द्विवेदी युग – कवि और उनकी रचनाएँ, रचना एवं रचनाकर

Dwivedi Yug
Dwivedi Yug

द्विवेदी युग (1900 से 1920 ई०)

हिंदी साहित्य में दिवेदी युग बीसवीं सदी के पहले दो दशकों का युग है। द्विवेदी युग का समय सन 1900 से 1920 तक माना जाता है। बीसवीं शताब्दी के पहले दो दशक के पथ-प्रदर्शक, विचारक और साहित्य नेता आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के नाम पर ही इस काल का नाम “द्विवेदी युग” पड़ा। इसे “जागरण सुधारकाल” भी कहा जाता है।

महावीर प्रसाद द्विवेदी हिन्दी के ऐसे पहले लेखक थे, जिन्होंने अपनी जातीय परंपरा का गहन अध्ययन ही नहीं किया था, अपितु उसे आलोचकीय दृष्टि से भी देखा। उन्होंने वेदों से लेकर पंडितराज जगन्नाथ तक के संस्कृत साहित्य की निरंतर प्रवाहमान धारा का अवगाहन किया एवं उपयोगिता तथा कलात्मक योगदान के प्रति एक वैज्ञानिक नज़रिया अपनाया। कविता की दृष्टि से द्विवेदी युग “इतिवृत्तात्मक युग” था। इस समय आदर्शवाद का बोलबाला रहा।

भारत का उज्ज्वल अतीत, देश-भक्ति, सामाजिक सुधार, स्वभाषा-प्रेम आदि कविता के मुख्य विषय थे। नीतिवादी विचारधारा के कारण श्रृंगार का वर्णन मर्यादित हो गया। कथा-काव्य का विकास इस युग की विशेषता है। मैथिलीशरण गुप्त, अयोध्यासिंह उपाध्याय “हरिऔध”, श्रीधर पाठक, रामनरेश त्रिपाठी आदि इस युग के यशस्वी कवि थे।

जगन्नाथदास “रत्नाकर” ने इसी युग में ब्रजभाषा में सरस रचनाएँ प्रस्तुत कीं। दो दशकों के कालखंड में हिंदी कविता को श्रृंगारिकता से राष्ट्रीयता, जड़ता से प्रगति तथा रूढ़ि से स्वच्छंदता के द्वार पर ला खड़ा किया। द्विवेदी युग को जागरण सुधार काल भी कहा जाता है .द्विवेदी युग के पथ प्रदर्शक विचारक और सर्व स्वीकृत साहित्य नेता आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के नाम पर इसका नाम द्विवेदी युग रखा गया है।

1903 में महावीर प्रसाद द्विवेदी ने “सरस्वती” पत्रिका के संपादन का भार संभाला। उन्होंने खड़ी बोली गद्य के स्वरूप को स्थिर किया और पत्रिका के माध्यम से रचनाकारों के एक बड़े समुदाय को खड़ी बोली में लिखने को प्रेरित किया।

इस काल में निबंध, उपन्यास, कहानी, नाटक एवं समालोचना का अच्छा विकास हुआ। इस युग के निबंधकारों में महावीर प्रसाद द्विवेदी, माधव प्रसाद मिश्र, श्यामसुंदर दास, चंद्रधर शर्मा गुलेरी, बालमुकंद गुप्त और अध्यापक पूर्णसिंह आदि उल्लेखनीय हैं। इनके निबंध गंभीर, ललित एवं विचारात्मक हैं, किशोरीलाल गोस्वामी और बाबू गोपाल राम गहमरी के उपन्यासों में मनोरंजन और घटनाओं की रोचकता है।

हिन्दी कहानी का वास्तविक विकास “द्विवेदी युग” से ही शुरू हुआ। किशोरी लाल गोस्वामी की “इंदुमती” कहानी को कुछ विद्वान् हिन्दी की पहली कहानी मानते हैं। अन्य कहानियों में बंग महिला की “दुलाई वाली”, रामचन्द्र शुक्ल की “ग्यारह वर्ष का समय”, जयशंकर प्रसाद की “ग्राम” और चंद्रधर शर्मा गुलेरी की “उसने कहा था” आदि महत्त्वपूर्ण हैं। समालोचना के क्षेत्र में पद्मसिंह शर्मा उल्लेखनीय हैं। अयोध्यासिंह उपाध्याय “हरिऔध”, शिवनंदन सहाय तथा राय देवीप्रसाद पूर्ण द्वारा भी कुछ नाटक लिखे गए।

Dwivedi Yug Ke Kavi aur Rachnaye

द्विवेदी युग की रचनाएं

द्विवेदी युग का साहित्य अनेक अमूल्य रचनाओं का सागर है, इतना समृद्ध साहित्य किसी भी दूसरी भाषा का नहीं है और न ही किसी अन्य भाषा की परम्परा का साहित्य एवं रचनाएँ अविच्छिन्न प्रवाह के रूप में इतने दीर्घ काल तक रहने पाई है। द्विवेदी युग के कवि और उनकी रचनाएँ; द्विवेदी युग की रचनाएँ और रचनाकार उनके कालक्रम की द्रष्टि से बहुत महत्वपूर्ण हैं। द्विवेदी युग की मुख्य रचना एवं रचयिता या रचनाकार इस list में नीचे दिये हुए हैं।

