारी थीं।
इसलिए, आज़म न केवल अपने पिता की ओर से एक तिमुरिड था, बल्कि उसमें सफ़वी वंश का शाही खून भी था, एक तथ्य जिस पर आज़म को बेहद गर्व था और अपने छोटे भाई, प्रिंस मुहम्मद अकबर की मृत्यु के बाद, वह इकलौता बेटा था।
औरंगजेब का जो सबसे शुद्ध खून का होने का दावा करता था। उनके अन्य सौतेले भाई, शाह आलम (बाद में बहादुर शाह प्रथम) और मुहम्मद काम बख्श औरंगजेब की हिंदू पत्नियों के बेटे थे। निकोलो मनुची के अनुसार, दरबारी आज़म की शाही फ़ारसी वंशावली और इस तथ्य से बहुत प्रभावित थे कि वह शाह नवाज़ खान सफ़वी के पोते थे।
7. बहादुर शाह (क़ुतुबुद्दीन मुहम्मद मुआज्ज़म)
बहादुर शाह (जन्म: 14 अक्टूबर 1643; मृत्यु: 27 फ़रवरी 1712; आयु: 68) जिसका शासन 19 जून 1707 – 27 फ़रवरी 1712 तक रहा। बहादुर शाह प्रथम दिल्ली का सातवाँ मुग़ल बादशाह (1707-1712 ई.) था। ‘शहज़ादा मुअज्ज़म’ कहलाने वाला बहादुरशाह, बादशाह औरंगज़ेब का दूसरा पुत्र था। अपने पिता के भाई और प्रतिद्वंद्वी शाहशुजा के साथ बड़े भाई के मिल जाने के बाद शहज़ादा मुअज्ज़म ही औरंगज़ेब का संभावी उत्तराधिकारी था।
औरंगज़ेब की मृत्यु के बाद उसके 63 वर्षीय पुत्र ‘मुअज्ज़म’ (शाहआलम प्रथम) ने लाहौर के उत्तर में स्थित ‘शाहदौला’ नामक पुल पर मई, 1707 में ‘बहादुर शाह’ के नाम से अपने को सम्राट घोषित किया।
8. जहांदार शाह (माज़ुद्दीन जहंदर शाह बहादुर)
जहांदार शाह (जन्म: 9 मई 1661; मृत्यु: 12 फ़रवरी 1713; आयु: 51) जिसका शासन 29 मार्च 1712 – 10 जनवरी 1713 तक रहा। जहाँदारशाह बहादुरशाह प्रथम के चार पुत्रों में से एक था। बहादुरशाह प्रथम के मरने के बाद उसके चारों पुत्रों ‘जहाँदारशाह’, ‘अजीमुश्शान’, ‘रफ़ीउश्शान’ एवं ‘जहानशाह’ में उत्तराधिकार के लिए संघर्ष छिड़ गया। इस संघर्ष में ज़ुल्फ़िक़ार ख़ाँ के सहयोग से जहाँदारशाह के अतिरिक्त बहादुरशाह प्रथम के अन्य तीन पुत्र आपस में संघर्ष के दौरान मारे गए।
51 वर्ष की आयु में जहाँदारशाह 29 मार्च, 1712 को मुग़ल राजसिंहासन पर बैठा। ज़ुल्फ़िक़ार ख़ाँ इसका प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया, तथा असद ख़ाँ ‘वकील-ए-मुतलक़’ के पद पर बना रहा। ये दोनों बाप-बेटे ईरानी अमीरों के नेता थे। जहाँदारशाह के शासन काल के बारे में इतिहासकार ‘खफी ख़ाँ’ का कहना है, “नया शासनकाल चारणों और गायकों, नर्तकों एवं नाट्यकर्मियों के समस्त वर्गों के लिए बहुत अनुकूल था।” जहाँदारशाह ने सिर्फ़ 1712 से 1713 ई. तक ही शासन किया।
9. फर्रुख्शियार (फ़र्रुख़सियर)
फ़र्रुख़सियर (जन्म: 20 अगस्त 1685; मृत्यु: 19 अप्रैल 1719; आयु: 33) जिसका शासन 11 जनवरी 1713 – 28 फ़रवरी 1719 तक रहा। मुहम्मद फर्रुखसियर का जन्म 20 अगस्त 1683 (9वें रमज़ान 1094 हिजरी) को दक्कन के पठार पर स्थित औरंगाबाद शहर में एक कश्मीरी माँ साहिबा निस्वान के यहाँ हुआ था। वह अजीम-उश-शान के दूसरे बेटे, सम्राट बहादुर शाह प्रथम के दूसरे बेटे और सम्राट औरंगजेब के पोते थे।
