पारिस्थितिक अनुकूलन (Acclimatization) पारिस्थितिक समायोजन की प्रक्रिया, जिसके द्वारा पौधे, जीव अथवा मनुष्य अपनी प्रकृति के विपरीत जलवायु दशाओं में निवास करने की आदत डालते हैं। इस प्रकार वे अपने पर्यावरण से समायोजन करते हैं।
पारिस्थितिक तंत्र-आधारित अनुकूलन
पारिस्थितिक तंत्र-आधारित अनुकूलन (Ecosystem-based adaptation-EbA) एक ऐसा तरीका है जिसमें पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों का सही तरीके से प्रबंधन किया जाता है, ताकि जलवायु परिवर्तन से प्रभावित मानव समुदायों की समस्याओं को कम किया जा सके। इस दृष्टिकोण में जंगल, नदियाँ, झीलें, और अन्य प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्रों को संरक्षित और बहाल किया जाता है, जिससे वे जलवायु से जुड़े जोखिमों, जैसे बाढ़, सूखा, या समुद्र के स्तर में वृद्धि से बचाव में मदद कर सकें। इसका उद्देश्य मानव और प्रकृति दोनों के लिए फायदेमंद समाधान खोजना है।
उदाहरण के लिए, मैंग्रोव और प्रवाल भित्तियों को फिर से स्थापित करने से तटीय इलाकों को समुद्र के बढ़ते स्तर से बचाने में मदद मिलती है, जबकि पहाड़ियों और पहाड़ों पर पेड़ लगाने और वहां की वनस्पतियों को बहाल करने से भारी बारिश के दौरान मिट्टी के कटाव और भूस्खलन से सुरक्षा मिलती है।
EbA (पारिस्थितिकी तंत्र-आधारित अनुकूलन) जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए पर्यावरण या प्रकृति का उपयोग करने के उपायों का हिस्सा है, और हाल के वर्षों में इस पर लोगों और वैज्ञानिकों का ध्यान ज्यादा गया है।
हालांकि यह एक अंतर्राष्ट्रीय जलवायु पहल (International Climate Initiative-IKI) है, जर्मनी ने पारिस्थितिकी तंत्र-आधारित अनुकूलन के लिए अपनी वित्तीय सहायता लगभग €60 मिलियन तक बढ़ाने की योजना बनाई है, जिसमें UNEP-IUCN का नया कार्यक्रम भी शामिल है।
प्रकृति अक्सर जलवायु परिवर्तन और उससे निपटने के सबसे अच्छे समाधान देती है। इस तरह की परियोजनाओं से पर्यावरण की सुरक्षा के साथ-साथ समाज को भी फायदा होता है, खासकर उन विकासशील देशों में, जहाँ लोग सीधे तौर पर प्रकृति पर निर्भर रहते हैं, जैसे कृषि और तटीय क्षेत्रों की सुरक्षा में।
मरुस्थलीय पौधों के पारिस्थितिक अनुकुलन
मरुस्थलीय पौधों के पारिस्थितिक अनुकूलन उन्हें कठोर, शुष्क और गर्म मरुस्थलीय वातावरण में जीवित रहने में मदद करते हैं। इस प्रकार के अनुकूलन पानी की कमी, अत्यधिक गर्मी, और पोषक तत्वों की कमी जैसी चुनौतियों का सामना करने के लिए विकसित होते हैं। मरुस्थलीय पौधों के कुछ मुख्य अनुकूलन इस प्रकार हैं:
जल संरक्षण
कई मरुस्थलीय पौधों की जड़ें गहरी और फैली होती हैं, जो जमीन की गहराई से और दूर तक फैले हुए क्षेत्रों से पानी सोखने में मदद करती हैं। उदाहरण के लिए, कैक्टस की जड़ें सतह के पास फैली होती हैं ताकि थोड़ी सी भी वर्षा को जल्दी से अवशोषित किया जा सके।
कुछ पौधे, जैसे कैक्टस, अपने तनों में पानी संचित कर सकते हैं। यह उन्हें लंबे समय तक पानी के बिना जीवित रहने में मदद करता है।
पत्तियों में अनुकूलन
छोटी या कांटेदार पत्तियां: मरुस्थलीय पौधों की पत्तियां अक्सर छोटी, पतली या कांटेदार होती हैं। इससे पानी का वाष्पीकरण कम होता है। कैक्टस के कांटे इसी का उदाहरण हैं।
मोटे पत्तों में मोम की परत: कुछ पौधों की पत्तियों पर मोम की परत होती है, जो पानी के नुकसान को कम करने में मदद करती है और वाष्पीकरण को नियंत्रित करती है।
संवेदनशील स्टोमेटा (रंध्र)
मरुस्थलीय पौधों के पत्तों में पाए जाने वाले छोटे छिद्र (स्टोमेटा) दिन की गर्मी में बंद हो जाते हैं और रात में खुलते हैं, जिससे पौधे दिन के समय कम पानी खोते हैं और रात में कार्बन डाइऑक्साइड अवशोषित कर सकते हैं।
धीमी वृद्धि दर
मरुस्थलीय पौधे अक्सर धीमी गति से बढ़ते हैं, जिससे उन्हें पानी और पोषक तत्वों का कुशल उपयोग करने में मदद मिलती है। इससे उनकी ऊर्जा और संसाधनों की खपत कम होती है।
सपुष्पी जीवन चक्र
कुछ मरुस्थलीय पौधे अत्यधिक सूखे मौसम में निष्क्रिय रहते हैं और केवल बारिश के समय तेजी से अंकुरित होते हैं, फूलते हैं और बीज उत्पन्न करते हैं। ये बीज फिर अगली वर्षा तक जमीन में सोए रहते हैं, जिससे पौधे के जीवन चक्र में पानी की उपलब्धता का अधिकतम उपयोग होता है।