द्विवेदी युग के कवि

द्विवेदी युग के प्रमुख कवियों में नाथूराम शर्मा ‘शंकर’, श्रीधर पाठक, महावीर प्रसाद द्विवेदी, ‘हरिऔध’, राय देवी प्रसाद ‘पूर्ण, रामचरित उपाध्याय, गयाप्रसाद शुक्ल ‘सनेही, मैथिली शरण गुप्त, रामनरेश त्रिपाठी, बाल मुकुन्द गुप्त, लाला भगवानदीन ‘दीन’, लोचन प्रसाद पाण्डेय, मुकुटधर पाण्डेय, आदि आते हैं।

द्विवेदी युग के कवि और उनकी रचनाएँ

द्विवेदी युग के प्रमुख कवि और उनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं:-

क्रम कवि (रचनाकार) रचना/रचनाएं
1. नाथूराम शर्मा ‘शंकर’ अनुराग रत्न, शंकर सरोज, गर्भरण्डा रहस्य, शंकर सर्वस्व
2. श्रीधर पाठक वनाष्टक, काश्मीर सुषमा, देहरादून, भारत गीत, जार्ज वंदना (कविता), बाल विधवा (कविता)
3. महावीर प्रसाद द्विवेदी काव्य मंजूषा, सुमन, कान्यकुब्ज अबला-विलाप
4. ‘हरिऔध’ प्रियप्रवास, पद्यप्रसून, चुभते चौपदे, चोखे चौपदे, बोलचाल, रसकलस, वैदेही वनवास
5. राय देवी प्रसाद ‘पूर्ण स्वदेशी कुण्डल, मृत्युंजय, राम-रावण विरोध, वसन्त-वियोग
6. रामचरित उपाध्याय राष्ट्र भारती, देवदूत, देवसभा, विचित्र विवाह, रामचरित-चिन्तामणि (प्रबंध)
7. गयाप्रसाद शुक्ल ‘सनेही डो’ कृषक क्रन्दन, प्रेम प्रचीसी, राष्ट्रीय वीणा, त्रिशूल तरंग, करुणा कादंबिनी।
8. मैथिली शरण गुप्त रंग में भंग, जयद्रथ वध, भारत भारती, पंचवटी, झंकार, साकेत, यशोधरा, द्वापर, जय भारत, विष्णु प्रिया
9. रामनरेश त्रिपाठी मिलन, पथिक, स्वप्न, मानसी
10. बाल मुकुन्द गुप्त स्फुट कविता
11. लाला भगवानदीन ‘दीन’ न’ वीर क्षत्राणी, वीर बालक, वीर पंचरत्न, नवीन बीन
12. लोचन प्रसाद पाण्डेय प्रवासी, मेवाड़ गाथा, महानदी, पद्य पुष्पांजलि
13. मुकुटधर पाण्डेय पूजा फूल, कानन कुसुम

द्विवेदी युग 20वीं सदी के पहले दो दशकों का युग है। इन दो दशकों के कालखण्ड ने हिन्दी कविता को श्रृंगारिकता से राष्ट्रीयता, जड़ता से प्रगति तथा रूढ़ि से स्वच्छंदता के द्वार पर ला खड़ा किया।

इस कालखंड के पथ प्रदर्शक, विचारक और सर्वस्वीकृत साहित्य नेता आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के नाम पर इसका नाम द्विवेदी युग रखा गया है।

यह सर्वथा उचित है क्योंकि हिन्दी के कवियों और लेखकों की एक पीढ़ी का निर्माण करने, हिन्दी के कोश निर्माण की पहल करने, हिन्दी व्याकरण को स्थिर करने और खड़ी बोली का परिष्कार करने और उसे पद्य की भाषा बनाने आदि का श्रेय बहुत हद तक महावीर प्रसाद द्विवेदी को ही है।

  • द्विवेदी युग को ‘जागरण-सुधार काल‘ भी कहा जाता है।

द्विवेदी युग की विशेषताएँ

“द्विवेदी युग” की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं-

  • अशिक्षा, ग़रीबी, अनाचार, अत्याचार आदि से छुटकारा दिलाने की कामना।
  • देश प्रेम एवं राष्ट्रीयता का सन्देश।
  • नारी के प्रति सहानुभूति की भावना।
  • समाज सुधार के प्रयास।
  • नैतिकता एवं आर्दशवाद की पुष्टि।
  • सत्यम, शिवम, सुन्दरम का विधान।
  • मनोरम प्रकृति चित्रण।
  • सरल, सुबोध एवं सरस खड़ी बोली में काव्य की रचना।

प्रसिद्ध कवि

द्विवेदी युग के प्रसिद्ध कवियों में जिन्हें गिना जाता है, उनके नाम इस प्रकार हैं- आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी, अयोध्यासिंह उपाध्याय “हरिऔध”, रामचरित उपाध्याय, जगन्नाथदास “रत्नाकर”, गयाप्रसाद शुक्ल “सनेही”, श्रीधर पाठक, रामनरेश त्रिपाठी, मैथिलीशरण गुप्त, लोचन प्रसाद पाण्डेय, सियारामशरण गुप्त।


इस प्रष्ठ में द्विवेदी युग का साहित्य, काव्य, रचनाएं, रचनाकार, साहित्यकार या लेखक दिये हुए हैं। द्विवेदी युग की प्रमुख कवि, काव्य, गद्य रचनाएँ एवं रचयिता या रचनाकार विभिन्न परीक्षाओं की द्रष्टि से बहुत ही उपयोगी है।