सैयद बन्धु अब्दुल्ला ख़ाँ और हुसैन अली ख़ाँ की मदद से फ़र्रुख़सियर 11 जनवरी, 1713 को मुग़ल राजसिंहासन पर बैठा। उसने अब्दुल्ला ख़ाँ को वज़ीर का पद एवं ‘कुतुबुलमुल्क’ की उपाधि तथा हुसैन अली ख़ाँ को ‘अमीर-उल-उमरा’ तथा ‘मीर बख़्शी’ का पद दिया। सिंहासन पर बैठने के बाद फ़र्रुख़सियर ने ज़ुल्फ़िक़ार ख़ाँ की हत्या करवा दी और साथ ही उसके पिता असद ख़ाँ को क़ैद कर लिया।
इसके काल में मुग़ल सेना ने 17 दिसम्बर, 1715 को सिक्ख नेता बन्दा सिंह को उसके 740 समर्थकों के साथ बन्दी बना लिया। बाद में इस्लाम धर्म स्वीकार न करने के कारण इन सबकी निर्दयतापूर्वक हत्या कर दी गई। फ़र्रुख़सियर के समय में ही 1716 ई. बन्दा बहादुर को दिल्ली में फाँसी दे दी गयी।
10. रफ़ीउद्दाराजात (रफी उल-दर्जत)
रफ़ीउद्दाराजात (जन्म: 1 दिसंबर 1699; मृत्यु: 6 जून 1719; आयु: 19) जिसका शासन 28 फ़रवरी – 6 जून 1719 तक रहा। रफ़ी उद-दाराजात या रफ़ीउद्दाराजात या रफ़ी उद-दर्जत दसवाँ मुग़ल बादशाह था। वह रफ़ी उस-शहान का पुत्र तथा अज़ीमुश्शान का भाई था। फ़र्रुख़सियर के बाद 28 फ़रवरी, 1719 को सैयद बंधुओं के द्वारा उसे बादशाह घोषित किया गया था।
रफी उद-दराजत ने अपनी गद्दी सैय्यद बंधुओं – सैय्यद हसन अली खान बरहा और सैय्यद हुसैन अली खान बरहा – को सौंपी थी, जिन्होंने 1719 में मारवाड़ के अजीत सिंह और बालाजी विश्वनाथ की मदद से सम्राट फर्रुखसियर को अपदस्थ कर दिया था और खुद को बदीशहर (किंगमेकर) बना लिया था। उसका संक्षिप्त शासनकाल भाइयों के लिए कठपुतली शासक के रूप में होगा।
11. रफ़ीउद्दौला (रफी उद-दौलत) शाहजहां द्वितीय
रफ़ीउद्दौला (शाहजहां द्वितीय, जन्म: जून 1696; मृत्यु: 18 सितम्बर 1719; आयु: 23) जिसका शासन 6 जून 1719 – 17 सितम्बर 1719 तक रहा। शाहजहाँ द्वितीय का जन्म रफ़ी उद-दौला के रूप में हुआ था। वह रफ़ी-उश-शान का दूसरा बेटा और बहादुर शाह प्रथम का पोता था। शाहजहाँ द्वितीय की सही जन्म तिथि ज्ञात नहीं है, लेकिन माना जाता है कि वह अपने भाई रफ़ी उद-दराजत से अठारह महीने बड़ा था। उन्होंने शादी की या नहीं, उनका कोई बच्चा था या नहीं यह भी अज्ञात है।
रफ़ीउद्दौला भारतीय इतिहास में प्रसिद्ध मुग़ल वंश का 11वाँ बादशाह था। वह जून, 1719 से सितम्बर, 1719 ई. (4 महीने) तक ही मुग़ल साम्राज्य का बादशाह रहा।
12. नेकसियर (नेकुसियार मुहम्मद)
नेकसियर (जन्म: 6 अक्टूबर 1679; मृत्यु: 12 अप्रैल 1723; आयु: 43) जिसका शासन 17 सितम्बर 1719 – 20 सितम्बर 1719 तक रहा। नेकसियर मुग़ल वंश का 12वाँ बादशाह था। वह चालीस वर्ष की आयु में 1719 ई. में मुग़ल राजगद्दी पर बैठा। नेकसियरऔरंगज़ेब का पौत्र और अकबर द्वितीय का पुत्र था। वह उन पाँच कठपुतली बादशाहों में से तीसरा था, जिन्हें सैयद बंधुओं ने सिंहासनासीन किया था।
13. मुहम्मद इब्राहीम (अबुल फ़तह ज़ाहिर-उल-दीन मुहम्मद इब्राहीम)
मुहम्मद इब्राहीम (जन्म: 9 अगस्त 1703; मृत्यु: 31 जनवरी 1746; आयु: 43) जिसका शासन 20 सितम्बर 1719 – 27 सितम्बर 1719 तक रहा। इब्राहीम मुग़ल वंश का 13वाँ बादशाह था। वह सैयद बन्धुओं द्वारा 1719 ई. में मुग़ल साम्राज्य का शासक बनाया गया था। मुहम्मद इब्राहीम बहादुरशाह प्रथम (1707-1712 ई.) के तीसरे पुत्र रफ़ीउश्शान का पुत्र था। सैयद बन्धुओं ने जिन पाँच नाममात्र के मुग़ल बादशाहों को गद्दी पर बैठाया था, यह उनमें से एक था।
14. मुहम्मद शाह (मुहम्मदशाह रौशन अख़्तर)
मुहम्मद शाह (जन्म: 7 अगस्त 1702; मृत्यु: 26 अप्रैल 1748; आयु: 45) जिसका शासन 27 सितम्बर 1719 – 26 अप्रैल 1748 तक रहा। मिर्जा नासिर-उद-दीन मुहम्मद शाह 1719 से 1748 तक चौदहवें मुग़ल सम्राट थे। वह बहादुर शाह प्रथम के चौथे बेटे खुजिस्ता अख्तर के बेटे थे। बरहा के सैय्यद ब्रदर्स द्वारा चुने जाने के बाद, वह युवावस्था में सिंहासन पर बैठे। उनकी कड़ी निगरानी में उनकी शासनकाल की शुरुआत हुई।
बाद में उन्होंने निज़ाम-उल-मुल्क, आसफ़ जाह I की मदद से उनसे छुटकारा पा लिया, सैय्यद हुसैन अली खान की 1720 में फ़तेहपुर सीकरी में हत्या कर दी गई और सैय्यद हसन अली खान बरहा को 1720 में युद्ध में पकड़ लिया गया और 1722 में उन्हें जहर दे दिया गया। मुहम्मद शाह एक कला प्रेमी और कला के प्रोत्साहक थे। उन्हें अक्सर “मुहम्मद शाह रंगीला” कहा जाता था। उनका उपनाम “सदरंग” था और उन्हें कभी-कभी उनके दादा बहादुर शाह प्रथम के नाम पर “बहादुर शाह रंगीला” भी कहा जाता था।
मुहम्मद शाह के शासनकाल में मुग़ल साम्राज्य का तेजी से और अपरिवर्तनीय पतन हुआ, जो 1739 में नादिर शाह के भारत पर आक्रमण और दिल्ली पर कब्ज़ा करने के कारण और भी बदतर हो गया। इस घटना ने न केवल स्वयं मुग़लों को, बल्कि अन्य विदेशियों को भी स्तब्ध और अपमानित किया।
ब्रिटिश व्यापारिक कंपनियों ने इस संकट का लाभ उठाया और मुग़ल साम्राज्य के आक्रमण के बाद उनका अधिकांश क्षेत्र उनके कब्ज़े में आ गया। इसके परिणामस्वरूप, मुग़ल साम्राज्य का शक्तिशाली स्वरूप स्थायित नहीं रहा और वह अपनी सत्ता को धीरे-धीरे खो दिया। इसके बाद, ब्रिटिश विचारकों ने भारत में अपनी अधिकतम शक्ति को स्थापित करने का मौका प्राप्त किया।
यह घटनाएं न केवल भारतीय साम्राज्य के इतिहास में महत्वपूर्ण हैं, बल्कि ये भारतीय इतिहास के बदलते संदर्भ को भी प्रकट करती हैं। ब्रिटिश के इस प्रवेश के परिणामस्वरूप, भारतीय समाज, अर्थव्यवस्था, और राजनीति में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए, जिनका असर आज भी महसूस किया जा रहा है। यह इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय है, जो हमें भारतीय इतिहास की समझ में मदद करता है।
15. अहमद शाह (अहमद शाह बहादुर)
अहमद शाह (जन्म: 23 दिसम्बर 1725; मृत्यु: 1 जनवरी 1775; आयु: 49) जिसका शासन 29 अप्रैल 1748 – 2 जून 1754 तक रहा। यह मुहम्मद शाह का पुत्र था और अपने पिता के बाद 1748 में 23 वर्ष की आयु में 15वां मुगल सम्राट बना। इसकी माता उधमबाई थी, जो कुदसिया बेगम के नाम से प्रसिद्ध थीं।
अहमद शाह बहादुर बचपन से ही काफी लाड प्यार में बड़े हुए। 1725 में उनका जन्म हुआ उनके बड़े होते होते मुगल साम्राज्य अपने आप में कमजोर होता जा रहा था जब 14 साल के थे तब नादिरशाह ने भारत पर आक्रमण कर दिल्ली में भयानक लूटपाट मचाई थी 1748 में अपने पिता मोहम्मद शाह की मृत्यु के बाद गद्दी पर बैठे और उन्होंने अपनी सेना का संचालन अपने ढंग से करना शुरू किया उनके शासन में कम नेतृत्व क्षमता साफ तौर पर नज़र आती है जिसके कारण फिरोज जंग तृतीय नामक एक वजीर का उदय हुआ और बाद में 1754 इसी में उसने अहमद शाह बहादुर को अपनी ताकत के दम पर कैद कर लिया और आलमगीर को सम्राट बनाया।
अहमदशाह बचपन से ही आलसी थे उनको तलवारबाजी नहीं आता था अपनी माता कोदिया बेगम के और अपने पिता मोहम्मदशाह के दम पर उन्हें सम्राट का पद मिला था। सम्राट बनने के बाद ये हमेशा हरम में लिप्त रहते थे जिसके कारण उनका ध्यान शासन की ओर नहीं जाता था उन्होंने ‘सफदरजंग’ को अवध का नवाब घोषित किया और अपनी सारी शक्तियां अपने वजीर के हाथ में दे दी जिसके कारण बाद में फिरोजजंग ने सदाशिव राव भाऊ जो कि मराठा सरदार थे उनकी सहायता से अहमद शाह बहादुर को कैद कर लिया और वहां उनको और उनकी माता कुदसिया बेगम को अंधा कर दिया गया जहां जनवरी 1775 में सामान्य तौर पर उनकी मृत्यु हो गई।
16. आलमगीर द्वितीय (अज़ीज़ुद्दीन)
आलमगीर द्वितीय (जन्म: 6 जून 1699; मृत्यु: 29 नवम्बर 1759; आयु: 60) जिसका शासन 3 जून 1754 – 29 नवम्बर 1758 तक रहा। यह 16वाँ मुग़ल बादशाह था, जिसने 1754 से 1759 ई. तक राज्य किया। आलमगीर द्वितीय आठवें मुग़ल बादशाह जहाँदारशाह का पुत्र था। अहमदशाह को गद्दी से उतार दिये जाने के बाद आलमगीर द्वितीय को मुग़ल वंश का उत्तराधिकारी घोषित किया गया था। इसे प्रशासन का कोई अनुभव नहीं था। वह बड़ा कमज़ोर व्यक्ति था, और वह अपने वज़ीर ग़ाज़ीउद्दीन इमादुलमुल्क के हाथों की कठपुतली था। आलमगीर द्वितीय को ‘अजीजुद्दीन’ के नाम से भी जाना जाता है। वज़ीर ग़ाज़ीउद्दीन ने 1759 ई. में आलमगीर द्वितीय की हत्या करवा दी थी।
17. शाहजहां तृतीय (मुही-उल-मिल्लत)
शाहजहां तृतीय (जन्म: 1711; मृत्यु: 1772; आयु: 60) जिसका शासन 10 दिसम्बर 1759 – 10 अक्टूबर 1760 तक रहा। यह 17वाँ मुग़ल बादशाह था। इसका असली नाम शाहज़ादा अली गौहर था। यह आलमगीर द्वितीय के उत्तराधिकारी के रूप में 1759 ई. में गद्दी पर बैठा। बादशाह शाहआलम द्वितीय ने ईस्ट इंडिया कम्पनी से इलाहाबाद की सन्धि कर ली थी और वह ईस्ट इंडिया कम्पनी की पेंशन पर जीवन-यापन कर रहा था।
18. शाह आलम द्वितीय (अली गौहर)
शाह आलम द्वितीय (जन्म: 25 जून 1728; मृत्यु: 19 नवम्बर 1806; आयु: 78) जिसका शासन 10 अक्टूबर 1760 – 19 नवम्बर 1806 तक रहा। यह 18वाँ मुग़ल बादशाह था। इसका असली नाम शाहज़ादा अली गौहर था। यह आलमगीर द्वितीय के उत्तराधिकारी के रूप में 1759 ई. में गद्दी पर बैठा। बादशाह शाहआलम द्वितीय ने ईस्ट इंडिया कम्पनी से इलाहाबाद की सन्धि कर ली थी और वह ईस्ट इंडिया कम्पनी की पेंशन पर जीवन-यापन कर रहा था।
19. अकबर शाह द्वितीय (मिर्ज़ा अकबर या अकबर शाह सानी)
अकबर द्वितीय (जन्म: 22 अप्रैल 1760; मृत्यु: 28 सितम्बर 1837; आयु: 77) जिसका शासन 19 नवम्बर 1806 – 28 सितम्बर 1837 तक रहा। यह मुग़ल वंश का 19वाँ बादशाह था। वह शाहआलम द्वितीय का पुत्र था और उसने 1806-1837 ई. तक राज किया।
उसके समय तक भारत का अधिकांश राज्य अंग्रेज़ों के हाथों में चला गया था और 1803 ई. में दिल्ली पर भी उनका क़ब्ज़ा हो गया। बादशाह शाहआलम द्वितीय (1769-1806 ई.) अपने जीवन के अन्तिम दिनों में ईस्ट इंडिया कम्पनी की पेंशन पर जीवन यापन करता था।
उसका पुत्र बादशाह अकबर द्वितीय ईस्ट इंडिया कम्पनी की कृपा के सहारे नाम मात्र का ही बादशाह था। अकबर द्वितीय से गवर्नर-जनरल लॉर्ड हेस्टिंग्स (1813-1823) की ओर से कहा गया कि वह कम्पनी के क्षेत्र पर अपनी बादशाहत का दावा छोड़ दे।
20. बहादुर शाह द्वितीय (अबू ज़फर सिराजुद्दीन मुहम्मद बहादुर शाह ज़फर)
बहादुर शाह ज़फर (जन्म: 24 अक्टूबर 1775; मृत्यु: 7 नवम्बर 1862; आयु: 87) जिसका शासन 28 सितम्बर 1837 – 21 सितम्बर 1857 तक रहा। यह मुग़ल साम्राज्य के अंतिम बादशाह थे। इनका शासनकाल 1837-57 तक था। बहादुर शाह ज़फ़र एक कवि, संगीतकार व खुशनवीस थे और राजनीतिक नेता के बजाय सौंदर्यानुरागी व्यक्ति अधिक थे।
बहादुर शाह अकबर शाह द्वितीय और लालबाई के दूसरे पुत्र थे। उनकी माँ लालबाई हिंदू परिवार से थीं। 1857 में जब हिंदुस्तान की आजादी की चिंगारी भड़की, तो सभी विद्रोही सैनिकों और राजा-महाराजाओं ने उन्हें हिंदुस्तान का सम्राट माना और उनके नेतृत्व में अंग्रेजों की ईट से ईट बजा दी।
अंग्रेजों के ख़िलाफ़ भारतीय सैनिकों की बगावत को देखकर बहादुर शाह जफ़र का भी गुस्सा फूटा और उन्होंने अंग्रेजों को हिंदुस्तान से खदेड़ने का आह्वान किया। भारतीयों ने दिल्ली और देश के अन्य हिस्सों में अंग्रेजों को कड़ी शिकस्त दी।
उनके शासनकाल के अधिकांश समय में उनके पास वास्तविक सत्ता नहीं रही और वह अंग्रेज़ों के अधीन रहे। 1857 ई. में स्वतंत्रता संग्राम शुरू होने के समय बहादुर शाह 82 वर्ष के बूढ़े थे, और स्वयं निर्णय लेने की क्षमता को खो चुके थे।
सितम्बर 1857 ई. में अंग्रेज़ों ने दुबारा दिल्ली पर क़ब्ज़ा जमा लिया और बहादुर शाह द्वितीय को गिरफ़्तार करके उन पर मुक़दमा चलाया गया तथा उन्हें रंगून निर्वासित कर दिया गया।
मुल्क से अंग्रेजों को भगाने का सपना लिए, बहादुर शाह ज़फ़र का निधन 7 नवंबर 1862 को हो गया। उनकी मृत्यु 86 वर्ष की अवस्था में रंगून (वर्तमान यांगून), बर्मा (वर्तमान म्यांमार) में हुई थी। उन्हें रंगून में श्वेदागोन पैगोडा के नजदीक दफनाया गया। जिस दिन बहादुर शाह ज़फ़र का निधन हुआ, उसी दिन उनके दो बेटों और पोते को भी गिरफ़्तार करके गोली मार दी गई। इस प्रकार, बादशाह बाबर ने जिस मुग़ल वंश की स्थापना भारत में की थी, उसका अंत हो गया।
FAQs
1. मुग़ल साम्राज्य की स्थापना कब और किसने की थी?
मुगल साम्राज्य की स्थापना 1526 में हुई, मुगल वंश का संस्थापक बाबर था, अधिकांश मुगल शासक तुर्क और सुन्नी मुसलमान थे। मुगल शासन 17 वीं शताब्दी के आखिर में और 18 वीं शताब्दी की शुरुआत तक चला और 19 वीं शताब्दी के मध्य में समाप्त हुआ। बाबर ने 1526 ई से 1530 ई तक शासन किया था।
2. मुग़ल वंश के पाँच शासकों के नाम उनके शासनकाल सहित लिखो।
- बाबर – 1526-1530
- हुमायूं – 1530-40, 1555-56
- अकबर – 1556-1605
- जहांगीर – 1606-27
- शाहजहाँ – 1628-1658
- औरंगज़ेब – 1658-1707
3. मुग़ल साम्राज्य का विस्तार सबसे अधिक किस राजा के शासनकाल में था?
मुग़ल साम्राज्य का सबसे अधिक विस्तार अकबर के शासनकाल (1556-1605) के दौरान हुआ। औरंगज़ेब के शासन में मुग़ल साम्राज्य अपने विस्तार के शिखर पर पहुँचा गया था।
4. भारत में सबसे अधिक समय तक शासन करने वाला मुगल बादशाह कौन था?
भारत में सबसे अधिक दिनों तक शासन करने वाला बादशाह जलाल उद्दीन मोहम्मद ‘अकबर’ थे। औरंगज़ेब ने भारतीय उपमहाद्वीप पर अकबर के बाद सबसे अधिक समय तक शासन किया।
5. मुग़ल वंश का सबसे अधिक शक्तिशाली राजा कौन था?
मुग़ल वंश का सबसे अधिक शक्तिशाली बादशाह “अकबर” था। सम्राट अकबर मुगल साम्राज्य के संस्थापक जहीरुद्दीन मुहम्मद बाबर का पौत्र और नासिरुद्दीन हुमायूं एवं हमीदा बानो का पुत्र थे।
6. मुग़ल साम्राज्य का पतन या अंत कैसे हुआ?
मुग़ल साम्राज्य के पतन के निम्न कारण थे-
- औरंगजेब के बाद शासक अयोग्य और कमजोर इच्छाशक्ति वाले हो गये।
- विदेशी सेना जैसे – अफगान, तुर्कों आदि द्वारा बार-बार आक्रमण ने मुगलों की की शक्ति को तोड़ दिया।
- मराठा साम्राज्य द्वारा बार-बार आक्रमण।
- गैर-मुस्लिम लोगों के विरुद्ध औरंगजेब की सांप्रदायिक नीतियां।
- विरासत स्थलों जैसे ताजमहल आदि वनवाने के कारण राजकोष पर दबाव।
- 1600 ई. के बाद अंग्रेजों का नमक हरामी करना।
- 1857 का विद्रोह या क्रांति साम्राज्य के लिए आखिरी झटका था, अंग्रेजों के डर से अंतिम सम्राट, बहादुर शाह ज़फ़र, म्यांमार के रंगून में भाग गए।